Pravachansar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
१८१
कहानामात्मीयात्मीयस्य विशेषलक्षणभूतस्य स्वरूपास्तित्वस्यावष्टम्भेनोत्तिष्ठन्नानात्वं सामान्य-
लक्षणभूतेन सादृश्योद्भासिनानोकहत्वेनोत्थापितमेकत्वं तिरियति, तथा बहूनां बहुविधानां
द्रव्याणामात्मीयात्मीयस्य विशेषलक्षणभूतस्य स्वरूपास्तित्वस्यावष्टम्भेनोत्तिष्ठन्नानात्वं सामान्य-
लक्षणभूतेन सादृश्योद्भासिना सदित्यस्य भावेनोत्थापितमेकत्वं तिरियति
यथा च तेषामनो-
कहानां सामान्यलक्षणभूतेन सादृश्योद्भासिनानोकहत्वेनोत्थापितेनैकत्वेन तिरोहितमपि
विशेषलक्षणभूतस्य स्वरूपास्तित्वस्यावष्टम्भेनोत्तिष्ठन्नानात्वमुच्चकास्ति, तथा सर्वद्रव्याणामपि
सामान्यलक्षणभूतेन सादृश्योद्भासिना सदित्यस्य भावेनोत्थापितेनैकत्वेन तिरोहितमपि विशेष-
लक्षणभूतस्य स्वरूपास्तित्वस्यावष्टम्भेनोत्तिष्ठन्नानात्वमुच्चकास्ति
।।९७।।
शुद्धसंग्रहनयेन सर्वगतं सर्वपदार्थव्यापकम् इदं केनोक्त म् उवदिसदा खलु धम्मं जिणवरवसहेण पण्णत्तं
धर्मं वस्तुस्वभावसंग्रहमुपदिशता खलु स्फु टं जिनवरवृषभेण प्रज्ञप्तमिति तद्यथायथा सर्वे मुक्तात्मनः
सन्तीत्युक्ते सति परमानन्दैकलक्षणसुखामृतरसास्वादभरितावस्थलोकाकाशप्रमितशुद्धासंख्येयात्मप्रदेशै-

जैसे बहुतसे, अनेक प्रकारके वृक्षोंको अपने अपने विशेषलक्षणभूत स्वरूपास्तित्वके अवलम्बनसे उत्पन्न होनेवाले अनेकत्वको, सामान्य लक्षणभूत सादृश्यदर्शक वृक्षत्वसे उत्पन्न होनेवाला एकत्व तिरोहित (अदृश्य) कर देता है, इसीप्रकार बहुतसे, अनेकप्रकारके द्रव्योंको अपने -अपने विशेष लक्षणभूत स्वरूपास्तित्वके अवलम्बनसे उत्पन्न होनेवाले अनेकत्वको, सामान्यलक्षणभूत सादृश्यदर्शक ‘सत्’ पनेसे (-‘सत्’ ऐसे भावसे, अस्तित्वसे, ‘है’ पनेसे) उत्पन्न होनेवाला एकत्व तिरोहित कर देता है और जैसे उन वृक्षोंके विषयमें सामान्यलक्षणभूत सादृश्यदर्शक वृक्षत्वसे उत्पन्न होनेवाले एकत्वसे तिरोहित होने पर भी (अपने -अपने) विशेषलक्षणभूत स्वरूपास्तित्वके अवलम्बनसे उत्पन्न होनेवाला अनेकत्व स्पष्टतया प्रकाशमान रहता है, (बना रहता है, नष्ट नहीं होता); उसीप्रकार सर्व द्रव्योंके विषयमें भी सामान्यलक्षणभूत सादृश्यदर्शक ‘सत्’ पनेसे उत्पन्न होनेवाले एकत्वसे तिरोहित होने पर भी (अपने -अपने) विशेषलक्षणभूत स्वरूपास्तित्वके अवलम्बनसे उत्पन्न होनेवाला अनेकत्व स्पष्टतया प्रकाशमान रहता है

[बहुतसे (संख्यापेक्षासे अनेक) और अनेक प्रकारके (अर्थात् आम्र, अशोकादि) वृक्षोंका अपना -अपना स्वरूपास्तित्व भिन्न -भिन्न है, इसलिये स्वरूपास्तित्वकी अपेक्षासे उनमें अनेकत्व है, परन्तु वृक्षत्व जो कि सर्व वृक्षोंका सामान्यलक्षण है और जो सर्व वृक्षोंमें सादृश्य बतलाता है, उसकी अपेक्षासे सर्व वृक्षोंमें एकत्व है जब इस एकत्वको मुख्य करते हैं तब अनेकत्व गौण हो जाता है; इसीप्रकार बहुतसे (अनन्त) और अनेक (छह) प्रकारके द्रव्योंका १. सादृश्य = समानत्व २. तिरोहित = तिरोभूत; आच्छादित; अदृश्य