Pravachansar (Hindi).

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मनुष्य इत्यादि गुणद्वारेणायतानैक्यप्रतिपत्तिनिबन्धनो गुणपर्यायः सोऽपि द्विविधः,
स्वभावपर्यायो विभावपर्यायश्च तत्र स्वभावपर्यायो नाम समस्तद्रव्याणामात्मीयात्मीयागुरुलघु-
गुणद्वारेण प्रतिसमयसमुदीयमानषट्स्थानपतितवृद्धिहानिनानात्वानुभूतिः, विभावपर्यायो नाम
रूपादीनां ज्ञानादीनां वा स्वपरप्रत्ययप्रवर्तमानपूर्वोत्तरावस्थावतीर्णतारतम्योपदर्शितस्वभाव-
विशेषानेकत्वापत्तिः
अथेदं दृष्टान्तेन द्रढयतियथैव हि सर्व एव पटोऽवस्थायिना विस्तार-
सामान्यसमुदायेनाभिधावताऽऽयतसामान्यसमुदायेन चाभिनिर्वर्त्यमानस्तन्मय एव, तथैव हि
सर्व एव पदार्थोऽवस्थायिना विस्तारसामान्यसमुदायेनाभिधावताऽऽयतसामान्यसमुदायेन च
द्रव्यपर्यायगुणपर्यायनिरूपणमुख्यता अथानन्तरं ‘ण हवदि जदि सद्दव्वं’ इत्यादिगाथाचतुष्टयेन सत्ता-
द्रव्ययोरभेदविषये युक्तिं कथयति, तदनन्तरं ‘जो खलु दव्वसहावो’ इत्यादि सत्ताद्रव्ययोर्गुणगुणिकथनेन
प्रथमगाथा, द्रव्येण सह गुणपर्याययोरभेदमुख्यत्वेन ‘णत्थि गुणो त्ति व कोई’ इत्यादि द्वितीया चेति

स्वतन्त्रगाथाद्वयं, तदनन्तरं द्रव्यस्य द्रव्यार्थिकनयेन सदुत्पादो भवति, पर्यायार्थिकनयेनासदित्यादि-

कथनरूपेण ‘एवंविहं’ इतिप्रभृति गाथाचतुष्टयं, ततश्च ‘अत्थि त्ति य’ इत्याद्येकसूत्रेण

नयसप्तभङ्गीव्याख्यानमिति समुदायेन चतुर्विंशतिगाथाभिरष्टभिः स्थलैर्द्रव्यनिर्णयं करोति
तद्यथाअथ
सम्यक्त्वं कथयति
१६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
हैजैसे कि जीवपुद्गलात्मक देव, मनुष्य इत्यादि गुण द्वारा आयतकी अनेकताकी
प्रतिपत्तिकी कारणभूत गुणपर्याय है वह भी दो प्रकार है (१) स्वभावपर्याय और (२)
विभावपर्याय उसमें समस्त द्रव्योंके अपने -अपने अगुरुलघुगुण द्वारा प्रतिसमय प्रगट होनेवाली
षट्स्थानपतित हानि -वृद्धिरूप अनेकत्वकी अनुभूति वह स्वभावपर्याय है; (२) रूपादिके या
ज्ञानादिके
स्व -परके कारण प्रवर्तमान पूर्वोत्तर अवस्थामें होनेवाले तारतम्यके कारण देखनेमें
आनेवाले स्वभावविशेषरूप अनेकत्वकी आपत्ति विभावपर्याय है
अब यह (पूर्वोक्त कथन) दृष्टान्तसे दृढ़ करते हैं :
जैसे सम्पूर्ण पट, अवस्थायी (-स्थिर) विस्तारसामान्यसमुदायसे और दौड़ते
(-बहते, प्रवाहरूप) हुये ऐसे आयतसामान्यसमुदायसे रचित होता हुआ तन्मय ही है,
उसीप्रकार सम्पूर्ण पदार्थ ‘द्रव्य’ नामक अवस्थायी विस्तारसामान्यसमुदायसे और दौड़ते हुये
आयतसामान्यसमुदायसे रचित होता हुआ द्रव्यमय ही है
और जैसे पटमें, अवस्थायी
विस्तारसामान्यसमुदाय या दौड़ते हुये आयतसामान्यसमुदाय गुणोंसे रचित होता हुआ गुणोंसे
१. स्व उपादान और पर निमित्त है २. पूर्वोत्तर = पहलेकी और बादकी
३. आपत्ति = आपतित, आपड़ना ४. पट = वस्त्र