Pravachansar (Hindi).

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શ્રી દિગંબર જૈન સ્વાધ્યાયમંદિર ટ્રસ્ટ, સોનગઢ - ૩૬૪૨૫૦
मात्रम् घातिकर्माणि हि महामोहोत्पादकत्वादुन्मत्तकवदतस्मिंस्तद्बुद्धिमाधाय परिच्छेद्यमर्थं
प्रत्यात्मानं यतः परिणामयन्ति, ततस्तानि तस्य प्रत्यर्थं परिणम्य परिणम्य श्राम्यतः
खेदनिदानतां प्रतिपद्यन्ते
तदभावात्कुतो हि नाम केवले खेदस्योद्भेदः यतश्च त्रिसमया-
वच्छिन्नसकलपदार्थपरिच्छेद्याकारवैश्वरूप्यप्रकाशनास्पदीभूतं चित्रभित्तिस्थानीयमनन्तस्वरूपं
स्वयमेव परिणमत् केवलमेव परिणामः, ततः कुतोऽन्यः परिणामो यद्द्वारेण खेदस्यात्म-
लाभः
यतश्च समस्तस्वभावप्रतिघाताभावात्समुल्लसितनिरंकु शानन्तशक्तितया सकलं
त्रैकालिकं लोकालोकाकारमभिव्याप्य कूटस्थत्वेनात्यन्तनिष्पकम्पं व्यवस्थितत्वादनाकुलतां
यत्केवलमिति ज्ञानं तत्सौख्यं भवति, तस्मात् खेदो तस्स ण भणिदो तस्य केवलज्ञानस्य खेदो दुःखं न
भणितम् तदपि कस्मात् जम्हा घादी खयं जादा यस्मान्मोहादिघातिकर्माणि क्षयं गतानि तर्हि
तस्यानन्तपदार्थपरिच्छित्तिपरिणामो दुःखकारणं भविष्यति नैवम् परिणमं च सो चेव तस्य
केवलज्ञानस्य संबन्धी परिणामश्च स एव सुखरूप एवेति इदानीं विस्तरःज्ञानदर्शनावरणोदये सति
युगपदर्थान् ज्ञातुमशक्यत्वात् क्रमकरणव्यवधानग्रहणे खेदो भवति, आवरणद्वयाभावे सति युगपद्ग्रहणे
केवलज्ञानस्य खेदो नास्तीति सुखमेव
तथैव तस्य भगवतो जगत्त्रयकालत्रयवर्तिसमस्तपदार्थ-
युगपत्परिच्छित्तिसमर्थमखण्डैकरूपं प्रत्यक्षपरिच्छित्तिमयं स्वरूपं परिणमत्सत् केवलज्ञानमेव परिणामो, न
१. अतत्में तत्बुद्धि = वस्तु जिसस्वरूप नहीं है उस स्वरूप होनेकी मान्यता; जैसे किजड़में चेतनबुद्धि
(अर्थात् जड़में चेतनकी मान्यता) दुःखमें सुखबुद्धि वगैरह
२. प्रतिघात = विघ्न; रुकावट; हनन; घात
३. कूटस्थ = सदा एकरूप रहनेवाला; अचल (केवलज्ञान सर्वथा अपरिणामी नहीं है, किन्तु वह एक ज्ञेयसे
दूसरे ज्ञेयके प्रति नहीं बदलतासर्वथा तीनों कालके समस्त ज्ञेयाकारोंको जानता है, इसलिये उसे कूटस्थ
कहा है)
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञानतत्त्व -प्रज्ञापन
१०५
प्र. १४
(१) खेदके आयतन (-स्थान) घातिकर्म हैं, केवल परिणाममात्र नहीं घातिकर्म
महा मोहके उत्पादक होनेसे धतूरेकी भाँति अतत्में तत् बुद्धि धारण करवाकर आत्माको
ज्ञेयपदार्थके प्रति परिणमन कराते हैं; इसलिये वे घातिकर्म, प्रत्येक पदार्थके प्रति परिणमित हो-
होकर थकनेवाले आत्माके लिये खेदके कारण होते हैं
उनका (घातिकर्मोंका) अभाव होनेसे
केवलज्ञानमें खेद कहाँसे प्रगट होगा ? (२) और तीनकालरूप तीन भेद जिसमें किये जाते
हैं ऐसे समस्त पदार्थोंकी ज्ञेयाकाररूप (विविधताको प्रकाशित करनेका स्थानभूत केवलज्ञान,
चित्रित् दीवारकी भाँति, स्वयं) ही अनन्तस्वरूप स्वयमेव परिणमित होनेसे केवलज्ञान ही
परिणाम है
इसलिये अन्य परिणाम कहाँ हैं कि जिनसे खेदकी उत्पत्ति हो ? (३) और,
केवलज्ञान समस्त स्वभावप्रतिघातके अभावके कारण निरंकुश अनन्त शक्तिके उल्लसित
होनेसे समस्त त्रैकालिक लोकालोकके -आकारमें व्याप्त होकर कूटस्थतया अत्यन्त निष्कंप है,