Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषयानुक्रमणिका
[ १९
विषय
गाथा
विषय
गाथा
परिणामात्मक संसारमां कया कारणे पुद्गलोनो
‘काळाणु अप्रदेशी ज छे’ एवो नियम
संबंध थाय छे के जेथी ते (-संसार)
मनुष्यादिपर्यायात्मक होय छे
तेनुं
करे छे.
१३८
काळपदार्थनां द्रव्य अने पर्याय
१३९
समाधान
१२१
आकाशना प्रदेशनुं लक्षण
१४०

परमार्थे आत्माने द्रव्यकर्मनुं अकर्तापणुं

१२२
तिर्यक्प्रचय तथा ऊर्ध्वप्रचय
१४१

आत्मा जे रूपे परिणमे छे ते स्वरूप शुं छे?१२३ ज्ञाननुं, कर्मनुं अने कर्मफळनुं स्वरूप वर्णवीने

काळपदार्थनो ऊर्ध्वप्रचय निरन्वय
होवानी वातनुं खंडन
१४२
तेमने आत्मापणे नक्की करे छे.
१२४
सर्व वृत्त्यंशोमां काळपदार्थ उत्पादव्यय-

शुद्धात्मतत्त्वनी उपलब्धिने अभिनंदता थका

ध्रौव्यवाळो छे एम सिद्ध करे छे. १४३
द्रव्यसामान्यना वर्णननो उपसंहार
करे छे.
काळपदार्थनुं प्रदेशमात्रपणुं सिद्ध करे छे. १४४
१२६
ज्ञानज्ञेयविभाग अधिकार
ुव्यविशेष अधिकार
आत्माने विभक्त करवा माटे व्यवहार-

द्रव्यना जीव -अजीवपणारूप विशेषने नक्की

जीवत्वनो हेतु विचारे छे.
१४५
करे छे.
१२७
प्राणो कया छे ते कहे छे.
१४६

द्रव्यनो लोक -अलोकपणारूप विशेष नक्की

व्युत्पत्तिथी प्राणोने जीवत्वनुं हेतुपणुं तथा
करे छे.
१२८
तेमनुं पौद्गलिकपणुं
१४७

‘क्रिया’ अने ‘भाव’तेमनी अपेक्षाए द्रव्यनो

प्राणोने पौद्गलिक कर्मनुं कारणपणुं प्रगट
विशेष नक्की करे छे.
१२९
करे छे.
१४९

गुणविशेषथी द्रव्यविशेष छे एम जणावे छे. १३० मूर्त अने अमूर्त गुणोनां लक्षण तथा संबंध

पौद्गलिक प्राणोनी संततिनी प्रवृत्तिनो
अंतरंग हेतु
१५०
दर्शावे छे.
१३१
पौद्गलिक प्राणोनी संततिनी निवृत्तिनो

मूर्त पुद्गलद्रव्यना गुण

१३२
अंतरंग हेतु
१५१
आत्मानुं अत्यंत विभक्तपणुं साधवा माटे,

अमूर्त द्रव्योना गुणो

१३३
व्यवहार -जीवत्वना हेतु एवा जे गति-
विशिष्ट पर्यायो तेमनुं स्वरूप वर्णवे छे. १५२

द्रव्योनो प्रदेशवत्त्व अने अप्रदेशवत्त्वरूप

विशेष
१३५
पर्यायना भेद
१५३

प्रदेशी अने अप्रदेशी द्रव्यो क्यां रहेलां छे ते

अर्थनिश्चायक एवुं जे अस्तित्वतेने स्व -परना
जणावे छे.
१३६
विभागना हेतु तरीके समजावे छे. १५४

प्रदेशवत्त्व अने अप्रदेशवत्त्व कया प्रकारे

आत्माने अत्यंत विभक्त करवा माटे परद्रव्यना
संभवे छेते कहे छे.
१३७
संयोगना कारणनुं स्वरूप
१५५