इति । स एव वीतरागसर्वज्ञप्रणीतोपदेशात् एकेन्द्रियविकलेन्द्रियपञ्चेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्तमनुष्यदेशकुल-
आत्मद्रव्य क्रियानये अनुष्ठाननी प्रधानताथी सिद्धि सधाय एवुं छे, थांभला वडे माथुं भेदातां द्रष्टि उत्पन्न थईने जेने निधान मळे छे एवा अंधनी माफक. [क्रियानये आत्मा अनुष्ठाननी प्रधानताथी सिद्धि थाय एवो छे, जेम कोई अंध पुरुषने पत्थरना थांभला साथे माथुं फोडवाथी माथामांना लोहीनो विकार दूर थवाने लीधे आंखो खूली जाय अने निधान प्राप्त थाय तेम.] ४२.
आत्मद्रव्य ज्ञाननये विवेकनी प्रधानताथी सिद्धि सधाय एवुं छे, चणानी मुठ्ठी दईने चिंतामणि खरीदनार एवो जे घरना खूणामां रहेलो वेपारी तेनी माफक. [ज्ञाननये आत्माने विवेकनी प्रधानताथी सिद्धि थाय छे, जेम घरना खूणामां बेठेलो वेपारी चणानी मुठ्ठी दईने चिंतामणि खरीदी ले तेम.] ४३.
आत्मद्रव्य व्यवहारनये बंध अने मोक्षने विषे +द्वैतने अनुसरनारुं छे, बंधक (बंध करनार) अने मोचक (मुक्त करनार) एवा अन्य परमाणु साथे संयुक्त थता अने तेनाथी वियुक्त थता एवा परमाणुनी माफक. [व्यवहारनये आत्मा बंध अने मोक्षमां (पुद्गल साथे) द्वैतने पामे छे, जेम परमाणुना बंधने विषे ते परमाणु अन्य परमाणु साथे संयोग पामवारूप द्वैतने पामे छे अने परमाणुना मोक्षने विषे ते परमाणु अन्य परमाणुथी छूटो थवारूप द्वैतने पामे छे तेम.] ४४.
आत्मद्रव्य निश्चयनये बंध अने मोक्षने विषे अद्वैतने अनुसरनारुं छे, एकलो बंधातो अने मुकातो एवो जे बंधमोक्षोचित स्निग्धत्वरूक्षत्वगुणे परिणत परमाणु तेनी माफक. [निश्चयनये आत्मा एकलो ज बद्ध अने मुक्त थाय छे, जेम बंध अने मोक्षने उचित एवा स्निग्धत्वगुणे के रूक्षत्वगुणे परिणमतो परमाणु एकलो ज बद्ध अने मुक्त थाय छे तेम.] ४५.
आत्मद्रव्य अशुद्धनये, घट अने रामपात्रथी विशिष्ट माटीमात्रनी माफक, सोपाधिस्वभाववाळुं छे. ४६.
आत्मद्रव्य शुद्धनये, केवळ माटीमात्रनी माफक, निरुपाधिस्वभाववाळुं छे. ४७. +द्वैत = बे -पणुं. [व्यवहारनये आत्माना बंधने विषे कर्म साथेना संयोगनी अपेक्षा आवती होवाथी द्वैत छे अने आत्माना मोक्षने विषे कर्मना वियोगनी अपेक्षा आवती होवाथी त्यां पण द्वैत छे.]