Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 166.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
३१७
अथ परमाणूनां पिण्डत्वस्य यथोदितहेतुत्वमवधारयति

णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धेण बंधमणुभवदि

लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुत्तो ।।१६६।।
स्निग्धत्वेन द्विगुणश्चतुर्गुणस्निग्धेन बन्धमनुभवति
रूक्षेण वा त्रिगुणितोऽणुर्बध्यते पञ्चगुणयुक्तः ।।१६६।।

यथोदितहेतुकमेव परमाणूनां पिण्डत्वमवधार्यं, द्विचतुर्गुणयोस्त्रिपञ्चगुणयोश्च द्वयोः स्निग्धयोः द्वयो रूक्षयोर्द्वयोः स्निग्धरूक्षयोर्वा परमाण्वोर्बन्धस्य प्रसिद्धेः उक्तं च ‘‘णिद्धा णिद्धेण बज्झंति लुक्खा लुकखा य पोग्गला णिद्धलुक्खा य बज्झंति रूवारूवी य पोग्गला ।।’’ त्रिशक्तियुक्तरूक्षस्य पञ्चगुणरूक्षेण स्निग्धेन वा विषमसंज्ञेन द्विगुणाधिकत्वे सति बन्धो भवतीति ज्ञातव्यम् अयं तु विशेषःपरमानन्दैकलक्षणस्वसंवेदनज्ञानबलेन हीयमानरागद्वेषत्वे सति पूर्वोक्त-

हवे परमाणुओने पिंडपणामां यथोक्त हेतु छे (अर्थात् उपर कह्युं ते ज कारण छे) एम नक्की करे छेः

चतुरंश को स्निग्धाणु सह द्वय -अंशमय स्निग्धाणुनो;
पंचांशी अणु सह बंध थाय त्रयांशमय रूक्षाणुनो. १६६.

अन्वयार्थः[स्निग्धत्वेन द्विगुणः] स्निग्धपणे बे अंशवाळो परमाणु [चतुर्गुण- स्निग्धेन] चार अंशवाळा स्निग्ध (अथवा रूक्ष) परमाणु साथे [बन्धम् अनुभवति] बंध अनुभवे छे; [वा] अथवा [रूक्षेण त्रिगुणितः अणुः] रूक्षपणे त्रण अंशवाळो परमाणु [पञ्चगुणयुक्त :] पांच अंशवाळा साथे जोडायो थको [बध्यते] बंधाय छे.

टीकाःयथोक्त हेतुथी ज परमाणुओने पिंडपणुं थाय छे एम नक्की करवुं, कारण के बे अने चार गुणवाळा तथा त्रण अने पांच गुणवाळाएवा बे स्निग्ध परमाणुओने अथवा एवा बे रूक्ष परमाणुओने अथवा एवा बे स्निग्ध -रूक्ष परमाणुओने (एक स्निग्ध अने एक रूक्ष परमाणुने) बंधनी प्रसिद्धि छे. कह्युं छे केः

‘णिद्धा णिद्धेण बज्झंति लुक्खा लुक्खा य पोग्गला
णिद्धलुक्खा य बज्झंति रूवारूवी य पोग्गला ।।
‘णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण

णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा ।।