विषयानुक्रमणिका
विषय
गाथा
विषय
गाथा
शुभ उपयोग अने अशुभ उपयोगनुं स्वरूप १५७
परद्रव्यना संयोगनुं जे कारण तेना विनाशने
परद्रव्यना संयोगनुं जे कारण तेना विनाशने
जीवने स्वद्रव्यमां प्रवृत्ति अने परद्रव्यथी
निवृत्तिनी सिद्धिने माटे स्व -परनो
विभाग
विभाग
१८२
अभ्यासे छे.
१५९
जीवने स्वद्रव्यमां प्रवृत्तिनुं निमित्त अने
शरीरादि परद्रव्य प्रत्ये मध्यस्थपणुं प्रगट
परद्रव्यमां प्रवृत्तिनुं निमित्त स्व -परना
विभागनुं ज्ञान -अज्ञान छे.
विभागनुं ज्ञान -अज्ञान छे.
करे छे.
१६०
१८३
शरीर, वाणी अने मननुं परद्रव्यपणुं
१६१
आत्मानुं कर्म शुं छे तेनुं निरूपण
१८४
आत्माने परद्रव्यपणानो अभाव अने
‘पुद्गलपरिणाम आत्मानुं कर्म केम नथी’
परद्रव्यना कर्तापणानो अभाव
१६२
एवा संदेहने दूर करे छे.
१८५
परमाणुद्रव्योने पिंडपर्यायरूप परिणतिनुं
आत्मा कइ रीते पुद्गलकर्मो वडे ग्रहाय छे
कारण
१६३
अने मुकाय छे — तेनुं निरूपण
१८६
आत्माने पुद्गलोना पिंडना कर्तृत्वनो
पुद्गलकर्मोना वैचित्र्यने कोण करे छे तेनुं
अभाव
१६७
निरूपण
१८७
आत्माने शरीरपणानो अभाव नक्की करे छे.१७१ जीवनुं असाधारण स्वलक्षण
एकलो ज आत्मा बंध छे
१८८
१७२
निश्चय अने व्यवहारनो अविरोध
१८९
अमूर्त आत्माने स्निग्ध -रूक्षपणानो अभाव
अशुद्ध नयथी अशुद्ध आत्मानी प्राप्ति
१९०
होवाथी बंध कइ रीते थइ शके
शुद्ध नयथी शुद्ध आत्मानी प्राप्ति
१९१
—
एवो पूर्वपक्ष
१७३
ध्रुवपणाने लीधे शुद्ध आत्मा ज उपलब्ध
उपरोक्त पूर्वपक्षनो उत्तर
१७४
करवायोग्य छे.
१९२
भावबंधनुं स्वरूप
१७५
शुद्धात्मानी उपलब्धिथी शुं थाय छे ते
निरूपे छे.
१९४
भावबंधनी युक्ति अने द्रव्यबंधनुं स्वरूप
१७६
मोहग्रंथि भेदवाथी शुं थाय छे ते कहे छे. १९५
एकाग्रसंचेतनलक्षणध्यान आत्माने
एकाग्रसंचेतनलक्षणध्यान आत्माने
पुद्गलबंध, जीवबंध अने उभयबंधनुं
स्वरूप
१७७
अशुद्धता लावतुं नथी.
१९६
द्रव्यबंधनो हेतु भावबंध
१७८
सकळज्ञानी शुं ध्यावे छे?
१९७
भावबंध ते ज निश्चयबंध
१७९
उपरोक्त प्रश्ननो उत्तर
१९८
परिणामनुं द्रव्यबंधना साधकतम रागथी
शुद्धात्मानी उपलब्धि जेनुं लक्षण छे एवो
विशिष्टपणुं
१८०
मोक्षमार्ग — तेने नक्की करे छे.
१९९
विशिष्ट परिणामना भेदने तथा अविशिष्ट
आचार्यभगवान — पूर्व प्रतिज्ञानुं निर्वहण
परिणामने, कारणमां कार्यनो उपचार करीने
कार्यपणे दर्शावे छे.
कार्यपणे दर्शावे छे.
करता थका, — मोक्षमार्गभूत शुद्धात्म-
१८१
प्रवृत्ति करे छे.
२००
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