द्रव्यनाम्नाभिनिर्वर्त्यमानो द्रव्यमय एव । यथैव च पटेऽवस्थायी विस्तारसामान्य-
समुदायोऽभिधावन्नायतसामान्यसमुदायो वा गुणैरभिनिर्वर्त्यमानो गुणेभ्यः पृथगनुपलम्भाद्
गुणात्मक एव, तथैव च पदार्थेष्ववस्थायी विस्तारसामान्यसमुदायोऽभिधावन्नायत-
सामान्यसमुदायो वा द्रव्यनामा गुणैरभिनिर्वर्त्यमानो गुणेभ्यः पृथगनुपलम्भाद् गुणात्मक एव ।
यथैव चानेकपटात्मको द्विपटिका त्रिपटिकेति समानजातीयो द्रव्यपर्यायः, तथैव
चानेकपुद्गलात्मको द्वयणुकस्त्र्यणुक इति समानजातीयो द्रव्यपर्यायः । यथैव
चानेककौशेयककार्पासमयपटात्मको द्विपटिका त्रिपटिकेत्यसमानजातीयो द्रव्यपर्यायः, तथैव
चानेकजीवपुद्गलात्मको देवो मनुष्य इत्यसमानजातीयो द्रव्यपर्यायः । यथैव च क्वचित्पटे
स्थूलात्मीयागुरुलघुगुणद्वारेण कालक्रमप्रवृत्तेन नानाविधेन परिणमनान्नानात्व-
प्रतिपत्तिर्गुणात्मकः स्वभावपर्यायः, तथैव च समस्तेष्वपि द्रव्येषु सूक्ष्मात्मीयात्मीयागुरु-
तम्हा तस्स णमाइं किच्चा णिच्चं पि तम्मणो होज्ज ।
वोच्छामि संगहादो परमट्ठविणिच्छयाधिगमं ।।✽१०।।
तम्हा तस्स णमाइं किच्चा यस्मात्सम्यक्त्वं विना श्रमणो न भवति तस्मात्कारणात्तस्य
सम्यक्चारित्रयुक्तस्य पूर्वोक्ततपोधनस्य नमस्यां नमस्क्रियां नमस्कारं कृत्वा णिच्चं पि तम्मणो होज्ज
नित्यमपि तद्गतमना भूत्वा वोच्छामि वक्ष्याम्यहं कर्ता संगहादो संग्रहात्संक्षेपात् सकाशात् । किम् । परमट्ठ-
१. द्विपटिक = दो थानोंको जोड़कर (सींकर) बनाया गया एक वस्त्र [यदि दोनों थान एक ही जातिके
हों तो समानजातीय द्रव्यपर्याय कहलाता है, और यदि दो थान भिन्न जातिके हों (जैसे एक रेशमी दूसरा
सूती) तो असमानजातीय द्रव्यपर्याय कहलाता है । ]
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
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पृथक् अप्राप्त होनेसे गुणात्मक ही है, उसीप्रकार पदार्थोंमें, अवस्थायी विस्तारसामान्यसमुदाय
या दौड़ता हुआ आयतसामान्यसमुदाय — जिसका नाम ‘द्रव्य’ है वह — गुणोंसे रचित होता
हुआ गुणोंसे पृथक् अप्राप्त होनेसे गुणात्मक ही है । और जैसे अनेकपटात्मक (-एकसे
अधिक वस्त्रोंसे निर्मित) १द्विपटिक, त्रिपटिक ऐसे समानजातीय द्रव्यपर्याय है, उसीप्रकार
अनेक पुद्गलात्मक द्वि -अणुक, त्रि -अणुक ऐसी समानजातीय द्रव्यपर्याय है; और जैसे
अनेक रेशमी और सूती पटोंके बने हुए द्विपटिक, त्रिपटिक ऐसी असमानजातीय द्रव्यपर्याय
है, उसीप्रकार अनेक जीवपुद्गलात्मक देव, मनुष्य ऐसी असमानजातीय द्रव्यपर्याय है । और
जैसे कभी पटमें अपने स्थूल अगुरुलघुगुण द्वारा कालक्रमसे प्रवर्तमान अनेक प्रकाररूपसे
परिणमित होनेके कारण अनेकत्वकी प्रतिपत्ति गुणात्मक स्वभावपर्याय है, उसीप्रकार समस्त
द्रव्योंमें अपने -अपने सूक्ष्म अगुरुलघुगुण द्वारा प्रतिसमय प्रगट होनेवाली षट्स्थानपतित
हानिवृद्धिरूप अनेकत्वकी अनुभूति वह गुणात्मक स्वभावपर्याय है; और जैसे पटमें,