Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 32.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञानतत्त्व-प्रज्ञापन
५३

अथैवं ज्ञानिनोऽर्थैः सहान्योन्यवृत्तिमत्त्वेऽपि परग्रहणमोक्षणपरिणमनाभावेन सर्वं पश्यतोऽध्यवस्यतश्चात्यन्तविविक्तत्वं भावयति

गेण्हदि णेव ण मुंचदि ण परं परिणमदि केवली भगवं
पेच्छदि समंतदो सो जाणदि सव्वं णिरवसेसं ।।३२।।
गृह्णाति नैव न मुञ्चति न परं परिणमति केवली भगवान्
पश्यति समन्ततः स जानाति सर्वं निरवशेषम् ।।३२।।

मुंचदि गृह्णाति नैव मुञ्चति नैव ण परं परिणमदि परं परद्रव्यं ज्ञेयपदार्थं नैव परिणमति स कः कर्ता केवली भगवं केवली भगवान् सर्वज्ञः ततो ज्ञायते परद्रव्येण सह भिन्नत्वमेव तर्हि किं

कार्यमां कारणनो उपचार करीने ‘मयूरादि दर्पणमां छे’ एम व्यवहारथी कहेवाय छे. एवी

रीते ज्ञानदर्पणमां पण सर्व पदार्थोना समस्त ज्ञेयाकारोनां प्रतिबिंब पडे छे अर्थात् पदार्थोना ज्ञेयाकारोना निमित्ते ज्ञानमां ज्ञाननी अवस्थारूप ज्ञेयाकारो थाय छे (कारण के जो एम न थाय तो ज्ञान सर्व पदार्थोने जाणी शके ज नहि). त्यां निश्चयथी तो ज्ञानमां थता ज्ञेयाकारो ज्ञाननी ज अवस्था छे, पदार्थोना ज्ञेयाकारो कांइ ज्ञानमां पेठा नथी. निश्चयथी आम होवा छतां व्यवहारथी जोइए तो, ज्ञानमां थता ज्ञेयाकारोनां कारण पदार्थोना ज्ञेयाकारो छे अने तेमनां कारण पदार्थो छेए रीते परंपराए ज्ञानमां थता ज्ञेयाकारोनां कारण पदार्थो छे; माटे ते (ज्ञाननी अवस्थारूप) ज्ञेयाकारोने ज्ञानमां देखीने, कार्यमां कारणनो उपचार करीने ‘पदार्थो ज्ञानमां छे’ एम व्यवहारथी कही शकाय छे. ३१.

हवे, ए रीते (व्यवहारे) आत्माने पदार्थो साथे एकबीजामां वर्तवापणुं होवा छतां, (निश्चयथी) ते परने ग्रह्या -मूक्या विना तथा पररूपे परिणम्या विना सर्वने देखतो -जाणतो होवाथी तेने (पदार्थो साथे) अत्यंत भिन्नपणुं छे एम दर्शावे छेः

प्रभुकेवळी न ग्रहे, न छोडे, पररूपे नव परिणमे;
देखे अने जाणे निःशेषे सर्वतः ते सर्वने. ३२.

अन्वयार्थः[केवली भगवान्] केवळीभगवान [परं] परने [न एव गृह्णाति] ग्रहता नथी, [न मुंचति] छोडता नथी, [न परिणमति] पररूपे परिणमता नथी; [सः] तेओ [निरवशेषं सर्वं] निरवशेषपणे सर्वने (आखा आत्माने, सर्व ज्ञेयोने) [समन्ततः] सर्व तरफथी (सर्व आत्मप्रदेशेथी) [पश्यति जानाति] देखे -जाणे छे.

*

*प्रतिबिंबो नैमित्तिक कार्य छे अने मयूरादि निमित्त -कारण छे.