प्रवचनसारनी आ छठ्ठी आवृत्ति अगाउनी आवृत्ति प्रमाणे ज छपावी छे. मुद्रणकार्य ‘कहान मुद्रणालय’ना मालिक श्री ज्ञानचंदजी जैने अल्प समयमां काळजीपूर्वक सारुं करी आप्युं छे ते बदल तेमनो ट्रस्ट आभार माने छे.
बीजी आवृत्ति प्रसंगे श्री जयसेनाचार्यकृत ‘तात्पर्यवृत्ति’ नामनी संस्कृत टीका जे उमेरवामां आवी छे ते ब्र० भाईश्री चंदुभाई झोबाळियाए जयपुरनी हस्तलिखित प्रतना आधारे सुधारी आपी छे. ऊंडा आदर्श आत्मार्थी पंडितरत्न श्री हिंमतलालभाई शाहनो उपोद्घात शब्दशः आ आवृत्तिमां लीधेल छे.
आ ‘प्रवचनसार’ सर्वज्ञ तीर्थंकर परमात्माना दिव्यध्वनिनो सार छे. पूज्य गुरुदेवश्रीना श्रीमुखे तेना उपरनां अत्यंत गूढ अने मार्मिक प्रवचनो साक्षात् सांभळवा मळेल अने हालमां टेप -अवतीर्ण ते प्रवचनो सांभळवा मळे छे तेथी आपणे सौ तेमना अत्यंत ॠणी छीए अने तेथी तेमने हार्दिक उपकृतभावभीनी वंदना करीए छीए.
आ शास्त्रमां दर्शावेला भावोने यथार्थपणे समजी, अंतरमां तेनुं परिणमन करी, अतीन्द्रिय ज्ञाननी प्राप्ति द्वारा अतीन्द्रिय आनंदने सर्वे जीवो आस्वादो एवी आंतरिक भावना भावीए छीए.
फागण वद दसम, पू. बहेनश्री चंपाबेननी ७५मी सम्यक्त्व -जयंती, वि. सं. २०६३, इ. स. २००७