अथ यदि सर्वसावद्ययोगमतीत्य चरित्रमुपस्थितोऽपि शुभोपयोगानुवृत्तिवशतया
मोहादीन्नोन्मूलयामि, ततः कुतो मे शुद्धात्मलाभ इति सर्वारम्भेणोत्तिष्ठते —
चत्ता पावारंभं समुट्ठिदो वा सुहम्मि चरियम्मि ।
ण जहदि जदि मोहादी ण लहदि सो अप्पगं सुद्धं ।।७९।।
त्यक्त्वा पापारम्भं समुत्थितो वा शुभे चरित्रे ।
न जहाति यदि मोहादीन्न लभते स आत्मकं शुद्धम् ।।७९।।
यः खलु समस्तसावद्ययोगप्रत्याख्यानलक्षणं परमसामायिकं नाम चारित्रं प्रतिज्ञायापि
शुभोपयोगवृत्त्या बकाभिसारिक येवाभिसार्यमाणो न मोहवाहिनीविधेयतामवकिरति स किल
प्रथमज्ञानकण्डिका समाप्ता । अथ शुभाशुभोपयोगनिवृत्तिलक्षणशुद्धोपयोगेन मोक्षो भवतीति पूर्वसूत्रे
भणितम् । अत्र तु द्वितीयज्ञानकण्डिकाप्रारम्भे शुद्धोपयोगाभावे शुद्धात्मानं न लभते इति तमेवार्थं
अब, सर्व सावद्ययोगको छोड़कर चारित्र अङ्गीकार किया होने पर भी यदि मैं
शुभोपयोगपरिणतिके वश होकर मोहादिका १उन्मूलन न करूँ, तो मुझे शुद्ध आत्माकी प्राप्ति
कहाँसे होगी ? — इसप्रकार विचार करके मोहादिके उन्मूलनके प्रति सर्वारम्भ (-सर्वउद्यम)
पूर्वक कटिबद्ध होता है : —
अन्वयार्थ : — [पापारम्भं ] पापरम्भको [त्यक्त्वा ] छोड़कर [शुभे चरित्रे ] शुभ
चारित्रमें [समुत्थितः वा ] उद्यत होने पर भी [यदि ] यदि जीव [मोहादीन् ] मोहादिको [न
जहाति ] नहीं छोड़ता, तो [सः ] वह [शुद्धं आत्मकं ] शुद्ध आत्माको [ न लभते ] प्राप्त नहीं
होता ।।७९।।
टीका : — जो जीव समस्त सावद्ययोगके प्रत्याख्यानस्वरूप परमसामायिक नामक
चारित्रकी प्रतिज्ञा करके भी धूर्त २अभिसारिका (नायिका) की भाँति शुभोपयोगपरिणतिसे
३अभिसार (-मिलन) को प्राप्त होता हुआ (अर्थात् शुभोपयोगपरिणतिके प्रेममें फँसता हुआ)
१. उन्मूलन = जड़मूलसे निकाल देना; निकन्दन ।
२. अभिसारिका = संकेत अनुसार प्रेमीसे मिलने जानेवाली स्त्री ।
३. अभिसार = प्रेमीसे मिलने जाना ।
जीव छोडी पापारंभने शुभ चरितमां उद्यत भले,
जो नव तजे मोहादिने तो नव लहे शुद्धात्मने. ७९.
१३४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-