Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषयानुक्रमणिका
[ २१
(३) चरणानुयोगसूचक चूलिका
विषय
गाथा
विषय
गाथा
आचरण -प्रज्ञापन
उत्सर्ग ज वस्तुधर्म छे, अपवाद नहि’.
२२४
अपवादना विशेषो
२२५
दुःखमुक्ति माटे श्रामण्यमां जोडावानी
अनिषिद्ध शरीरमात्र -उपधिना पालननी
प्रेरणा
२०१
विधि
२२६

श्रमण थवा इच्छनार शुं शुं करे छे.

२०२
युक्ताहारविहारी साक्षात् अनाहारविहारी

यथाजातरूपधरपणानां बहिरंग अने अंतरंग

ज छे.
२२७
एवां बे लिंगोनो उपदेश.
२०५
श्रमणने युक्ताहारीपणानी सिद्धि
२२८

श्रामण्य संबंधी भवतिक्रियाने विषे, आटलाथी

युक्ताहारनुं विस्तृत स्वरूप
२२९
श्रामण्यनी प्राप्ति थाय छे.
२०७
उत्सर्ग अने अपवादनी मैत्री वडे आचरणनुं

अविच्छिन्न सामायिकमां आरूढ थयो होवा छतां

सुस्थितपणुं
२३०
श्रमण कदाचित् छेदोपस्थानने योग्य २०८
उत्सर्ग अने अपवादना विरोध वडे आचरणनुं

आचार्यना भेदो

२१०
दुःस्थितपणुं; तथा आचरण - प्रज्ञापननी
समाप्ति.

छिन्न संयमना प्रतिसंधाननी विधि

२११
२३१

श्रामण्यना छेदनां आयतनो होवाथी परद्रव्य-

मोक्षमार्ग -प्रज्ञापन
प्रतिबंधो निषेधवा योग्य छे.
२१३
मोक्षमार्गना मूळसाधनभूत आगममां

श्रामण्यनी परिपूर्णतानुं आयतन होवाथी

व्यापार
२३२
स्वद्रव्यमां ज प्रतिबंध करवायोग्य छे. २१४
आगमहीनने मोक्षाख्य कर्मक्षय थतो नथी

मुनिजनने नजीकनो सूक्ष्मपरद्रव्यप्रतिबंध

एवुं प्रतिपादन
२३३
पण निषेध्य छे.
२१५
मोक्षमार्गे जनाराओने आगम ज एक

छेद कोने कहेवामां आवे छे?

२१६
चक्षु छे.
२३४

छेदना अंतरंग अने बहिरंग एवा बे प्रकार२१७ सर्वथा अंतरंग छेद निषेध्य छे.

आगमचक्षु वडे बधुंय देखाय छे ज.
२३५
२१८
आगमज्ञान, तत्पूर्वक तत्त्वार्थश्रद्धान अने

उपधि अंतरंग छेदनी माफक छोडवा

तदुभयपूर्वक संयतत्वना युगपदपणाने
मोक्षमार्गपणुं होवानो नियम
योग्य छे.
२१९
२३६

उपधिनो निषेध ते अंतरंग छेदनो ज

आगमज्ञान-तत्त्वार्थश्रद्धान-संयतत्वना अयुग-
निषेध छे.
२२०
पदपणाने मोक्षमार्गपणुं घटतुं नथी. २३७

‘कोइने क्यांक क्यारेक कोइ प्रकारे कोइक उपधि

आगमज्ञान-तत्त्वार्थश्रद्धान-संयतत्वनुं
अनिषिद्ध पण छे’.
२२२
युगपदपणुं होवा छतां पण, आत्मज्ञान
मोक्षमार्गनुं साधकतम छे.
२३८

अनिषिद्ध उपधिनुं स्वरूप

२२३