Pravachansar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१६५
द्रव्यनाम्नाभिनिर्वर्त्यमानो द्रव्यमय एव यथैव च पटेऽवस्थायी विस्तारसामान्य-
समुदायोऽभिधावन्नायतसामान्यसमुदायो वा गुणैरभिनिर्वर्त्यमानो गुणेभ्यः पृथगनुपलम्भाद्
गुणात्मक एव, तथैव च पदार्थेष्ववस्थायी विस्तारसामान्यसमुदायोऽभिधावन्नायत-
सामान्यसमुदायो वा द्रव्यनामा गुणैरभिनिर्वर्त्यमानो गुणेभ्यः पृथगनुपलम्भाद् गुणात्मक एव
यथैव चानेकपटात्मको द्विपटिका त्रिपटिकेति समानजातीयो द्रव्यपर्यायः, तथैव
चानेकपुद्गलात्मको द्वयणुकस्त्र्यणुक इति समानजातीयो द्रव्यपर्यायः
यथैव
चानेककौशेयककार्पासमयपटात्मको द्विपटिका त्रिपटिकेत्यसमानजातीयो द्रव्यपर्यायः, तथैव
चानेकजीवपुद्गलात्मको देवो मनुष्य इत्यसमानजातीयो द्रव्यपर्यायः
यथैव च क्वचित्पटे
स्थूलात्मीयागुरुलघुगुणद्वारेण कालक्रमप्रवृत्तेन नानाविधेन परिणमनान्नानात्व-
प्रतिपत्तिर्गुणात्मकः स्वभावपर्यायः, तथैव च समस्तेष्वपि द्रव्येषु सूक्ष्मात्मीयात्मीयागुरु-
तम्हा तस्स णमाइं किच्चा णिच्चं पि तम्मणो होज्ज
वोच्छामि संगहादो परमट्ठविणिच्छयाधिगमं ।।१०।।

तम्हा तस्स णमाइं किच्चा यस्मात्सम्यक्त्वं विना श्रमणो न भवति तस्मात्कारणात्तस्य सम्यक्चारित्रयुक्तस्य पूर्वोक्ततपोधनस्य नमस्यां नमस्क्रियां नमस्कारं कृत्वा णिच्चं पि तम्मणो होज्ज नित्यमपि तद्गतमना भूत्वा वोच्छामि वक्ष्याम्यहं कर्ता संगहादो संग्रहात्संक्षेपात् सकाशात् किम् परमट्ठ- पृथक् अप्राप्त होनेसे गुणात्मक ही है, उसीप्रकार पदार्थोंमें, अवस्थायी विस्तारसामान्यसमुदाय या दौड़ता हुआ आयतसामान्यसमुदायजिसका नाम ‘द्रव्य’ है वहगुणोंसे रचित होता हुआ गुणोंसे पृथक् अप्राप्त होनेसे गुणात्मक ही है और जैसे अनेकपटात्मक (-एकसे अधिक वस्त्रोंसे निर्मित) द्विपटिक, त्रिपटिक ऐसे समानजातीय द्रव्यपर्याय है, उसीप्रकार अनेक पुद्गलात्मक द्वि -अणुक, त्रि -अणुक ऐसी समानजातीय द्रव्यपर्याय है; और जैसे अनेक रेशमी और सूती पटोंके बने हुए द्विपटिक, त्रिपटिक ऐसी असमानजातीय द्रव्यपर्याय है, उसीप्रकार अनेक जीवपुद्गलात्मक देव, मनुष्य ऐसी असमानजातीय द्रव्यपर्याय है और जैसे कभी पटमें अपने स्थूल अगुरुलघुगुण द्वारा कालक्रमसे प्रवर्तमान अनेक प्रकाररूपसे परिणमित होनेके कारण अनेकत्वकी प्रतिपत्ति गुणात्मक स्वभावपर्याय है, उसीप्रकार समस्त द्रव्योंमें अपने -अपने सूक्ष्म अगुरुलघुगुण द्वारा प्रतिसमय प्रगट होनेवाली षट्स्थानपतित हानिवृद्धिरूप अनेकत्वकी अनुभूति वह गुणात्मक स्वभावपर्याय है; और जैसे पटमें, १. द्विपटिक = दो थानोंको जोड़कर (सींकर) बनाया गया एक वस्त्र [यदि दोनों थान एक ही जातिके

हों तो समानजातीय द्रव्यपर्याय कहलाता है, और यदि दो थान भिन्न जातिके हों (जैसे एक रेशमी दूसरा
सूती) तो असमानजातीय द्रव्यपर्याय कहलाता है
]