Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gnan Gney VibhAg Adhikar Gatha: 145.

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सपदेसेहिं समग्गो लोगो अट्ठेहिं णिट्ठिदो णिच्चो जो तं जाणदि जीवो पाणचदुक्काभिसंबद्धो ।।१४५।।

सप्रदेशैः समग्रो लोकोऽर्थैर्निष्ठितो नित्यः
यस्तं जानाति जीवः प्राणचतुष्काभिसम्बद्धः ।।१४५।।

एवमाकाशपदार्थादाकालपदार्थाच्च समस्तैरेव संभावितप्रदेशसद्भावैः पदार्थैः समग्र एव यः समाप्तिं नीतो लोकस्तं खलु तदन्तःपातित्वेऽप्यचिन्त्यस्वपरपरिच्छेदशक्तिसंपदा जीव एव जानीते, नत्वितरः एवं शेषद्रव्याणि ज्ञेयमेव, जीवद्रव्यं तु ज्ञेयं ज्ञानं चेति ज्ञान- ज्ञेयविभागः अथास्य जीवस्य सहजविजृम्भितानन्तज्ञानशक्तिहेतुके त्रिसमयावस्थायित्वलक्षणे वि भविया तं जाणह सम्ममाहप्पं’’ ।।१४४।। एवं निश्चयकालव्याख्यानमुख्यत्वेनाष्टमस्थले गाथात्रयं गतम् इति पूर्वोक्तप्रकारेण ‘दव्वं जीवमजीवं’ इत्याद्येकोनविंशतिगाथाभिः स्थलाष्टकेन विशेष- ज्ञेयाधिकारः समाप्तः ।। अतः परं शुद्धजीवस्य द्रव्यभावप्राणैः सह भेदनिमित्तं ‘सपदेसेहिं समग्गो’

सप्रदेश अर्थोथी समाप्त समग्र लोक सुनित्य छे;
तसु जाणनारो जीव, प्राणचतुष्कथी संयुक्त जे.१४५.

अन्वयार्थः[सप्रदेशैः अर्थैः] सप्रदेश पदार्थो वडे [निष्ठितः] समाप्ति पामेलो [समग्रः लोकः] आखो लोक [नित्यः] नित्य छे. [तं] तेने [यः जानाति] जे जाणे छे [जीवः] ते जीव छे[प्राणचतुष्काभिसंबद्धः] के जे (संसारदशामां) चार प्राणोथी संयुक्त छे.

टीकाःए प्रमाणे, प्रदेशनो सद्भाव जेमने फलित थयो छे एवा जे आकाशपदार्थथी मांडीने काळपदार्थ सुधीना बधाय पदार्थो तेमना वडे समाप्ति पामेलो जे आखोय लोक, तेने खरेखर तेमां अंतःपाती होवा छतां अचिंत्य एवी स्व -परने जाणवानी शक्तिरूप संपदा वडे जीव ज जाणे छे, परंतु बीजुं कोई जाणतुं नथी. ए रीते बाकीनां द्रव्यो ज्ञेय ज छे अने जीवद्रव्य तो ज्ञेय तेम ज ज्ञान छे;आम ज्ञान अने ज्ञेयनो विभाग छे.

हवे आ जीवने, सहजपणे प्रगट (स्वभावथी ज प्रगट) एवी अनंतज्ञानशक्ति जेनो हेतु छे अने त्रणे काळे अवस्थायीपणुं (टकवापणुं) जेनुं लक्षण छे एवुं, वस्तुना स्वरूपभूत

२८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

१. छ द्रव्योथी ज आखो लोक समाप्त थाय छे अर्थात् ते द्रव्यो उपरान्त बीजुं कांई लोकमां नथी.

२. अंतःपाती = अंदर आवी जतो; अंदर समाई जतो. (जीव लोकनी अंदर आवी जाय छे.)