भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत सर्वोत्कृष्ट परमागमो मांहेनुं एक आ श्री प्रवचनसार गुजराती अनुवाद सहित पहेली ज वार प्रकाशित थाय छे.
‘श्रीमद् रायचंद्र जैन शास्त्रमाळा’मां प्रसिद्ध थयेल हिंदी प्रवचनसार उपर परमपूज्य सद्गुरुदेवे प्रथम सोनगढमां व्याख्यानो कर्यां हतां अने त्यार पछी वि. सं. १९९९मां राजकोटना चातुर्मास दरमियान तेना भावो व्याख्यान द्वारा प्रगट कर्या हता. ते वखते एम जणायुं हतुं के — पं. हेमराजजीए जे हिंदीभाषाटीका करी छे ते मात्र बालावबोधरूप होवाथी तेमां श्री अमृतचंद्रसूरिकृत संस्कृत टीकाना पूरेपूरा भावो आवी शक्या नथी, तेथी जो आ महान शास्त्रनो अक्षरशः अनुवाद गुजराती भाषामां प्रसिद्ध थाय तो जिज्ञासुओने महा लाभनुं कारण थाय. आथी, आ ग्रंथनुं गुजराती भाषामां प्रकाशन करवानो आ संस्थाए निर्णय कर्यो हतो. आम, समयसारनी जेम आ प्रवचनसार पण पूज्य गुरुदेवश्रीना प्रभावनी ज प्रसादी छे; निरंतर अध्यात्मशास्त्रोनुं रहस्य समजावीने तेओश्री आपणा उपर जे महान उपकार करी रह्या छे ते उपकारने वाणी द्वारा व्यक्त करवाने आ संस्था सर्वथा असमर्थ छे.
प्रवचनसारना गुजराती अनुवादनुं कार्य भाईश्री हिंमतलाल जेठालाल शाहथी ज थई शके तेम होवाथी, श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्टे तेमने अनुवाद करी आपवा माटे विनंती करी, अने तेमणे घणा हर्षथी अनुवाद करवानुं स्वीकार्युं. तेना फळरूपे आ अनुवाद प्रसिद्ध थवा पाम्यो छे. हवे मुमुक्षु जीवो आ शास्त्रनो पूरो लाभ लई शकशे — ए तेमनां सद्भाग्य छे. अने ते माटे पूज्य गुरुदेवश्रीनी प्रेरणा झीलीने आ अनुवाद तैयार करनार भाईश्री हिंमतलाल जेठालाल शाहनो आपणा उपर महान उपकार वर्ते छे.
श्री प्रवचनसार शास्त्रनी ‘तत्त्वदीपिका’ नामनी प्रथम संस्कृत टीका श्री अमृतचंद्रसूरिए लगभग विक्रम संवतना दसमा सैकामां करी हती. आजे तेने दस सैका वीती गया होवा छतां ते टीकानो अक्षरशः अनुवाद हिंदनी कोई देशभाषामां आज सुधी थयो न हतो, अने संस्कृतभाषाना अभ्यासीओ घणा थोडा ज होय छे तेथी, मुमुक्षु जीवोने आ शास्त्रना अभ्यासनो तथा तेना भावो समजवानो पूरो लाभ मळतो नहि; आ अक्षरशः गुजराती अनुवाद ते खोटने दूर करे छे.
आ शास्त्रनुं गुजराती भाषांतर करवानुं काम सहेलुं न हतुं. श्री जैनधर्मना एक महान निर्ग्रंथ आचार्य श्री अमृतचंद्रसूरिए श्री प्रवचनसार उपर पोतानी तत्त्वदीपिका नामनी संस्कृत टीकामां जे उच्च अने गंभीर भावो उतार्या छे ते भावो बराबर जळवाई रहे तेवी रीते तेने स्पर्शीने अनुवाद थाय तो ज प्रकाशन संपूर्णपणे समाजने लाभदायक नीवडी शके. आ अनुवादमां श्री आचार्यदेवना मूळ भावोनी गंभीरता संपूर्णपणे जळवाई रही छे, अने अनुवादमां अनेक जग्याए फूटनोट द्वारा तेना अर्थो अने खुलासाओ करीने घणी स्पष्टता करवामां आवी छे. ए उपरांत मूळ गाथाओनो