Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
३०१

ततः स्वरूपास्तित्वमेव स्वपरविभागसिद्धये प्रतिपदमवधार्यम् तथाहियच्चेतनत्वान्वयलक्षणं द्रव्यं, यश्चेतनाविशेषत्वलक्षणो गुणो, यश्चेतनत्वव्यतिरेकलक्षणः पर्यायस्तत्त्रयात्मकं, या पूर्वोत्तरव्यतिरेकस्पर्शिना चेतनत्वेन स्थितिर्यावुत्तरपूर्वव्यतिरेकत्वेन चेतनस्योत्पादव्ययौ तत्त्रयात्मकं च स्वरूपास्तित्वं यस्य नु स्वभावोऽहं स खल्वयमन्यः यच्चाचेतनत्वान्वयलक्षणं द्रव्यं, योऽचेतनाविशेषत्वलक्षणो गुणो, योऽचेतनत्वव्यतिरेकलक्षणः पर्यायस्तत्त्रयात्मकं, या पूर्वोत्तरव्यतिरेकस्पर्शिनाचेतनत्वेन स्थितिर्यावुत्तरपूर्वव्यतिरेकत्वेनाचेतनस्योत्पादव्ययौ तत्त्रयात्मकं च स्वरूपास्तित्वं यस्य तु स्वभावः पुद्गलस्य स खल्वयमन्यः नास्ति मे मोहोऽस्ति स्वपरविभागः ।।१५४।। सद्भावनिबद्धम् पुनरपि किंविशिष्टम् तिहा समक्खादं त्रिधा समाख्यातं कथितम् केवलज्ञानादयो गुणाः सिद्धत्वादिविशुद्धपर्यायास्तदुभयाधारभूतं परमात्मद्रव्यत्वमित्युक्तलक्षणत्रयात्मकं तथैव शुद्धोत्पादव्ययध्रौव्यत्रयात्मकं च यत्पूर्वोक्तं स्वरूपास्तित्वं तेन कृत्वा त्रिधा सम्यगाख्यातं कथितं प्रतिपादितम् पुनरपि कथंभूतं आत्मस्वभावम् सवियप्पं सविकल्पं पूर्वोक्तद्रव्यगुणपर्यायरूपेण सभेदम् य इत्थंभूतमात्मस्वभावं जानाति, ण मुहदि सो अण्णदवियम्हि न मुह्यति सोऽन्यद्रव्ये, स तु विभागनो हेतु थाय छे, तेथी स्वरूप -अस्तित्व ज स्व -परना विभागनी सिद्धि माटे पदे पदे अवधारवुं (-ख्यालमां लेवुं). ते आ प्रमाणेः

(१) चेतनपणानो अन्वय जेनुं लक्षण छे एवुं जे द्रव्य, (२) चेतनाविशेषत्व (-चेतनानुं विशेषपणुं) जेनुं लक्षण छे एवो जे गुण अने (३) चेतनपणानो व्यतिरेक जेनुं लक्षण छे एवो जे पर्यायए त्रयात्मक (एवुं स्वरूप -अस्तित्व), तथा (१) *पूर्व ने उत्तर व्यतिरेकने स्पर्शनारा चेतनपणे जे ध्रौव्य अने (२ -३) चेतनना उत्तर ने पूर्व व्यतिरेकपणे जे उत्पाद ने व्ययए त्रयात्मक (एवुं) स्वरूप -अस्तित्व जेनो स्वभाव छे एवो हुं ते खरेखर आ अन्य छुं (अर्थात् हुं पुद्गलथी आ जुदो रह्यो). अने (१) अचेतनपणानो अन्वय जेनुं लक्षण छे एवुं जे द्रव्य, (२) अचेतनाविशेषत्व जेनुं लक्षण छे एवो जे गुण अने (३) अचेतनपणानो व्यतिरेक जेनुं लक्षण छे एवो जे पर्यायए त्रयात्मक (एवुं स्वरूप -अस्तित्व) तथा (१) पूर्व ने उत्तर व्यतिरेकने स्पर्शनारा अचेतनपणे जे ध्रौव्य अने (२ -३) अचेतनना उत्तर ने पूर्व व्यतिरेकपणे जे उत्पाद ने व्ययए त्रयात्मक (एवुं) स्वरूप -अस्तित्व जे पुद्गलनो स्वभाव छे ते खरेखर आ (माराथी) अन्य छे. (माटे) मने मोह नथी; स्व -परनो विभाग छे.

*पूर्व एटले पहेलांनो; उत्तर एटले पछीनो. (चेतन पहेलांना अने पछीना बन्ने पर्यायोने स्पर्शे
छे तेथी ते अपेक्षाए ध्रौव्य छे, पछीना अर्थात्
वर्तमान पर्यायनी अपेक्षाए उत्पाद छे अने पहेलांना पर्यायनी अपेक्षाए व्यय छे.)