Pravachansar (Hindi).

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टीकाके अंतमें लिखा है कि‘‘पद्मनंदी, कुन्दकुन्दाचार्य, वक्रग्रीवाचार्य, ऐलाचार्य,
गृध्रपिच्छाचार्य,इन पाँच नामोंसे युक्त तथा जिन्हें चार अंगुल ऊ पर आकाशमें चलनेकी
ऋद्धि प्राप्त थी, और जिन्होंने पूर्वविदेहमें जाकर सीमंधरभगवानकी वंदना की थी तथा
उनके पाससे प्राप्त श्रुतज्ञानके द्वारा जिन्होंने भारतवर्षके भव्य जीवोंको प्रतिबोधित किया
है, उन श्री जिनचन्द्रसूरिभट्टारकके पट्टके आभरणरूप कलिकालसर्वज्ञ (भगवान
कुन्दकुन्दाचार्यदेव)के द्वारा रचित इस षट्प्राभृत ग्रन्थमें........सूरीश्वर श्री श्रुतसागर द्वारा
रचित मोक्षप्राभृतकी टीका समाप्त हुई
’’ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यदेवकी महत्ता बतानेवाले
ऐसे अनेकानेक उल्लेख जैन साहित्यमें मिलते हैं; कई शिलालेखोंमें भी उल्लेख पाया
जाता है इस प्रकार हम देखते हैं कि सनातन जैन (दिगम्बर) संप्रदायमें कलिकालसर्वज्ञ
भगवान् कुंदकुंदाचार्यका अद्वितीय स्थान है
भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेव द्वारा रचित अनेक शास्त्र हैं जिनमेंसे थोडेसे वर्तमानमें
विद्यमान है त्रिलोकीनाथ सर्वज्ञदेवके मुखसे प्रवाहित श्रुतामृतकी सरितामेंसे भर लिए गए
वह अमृतभाजन वर्तमानमें भी अनेक आत्मार्थियोंको आत्मजीवन प्रदान करते हैं उनके
समयसार, पंचास्तिकाय और प्रवचनसार नामक तीन उत्तमोत्तम शास्त्र ‘प्राभृतत्रय’ कहलाते
हैं
इन तीन परमागमोंमें हजारों शास्त्रोंका सार आ जाता है भगवान कुंदकुंदाचार्यके बाद
लिखे गए अनेक ग्रंथोंके बीज इन तीन परमागमोंमें विद्यमान हैं,ऐसा सूक्ष्मदृष्टिसे अभ्यास
करने पर स्पष्ट ज्ञात होता है श्री समयसार इस भरतक्षेत्रका सर्वोत्कृष्ट परमागम है उसमें
नव तत्त्वोंका शुद्धनयकी दृष्टिसे निरूपण करके जीवका शुद्ध स्वरूप सर्व प्रकारसेआगम,
युक्ति, अनुभव और परम्परासेअति विस्तारपूर्वक समझाया है पंचास्तिकायमें छह द्रव्यों
और नव तत्त्वोंका स्वरूप संक्षेपमें कहा गया है प्रवचनसारमें उसके नामानुसार
जिनप्रवचनका सार संगृहीत किया गया है जैसे समयसारमें मुख्यतया दर्शनप्रधान निरूपण
है उसीप्रकार प्रवचनसारमें मुख्यतया ज्ञानप्रधान कथन है
श्री प्रवचनसारके प्रारम्भमें ही शास्त्रकर्ताने वीतरागचारित्रके लिए अपनी तीव्र आकांक्षा
व्यक्त की है बारबार भीतर ही भीतर (अंतरमें) डुबकी लगाते हुए आचार्यदेव निरन्तर
भीतर ही समाए रहना चाहते हैं किन्तु जब तक उस दशाको नहीं पहुँचा जाता तब तक
अंतर अनुभवसे छूटकर बारबार बाहर भी आना हो जाता है इस दशामें जिन अमूल्य
वचन मौक्तिकोंकी माला गूँथ गई वह यह प्रवचनसार परमागम है सम्पूर्ण परमागममें
वीतरागचारित्रकी तीव्राकांक्षाकी मुख्य ध्वनि गूंज रही है
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शिलालेखके लिए देखे पृष्ठ १९