न खलु द्रव्यैर्द्रव्यान्तराणामारम्भः, सर्वद्रव्याणां स्वभावसिद्धत्वात् । स्वभावसिद्धत्वं तु
तेषामनादिनिधनत्वात् । अनादिनिधनं हि न साधनान्तरमपेक्षते । गुणपर्यायात्मानमात्मनः
स्वभावमेव मूलसाधनमुपादाय स्वयमेव सिद्धसिद्धिमद्भूतं वर्तते । यत्तु द्रव्यैरारभ्यते न तद्
द्रव्यान्तरं, कादाचित्कत्वात् स पर्यायः, द्वयणुकादिवन्मनुष्यादिवच्च । द्रव्यं पुनरनवधि
त्रिसमयावस्थायि न तथा स्यात् । अथैवं यथा सिद्धं स्वभावत एव द्रव्यं, तथा सदित्यपि
तत्स्वभावत एव सिद्धमित्यवधार्यताम्, सत्तात्मनात्मनः स्वभावेन निष्पन्ननिष्पत्तिमद्भाव-
युक्तत्वात् । न च द्रव्यादर्थान्तरभूता सत्तोपपत्तिमभिप्रपद्यते, यतस्तत्समवायात्तत्सदिति स्यात् ।
तत्सदपि स्वभावत एवेत्याख्याति — दव्वं सहावसिद्धं द्रव्यं परमात्मद्रव्यं स्वभावसिद्धं भवति । कस्मात् ।
अनाद्यनन्तेन परहेतुनिरपेक्षेण स्वतः सिद्धेन केवलज्ञानादिगुणाधारभूतेन सदानन्दैकरूपसुखसुधारसपरम-
समरसीभावपरिणतसर्वशुद्धात्मप्रदेशभरितावस्थेन शुद्धोपादानभूतेन स्वकीयस्वभावेन निष्पन्नत्वात् ।
यच्च स्वभावसिद्धं न भवति तद्द्रव्यमपि न भवति । द्वयणुकादिपुद्गलस्कन्धपर्यायवत्
मनुष्यादिजीवपर्यायवच्च । सदिति यथा स्वभावतः सिद्धं तद्द्रव्यं तथा सदिति सत्तालक्षणमपि स्वभावत
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
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टीका : — वास्तवमें द्रव्योंसे द्रव्यान्तरोंकी उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि सर्व द्रव्य
स्वभावसिद्ध हैं । (उनकी) स्वभावसिद्धता तो उनकी अनादिनिधनतासे है; क्योंकि
१अनादिनिधन साधनान्तरकी अपेक्षा नहीं रखता । वह गुणपर्यायात्मक ऐसे अपने स्वभावको
ही — जो कि मूल साधन है उसे — धारण करके स्वयमेव सिद्ध हुआ वर्तता है ।
जो द्रव्योंसे उत्पन्न होता है वह तो द्रव्यान्तर नहीं है, २कादाचित्कपनेके कारण पर्याय
है; जैसे – द्विअणुक इत्यादि तथा मनुष्य इत्यादि । द्रव्य तो अनवधि (मर्यादा रहित) त्रिसमय –
अवस्थायी (त्रिकालस्थायी) होनेसे उत्पन्न नहीं होता ।
अब इसप्रकार – जैसे द्रव्य स्वभावसे ही सिद्ध है उसीप्रकार ‘(वह) सत् है’ ऐसा भी
उसके स्वभावसे ही सिद्ध है, ऐसा निर्णय हो; क्योंकि सत्तात्मक ऐसे अपने स्वभावसे
निष्पन्न हुए भाववाला है ( – द्रव्यका ‘सत् है’ ऐसा भाव द्रव्यके सत्तास्वरूप स्वभावका ही
बना हुआ है) ।
द्रव्यसे अर्थान्तरभूत सत्ता उत्पन्न नहीं है (-नहीं बन सकती, योग्य नहीं है) कि जिसके
समवायसे वह (-द्रव्य) ‘सत्’ हो । (इसीको स्पष्ट समझाते हैं ) : —
१. अनादिनिधन = आदि और अन्तसे रहित । (जो अनादिअनन्त हो उसकी सिद्धिके लिये अन्य साधनकी
आवश्यकता नहीं है ।)
२. कादाचित्क = कदाचित् – किसीसमय हो ऐसा; अनित्य ।