गुणात्मक एव, तथैव च पदार्थेष्ववस्थायी विस्तारसामान्यसमुदायोऽभिधावन्नायत-
सामान्यसमुदायो वा द्रव्यनामा गुणैरभिनिर्वर्त्यमानो गुणेभ्यः पृथगनुपलम्भाद् गुणात्मक एव ।
चानेकपुद्गलात्मको द्वयणुकस्त्र्यणुक इति समानजातीयो द्रव्यपर्यायः । यथैव
चानेकजीवपुद्गलात्मको देवो मनुष्य इत्यसमानजातीयो द्रव्यपर्यायः । यथैव च क्वचित्पटे
प्रतिपत्तिर्गुणात्मकः स्वभावपर्यायः, तथैव च समस्तेष्वपि द्रव्येषु सूक्ष्मात्मीयात्मीयागुरु-
तम्हा तस्स णमाइं किच्चा यस्मात्सम्यक्त्वं विना श्रमणो न भवति तस्मात्कारणात्तस्य सम्यक्चारित्रयुक्तस्य पूर्वोक्ततपोधनस्य नमस्यां नमस्क्रियां नमस्कारं कृत्वा णिच्चं पि तम्मणो होज्ज नित्यमपि तद्गतमना भूत्वा वोच्छामि वक्ष्याम्यहं कर्ता संगहादो संग्रहात्संक्षेपात् सकाशात् । किम् । परमट्ठ- पृथक् अप्राप्त होनेसे गुणात्मक ही है, उसीप्रकार पदार्थोंमें, अवस्थायी विस्तारसामान्यसमुदाय या दौड़ता हुआ आयतसामान्यसमुदाय — जिसका नाम ‘द्रव्य’ है वह — गुणोंसे रचित होता हुआ गुणोंसे पृथक् अप्राप्त होनेसे गुणात्मक ही है । और जैसे अनेकपटात्मक (-एकसे अधिक वस्त्रोंसे निर्मित) १द्विपटिक, त्रिपटिक ऐसे समानजातीय द्रव्यपर्याय है, उसीप्रकार अनेक पुद्गलात्मक द्वि -अणुक, त्रि -अणुक ऐसी समानजातीय द्रव्यपर्याय है; और जैसे अनेक रेशमी और सूती पटोंके बने हुए द्विपटिक, त्रिपटिक ऐसी असमानजातीय द्रव्यपर्याय है, उसीप्रकार अनेक जीवपुद्गलात्मक देव, मनुष्य ऐसी असमानजातीय द्रव्यपर्याय है । और जैसे कभी पटमें अपने स्थूल अगुरुलघुगुण द्वारा कालक्रमसे प्रवर्तमान अनेक प्रकाररूपसे परिणमित होनेके कारण अनेकत्वकी प्रतिपत्ति गुणात्मक स्वभावपर्याय है, उसीप्रकार समस्त द्रव्योंमें अपने -अपने सूक्ष्म अगुरुलघुगुण द्वारा प्रतिसमय प्रगट होनेवाली षट्स्थानपतित हानिवृद्धिरूप अनेकत्वकी अनुभूति वह गुणात्मक स्वभावपर्याय है; और जैसे पटमें, १. द्विपटिक = दो थानोंको जोड़कर (सींकर) बनाया गया एक वस्त्र [यदि दोनों थान एक ही जातिके
सूती) तो असमानजातीय द्रव्यपर्याय कहलाता है । ]