यो हि नामार्हन्तं द्रव्यत्वगुणत्वपर्ययत्वैः परिच्छिनत्ति स खल्वात्मानं परिच्छिनत्ति, व्यतिरेकरूपेण दृढयति — चत्ता पावारंभं पूर्वं गृहवासादिरूपं पापारम्भं त्यक्त्वा समुट्ठिदो वा सुहम्मि चरियम्हि सम्यगुपस्थितो वा पुनः । क्व । शुभचरित्रे । ण जहदि जदि मोहादी न त्यजति यदि चेन्मोहरागद्वेषान् ण लहदि सो अप्पगं सुद्धं न लभते स आत्मानं शुद्धमिति । इतो विस्तरः — कोऽपि मोक्षार्थी परमोपेक्षालक्षणं परमसामायिकं पूर्वं प्रतिज्ञाय पश्चाद्विषयसुखसाधकशुभोपयोगपरिणत्या मोहितान्तरङ्गः सन् निर्विकल्पसमाधिलक्षणपूर्वोक्तसामायिकचारित्राभावे सति निर्मोहशुद्धात्मतत्त्वप्रति- पक्षभूतान् मोहादीन्न त्यजति यदि चेत्तर्हि जिनसिद्धसदृशं निजशुद्धात्मानं न लभत इति सूत्रार्थः ।।७९।। nikaT chhe evo, shuddha ( – vikAr rahit, nirmaL) AtmAne kem pAme? (na ja pAme.) tethI mohanI senA upar vijay meLavavA mATe men kamar kasI chhe. 79.
have, ‘mAre mohanI senAne kaI rIte jItavI’ — em (tene jItavAno) upAy vichAre chhe —
anvayArtha — [यः] je [अर्हन्तं] arhantane [द्रव्यत्वगुणत्वपर्ययत्वैः] dravyapaNe, guNapaNe ane paryAyapaNe [जानाति] jANe chhe, [सः] te [आत्मानं] (potAnA) AtmAne [जानाति] jANe chhe ane [तस्य मोहः] teno moh [खलु] avashya [लयं याति] lay pAme chhe.