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विषयानुक्रमणिका
विषय
गाथा
विषय
गाथा
आत्मज्ञानशून्यने सर्व आगमज्ञान, तत्त्वार्थ -
अविपरीत फळनुं कारण एवुं जे ‘अविपरीत
श्रद्धान तथा संयतत्वनुं युगपदपणुं पण
अकिंचित्कर छे.
अकिंचित्कर छे.
कारण’ तेनी उपासनारूप प्रवृत्ति सामान्य-
विशेषपणे करवायोग्य छे.
विशेषपणे करवायोग्य छे.
२३९
२६१
आगमज्ञान-तत्त्वार्थश्रद्धान-संयतत्वना
श्रमणाभासो प्रत्ये सर्व प्रवृत्तिओ निषेधे छे. २६३
केवो जीव श्रमणाभास छे ते कहे छे.
केवो जीव श्रमणाभास छे ते कहे छे.
युगपदपणानुं अने आत्मज्ञाननुं
युगपदपणुं
युगपदपणुं
२६४
२४०
जे श्रामण्ये समान छे तेनुं अनुमोदन नहि
संयतनुं लक्षण
२४१
करनारनो विनाश
२६५
संयतपणुं ते ज मोक्षमार्ग छे.
२४२
जे श्रामण्ये अधिक होय तेना प्रत्ये जाणे के ते
अनेकाग्रताने मोक्षमार्गपणुं घटतुं नथी.
२४३
श्रामण्ये हीन होय एम आचरण
करनारनो विनाश
करनारनो विनाश
२६६
एकाग्रता ते मोक्षमार्ग छे एम नक्की करता थका
मोक्षमार्ग -प्रज्ञापननो उपसंहार करे छे.२४४
पोते श्रामण्ये अधिक होय छतां पोतानाथी हीन
—
श्रमण प्रत्ये समान जेवुं आचरण करे तो
तेनो विनाश
तेनो विनाश
शुभोपयोग -प्रज्ञापन —
२६७
शुभोपयोगीओने श्रमण तरीके गौणपणे
असत्संग निषेध्य छे.
२६८
दर्शावे छे.
२४५
लौकिक जननुं लक्षण
२६९
शुभोपयोगी श्रमणनुं लक्षण
२४६
सत्संग करवायोग्य छे.
२७०
शुभोपयोगी श्रमणोनी प्रवृत्ति
२४७
—
पंचरत्न -प्रज्ञापन —
बधीये प्रवृत्तिओ शुभोपयोगीओने ज
होय छे.
२४९
संसारतत्त्व
२७१
प्रवृत्ति संयमनी विरोधी होवानो निषेध
२५०
मोक्षतत्त्व
२७२
प्रवृत्तिना विषयना बे विभागो
२५१
मोक्षतत्त्वनुं साधनतत्त्व
२७३
प्रवृत्तिना काळनो विभाग
२५२
मोक्षतत्त्वना साधनतत्त्वने सर्वमनोरथना
स्थान तरीके अभिनंदे छे.
२७४
लोकनी साथे वातचीतनी प्रवृत्ति तेना निमित्तना
विभाग सहित दर्शावे छे.
२५३
शिष्यजनने शास्त्रफळ साथे जोडता थका
शास्त्रनी समाप्ति.
२७५
शुभोपयोगनो गौण -मुख्य विभाग
२५४
—
— परिशिष्ट
पृष्ठ
शुभोपयोगने कारणनी विपरीतताथी फळनी
विपरीतता
२५५
४७ नयो द्वारा आत्मद्रव्यनुं कथन
४९३
अविपरीत फळनुं कारण एवुं जे ‘अविपरीत
आत्मद्रव्यनी प्राप्तिनो प्रकार
५०२
कारण’ ते दर्शावे छे.
२५९
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