एवोत्तरीयस्य गुणिन इति तयोर्न प्रदेशविभागः, तथा य एव सत्ताया गुणस्य प्रदेशास्त एव
द्रव्यस्य गुणिन इति तयोर्न प्रदेशविभागः । एवमपि तयोरन्यत्वमस्ति तल्लक्षणसद्भावात् ।
अतद्भावो ह्यन्यत्वस्य लक्षणं, तत्तु सत्ताद्रव्ययोर्विद्यत एव, गुणगुणिनोस्तद्भावस्याभावात्,
शुक्लोत्तरीयवदेव । तथा हि — यथा यः किलैकचक्षुरिन्द्रियविषयमापद्यमानः समस्तेतरेन्द्रिय-
ग्रामगोचरमतिक्रान्तः शुक्लो गुणो भवति, न खलु तदखिलेन्द्रियग्रामगोचरीभूतमुत्तरीयं भवति,
यच्च किलाखिलेन्द्रियग्रामगोचरीभूतमुत्तरीयं भवति, न खलु स एकचक्षुरिन्द्रियविषयमापद्यमानः
समस्तेतरेन्द्रियग्रामगोचरमतिक्रान्तः शुक्लो गुणो भवतीति तयोस्तद्भावस्याभावः; तथा या
कस्माद्धेतोः । भिन्नप्रदेशाभावात् । क योरिव । शुक्लवस्त्रशुक्लगुणयोरिव । इदि सासणं हि वीरस्स इति
शासनमुपदेश आज्ञेति । कस्य । वीरस्य वीराभिधानान्तिमतीर्थंकरपरमदेवस्य । अण्णत्तं तथापि
प्रदेशाभेदेऽपि मुक्तात्मद्रव्यशुद्धसत्तागुणयोरन्यत्वं भिन्नत्वं भवति । कथंभूतम् । अतब्भावो अतद्भावरूपं
संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदस्वभावम् । यथा प्रदेशरूपेणाभेदस्तथा संज्ञादिलक्षणरूपेणाप्यभेदो भवतु, को
दोष इति चेत् । नैवम् । ण तब्भवं होदि तन्मुक्तात्मद्रव्यं शुद्धात्मसत्तागुणेन सह प्रदेशाभेदेऽपि
१. अतद्भाव = (कथंचित्) उसका न होना; (कथंचित्) उसरूप न होना (कथंचित्) अतद्रूपता । द्रव्य
कथंचित् सत्तास्वरूपसे नहीं है और सत्ता कथंचित् द्रव्यरूपसे नहीं है, इसलिये उनके अतद्भाव है ।
२. तद्भाव = उसका होना, उसरूप होना, तद्रूपता ।
३. सत्ता द्रव्यके आश्रयसे रहती है, द्रव्यको किसीका आश्रय नहीं है । [जैसे घड़ेमें घी रहता है, उसीप्रकार
द्रव्यमें सत्ता नहीं रहती (क्योंकि घड़ेमें और घीमें तो प्रदेशभेद है) किन्तु जैसे आममें वर्ण गंधादि हैं
उसीप्रकार द्रव्यमें सत्ता है । ]
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
२०५
ही वस्त्रके – गुणीके – हैं, इसलिये उनमें प्रदेशभेद नहीं है; इसीप्रकार जो सत्ताके – गुणके – प्रदेश
हैं वे ही द्रव्यके – गुणीके – हैं, इसलिये उनमें प्रदेशभेद नहीं है ।
ऐसा होने पर भी उनमें (-सत्ता और द्रव्यमें) अन्यत्व है, क्योंकि (उनमें) अन्यत्वके
लक्षणका सद्भाव है । १अतद्भाव अन्यत्वका लक्षण है । वह तो सत्ता और द्रव्यके है ही,
क्योंकि गुण और गुणीके २तद्भावका अभाव होता है — शुक्लत्व और वस्त्रकी भाँति । वह
इस प्रकार है कि : — जैसे एक चक्षुइन्द्रियके विषयमें आनेवाला और अन्य सब इन्द्रियोंके
समूहको गोचर न होनेवाला शुक्लत्व गुण है वह समस्त इन्द्रिय समूहको गोचर होनेवाला ऐसा
वस्त्र नहीं है; और जो समस्त इन्द्रियसमूहको गोचर होनेवाला वस्त्र है वह एक चक्षुइन्द्रियके
विषयमें आनेवाला तथा अन्य समस्त इन्द्रियोंके समूहको गोचर न होनेवाला ऐसा शुक्लत्व
गुण नहीं है, इसलिये उनके तद्भावका अभाव है; इसीप्रकार, ३किसीके आश्रय रहनेवाली,