प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तस्य द्रव्यास्तित्वेन निष्पादितनिष्पत्तियुक्तैर्गुणैः पर्यायैश्च यदस्तित्वं द्रव्यस्य स
स्वभावः । यथा वा द्रव्येण वा क्षेत्रेण वा कालेन वा भावेन वा पीततादिगुणेभ्यः
कुण्डलादिपर्यायेभ्यश्च पृथगनुपलभ्यमानस्य कर्तृकरणाधिक रणरूपेण कार्तस्वरस्वरूपमुपादाय
प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तैः पीततादिगुणैः कुण्डलादिपर्यायैश्च निष्पादितनिष्पत्तियुक्तस्य कार्तस्वरस्य
मूलसाधनतया तैर्निष्पादितं यदस्तित्वं स स्वभावः, तथा द्रव्येण वा क्षेत्रेण वा कालेन
वा भावेन वा गुणेभ्यः पर्यायेभ्यश्च पृथगनुपलभ्यमानस्य कर्तृकरणाधिकरणरूपेण
शुद्धात्मद्रव्यास्तित्वेन च गुणपर्यायोत्पादव्ययध्रौव्यास्तित्वं साध्यत इति । तद्यथा – यथा स्वकीय-
द्रव्यक्षेत्रकालभावैः सुवर्णादभिन्नानां पीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायाणां संबन्धि यदस्तित्वं स एव
सुवर्णस्य सद्भावः, तथा स्वकीयद्रव्यक्षेत्रकालभावैः परमात्मद्रव्यादभिन्नानां केवलज्ञानादिगुणकिंचिदून-
चरमशरीराकारादिपर्यायाणां संबन्धि यदस्तित्वं स एव मुक्तात्मद्रव्यस्य सद्भावः । यथा स्वकीय-
द्रव्यक्षेत्रकालभावैः पीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायेभ्यः सकाशादभिन्नस्य सुवर्णस्य सम्बन्धि यदस्तित्वं स
१. जो = जो सुवर्ण ।
२. उनसे = पीतत्वादि गुणों और कुण्डलादि पर्यायोंसे । (सुवर्णका अस्तित्व निष्पन्न होनेमें, उपजनेमें, या
सिद्ध होनेमें मूलसाधन पीतत्वादि गुण और कुण्डलादि पर्यायें हैं ।)
१७६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
स्वरूपको धारण करके प्रवर्तमान द्रव्यके अस्तित्वसे जिनकी उत्पत्ति होती है, — ऐसे गुणों और
पर्यायोंसे जो द्रव्यका अस्तित्व है, वह स्वभाव है । (द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे या भावसे सुवर्णसे
भिन्न न दिखाई देनेवाले पीतत्वादिक और कुण्डलादिकका अस्तित्व वह सुवर्णका ही अस्तित्व
है, क्योंकि पीतत्वादिकके और कुण्डलादिकके स्वरूपको सुवर्ण ही धारण करता है, इसलिये
सुवर्णके अस्तित्वसे ही पीतत्वादिककी और कुण्डलादिककी निष्पत्ति — सिद्ध — होती है; सुवर्ण
न हो तो पीतत्वादिक और कुण्डलादिक भी न हों, इसीप्रकार द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे या भावसे
द्रव्यसे भिन्न नहीं दिखाई देनेवाले गुणों और पर्यायोंका अस्तित्व वह द्रव्यका ही अस्तित्व है,
क्योंकि गुणों और पर्यायोंके स्वरूपको द्रव्य ही धारण करता है, इसलिये द्रव्यके अस्तित्वसे
ही गुणोंकी और पर्यायोंकी निष्पत्ति होती है, द्रव्य न हो तो गुण और पर्यायें भी न हों । ऐसा
अस्तित्व वह द्रव्यका स्वभाव है ।)
अथवा, जैसे द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे या भावसे १जो पीतत्वादि गुणोंसे और कुण्डलादि
पर्यायोंसे पृथक् नहीं दिखाई देता; कर्ता -करण -अधिकरणरूपसे सुवर्णके स्वरूपको धारण
करके प्रवर्तमान पीतत्वादिगुणों और कुण्डलादिपर्यायोंसे जिसकी निष्पत्ति होती है, — ऐसे
सुवर्णका, मूलसाधनपनेसे २उनसे निष्पन्न होता हुआ, जो अस्तित्व है, वह स्वभाव है; उसीप्रकार
द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे या भावसे गुणोंसे और पर्यायोंसे जो पृथक् नहीं दिखाई देता, कर्ता-