Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 136.

< Previous Page   Next Page >


Page 268 of 513
PDF/HTML Page 299 of 544

 

संख्येयप्रदेशप्रस्ताररूपत्वादधर्मस्य, सर्वव्याप्यनन्तप्रदेशप्रस्ताररूपत्वादाकाशस्य च प्रदेशवत्त्वम् कालाणोस्तु द्रव्येण प्रदेशमात्रत्वात्पर्यायेण तु परस्परसंपर्कासंभवादप्रदेशत्वमेवास्ति ततः कालद्रव्यमप्रदेशं शेषद्रव्याणि प्रदेशवन्ति ।।१३५।।

अथ क्वामी प्रदेशिनोऽप्रदेशाश्चावस्थिता इति प्रज्ञापयति

लोगालोगेसु णभो धम्माधम्मेहिं आददो लोगो

सेसे पडुच्च कालो जीवा पुण पोग्गला सेसा ।।१३६।।
लोकालोकयोर्नभो धर्माधर्माभ्यामाततो लोकः
शेषौ प्रतीत्य कालो जीवाः पुनः पुद्गलाः शेषौ ।।१३६।।

धर्माधर्मयोः पुनरवस्थितरूपेण लोकाकाशप्रमितासंख्येयप्रदेशत्वम् स्कन्धाकारपरिणतपुद्गलानां तु संख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशत्वम् किंतु पुद्गलव्याख्याने प्रदेशशब्देन परमाणवो ग्राह्या, न च क्षेत्र- प्रदेशाः कस्मात् पुद्गलानामनन्तप्रदेशक्षेत्रेऽवस्थानाभावादिति परमाणोर्व्यक्तिरूपेणैकप्रदेशत्वं शक्तिरूपेणोपचारेण बहुप्रदेशत्वं च आकाशस्यानन्ता इति णत्थि पदेस त्ति कालस्स न सन्ति प्रदेशा इति कालस्य कस्मात् द्रव्यरूपेणैकप्रदेशत्वात्, परस्परबन्धाभावात्पर्यायरूपेणापीति ।।१३५।। अथ तमेवार्थं द्रढयति

एदाणि पंचदव्वाणि उज्झियकालं तु अत्थिकाय त्ति ।।।
भण्णंते काया पुण बहुप्पदेसाण पचयत्तं ।।।।।।११।।।।।।

प्रदेशवान छे; सकळलोकव्यापी असंख्य प्रदेशोना प्रस्ताररूप होवाथी अधर्म प्रदेशवान छे; अने सर्वव्यापी अनंत प्रदेशोना प्रस्ताररूप होवाथी आकाश प्रदेशवान छे. काळाणु तो द्रव्ये प्रदेशमात्र होवाथी अने पर्याये परस्पर संपर्क नहि होवाथी अप्रदेशी ज छे.

माटे काळद्रव्य अप्रदेशी छे अने शेष द्रव्यो प्रदेशवंत छे. १३५.
हवे प्रदेशी अने अप्रदेशी द्रव्यो क्यां रहेलां छे ते जणावे छेः
लोके अलोके आभ, लोक अधर्म -धर्मथी व्याप्त छे,
छे शेष -आश्रित काळ, ने जीव -पुद्गलो ते शेष छे.१३६.

अन्वयार्थः[नभः] आकाश [लोकालोकयोः] लोकालोकमां छे, [लोकः] लोक [धर्माधर्माभ्याम् आततः] धर्म ने अधर्मथी व्याप्त छे, [शेषौ प्रतीत्य] बाकीनां बे द्रव्योनो आश्रय करीने [कालः] काळ छे, [पुनः] अने [शेषौ] ते बाकीनां बे द्रव्यो [जीवाः पुद्गलाः] जीवो ने पुद्गलो छे.

२६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-