समुदायात्मना द्रव्येणाभिनिर्वृत्तत्वाद् द्रव्यमयः । द्रव्याणि तु पुनरेकाश्रयविस्तारविशेषात्मकै-
र्गुणैरभिनिर्वृत्तत्वाद्गुणात्मकानि । पर्यायास्तु पुनरायतविशेषात्मका उक्तलक्षणैर्द्रव्यैरपि गुणैरप्य-
भिनिर्वृत्तत्वाद् द्रव्यात्मका अपि गुणात्मका अपि । तत्रानेकद्रव्यात्मकैक्यप्रतिपत्तिनिबन्धनो
द्रव्यपर्यायः । स द्विविधः, समानजातीयोऽसमानजातीयश्च । तत्र समानजातीयो नाम यथा
अनेकपुद्गलात्मको द्वयणुकस्त्र्यणुक इत्यादि; असमानजातीयो नाम यथा जीवपुद्गलात्मको देवो
ततश्च ‘अत्थित्तणिच्छिदस्स हि’ इत्याद्येकपञ्चाशद्गाथापर्यन्तं विशेषभेदभावना चेति द्वितीयमहाधिकारे
समुदायपातनिका । अथेदानीं सामान्यज्ञेयव्याख्यानमध्ये प्रथमा नमस्कारगाथा, द्वितीया द्रव्यगुण-
पर्यायव्याख्यानगाथा, तृतीया स्वसमयपरसमयनिरूपणगाथा, चतुर्थी द्रव्यस्य सत्तादिलक्षणत्रय-
सूचनगाथा चेति पीठिकाभिधाने प्रथमस्थले स्वतन्त्रगाथाचतुष्टयम् । तदनन्तरं ‘सब्भावो हि सहावो’
इत्यादिगाथाचतुष्टयपर्यन्तं सत्तालक्षणव्याख्यानमुख्यत्वं, तदनन्तरं ‘ण भवो भंगविहीणो’ इत्यादि-
गाथात्रयपर्यन्तमुत्पादव्ययध्रौव्यलक्षणकथनमुख्यता, ततश्च ‘पाडुब्भवदि य अण्णो’ इत्यादिगाथाद्वयेन
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
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१विस्तारसामान्यसमुदायात्मक और २आयतसामान्यसमुदायात्मक द्रव्यसे रचित होनेसे द्रव्यमय
(-द्रव्यस्वरूप) है । और ३द्रव्य एक जिनका आश्रय है ऐसे विस्तारविशेषस्वरूप गुणोंसे रचित
(-गुणोंसे बने हुवे) होनेसे गुणात्मक है । और पर्यायें — जो कि आयत -विशेषस्वरूप हैं वे —
जिनके लक्षण (ऊ पर) कहे गये हैं ऐसे द्रव्योंसे तथा गुणोंसे रचित होनेसे द्रव्यात्मक भी हैं
गुणात्मक भी हैं । उसमें, अनेकद्रव्यात्मक एकताकी ४प्रतिपत्तिकी कारणभूत द्रव्यपर्याय है । वह
दो प्रकार है । (१) समानजातीय और (२) असमानजातीय । उसमें (१) समानजातीय वह
है — जैसे कि अनेकपुद्गलात्मक ५द्विअणुक, त्रिअणुक इत्यादि; (२) असमानजातीय वह
१. विस्तारसामान्य समुदाय = विस्तारसामान्यरूप समुदाय । विस्तारका अर्थ है कि चौड़ाई । द्रव्यकी
चौड़ाईकी अपेक्षाके (एकसाथ रहनेवाले सहभावी) भेदोंको (विस्तारविशेषोंको) गुण कहा जाता है; जैसे
ज्ञान, दर्शन, चारित्र इत्यादि जीवद्रव्यके विस्तारविशेष अर्थात् गुण हैं । उन विस्तारविशेषोंमें रहनेवाले
विशेषत्वको गौण करें तो इन सबमें एक आत्मस्वरूप सामान्यत्व भासित होता है । यह विस्तारसामान्य
(अथवा विस्तारसामान्यसमुदाय) वह द्रव्य है ।
२. आयतसामान्यसमुदाय = आयतसामान्यरूप समुदाय । आयतका अर्थ है लम्बाई अर्थात्
कालापेक्षितप्रवाह । द्रव्यके लम्बाईकी अपेक्षाके (एकके बाद एक प्रवर्तमान, क्रमभावी, कालापेक्षित)
भेदोंको (आयत विशेषोंको) पर्याय कहा जाता है । उन क्रमभावी पर्यायोंमें प्रवर्तमान विशेषत्वको गौण
करें तो एक द्रव्यत्वरूप सामान्यत्व ही भासित होता है । यह आयतसामान्य (अथवा आयतसामान्य
समुदाय) वह द्रव्य है ।
३. अनन्तगुणोंका आश्रय एक द्रव्य है ।
४. प्रतिपत्ति = प्राप्ति; ज्ञान; स्वीकार । ५. द्विअणुक = दो अणुओंसे बना हुआ स्कंध ।