Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 24-25.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञानतत्त्व-प्रज्ञापन
४१

सर्वमिति यावत् ततो निःशेषावरणक्षयक्षण एव लोकालोकविभागविभक्तसमस्तवस्त्वाकार- पारमुपगम्य तथैवाप्रच्युतत्वेन व्यवस्थितत्वात् ज्ञानं सर्वगतम् ।।२३।।

अथात्मनो ज्ञानप्रमाणत्वानभ्युपगमे द्वौ पक्षावुपन्यस्य दूषयति
णाणप्पमाणमादा ण हवदि जस्सेह तस्स सो आदा
हीणो वा अहिओ वा णाणादो हवदि धुवमेव ।।२४।।
हीणो जदि सो आदा तण्णाणमचेदणं ण जाणादि
अहिओ वा णाणादो णाणेण विणा कहं णादि ।।२५।। जुगलं

लोकं भवति शुद्धबुद्धैकस्वभावसर्वप्रकारोपादेयभूतपरमात्मद्रव्यादिषड्द्रव्यात्मको लोकः, लोकाद्बहि- र्भागे शुद्धाकाशमलोकः, तच्च लोकालोकद्वयं स्वकीयस्वकीयानन्तपर्यायपरिणतिरूपेणानित्यमपि द्रव्यार्थिकनयेन नित्यम् तम्हा णाणं तु सव्वगयं यस्मान्निश्चयरत्नत्रयात्मकशुद्धोपयोगभावनाबलेनोत्पन्नं यत्केवलज्ञानं तट्टङ्कोत्कीर्णाकारन्यायेन निरन्तरं पूर्वोक्तज्ञेयं जानाति, तस्माद्वयवहारेण तु ज्ञानं सर्वगतं भण्यते ततः स्थितमेतदात्मा ज्ञानप्रमाणं ज्ञानं सर्वगतमिति ।।२३।। अथात्मानं ज्ञानप्रमाणं ये न मन्यन्ते तत्र हीनाधिकत्वे दूषणं ददातिणाणप्पमाणमादा ण हवदि जस्सेह ज्ञानप्रमाणमात्मा न भवति


बधुंय छे. (ज्ञेय तो छये द्रव्यनो समूह एटले के बधुंय छे.) माटे निःशेष आवरणना क्षयनी क्षणे ज लोक अने अलोकना विभागथी विभक्त समस्त वस्तुओना आकारोना पारने पामीने ए रीते ज अच्युतपणे रहेतुं होवाथी ज्ञान सर्वगत छे.

भावार्थःगुण -पर्यायोथी द्रव्य अनन्य छे माटे आत्मा ज्ञानथी हीन -अधिक नहि होवाथी ज्ञान जेवडो ज छे; अने जेम दाह्यने (बळवायोग्य पदार्थने) अवलंबनार दहन दाह्यनी बराबर ज छे तेम ज्ञेयने अवलंबनार ज्ञान ज्ञेयनी बराबर ज छे. ज्ञेय तो समस्त लोकालोक अर्थात् बधुंय छे. माटे, सर्व आवरणनो क्षय थतां ज (ज्ञान) सर्वने जाणतुं होवाथी अने पछी कदी सर्वने जाणवामांथी च्युत नहि थतुं होवाथी ज्ञान सर्वव्यापक छे. २३.

हवे आत्माने ज्ञानप्रमाण नहि मानवामां बे पक्ष रजू करीने दोष बतावे छेः जीवद्रव्य ज्ञानप्रमाण नहिए मान्यता छे जेहने, तेना मते जीव ज्ञानथी हीन के अधिक अवश्य छे; २४. जो हीन आत्मा होय, नव जाणे अचेतन ज्ञान ए, ने अधिक ज्ञानथी होय तो वण ज्ञान कयम जाणे अरे? २५.

प्र. ६