२०६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
किलाश्रित्य वर्तिनी निर्गुणैकगुणसमुदिता विशेषणं विधायिका वृत्तिस्वरूपा च सत्ता भवति,
न खलु तदनाश्रित्य वर्ति गुणवदनेकगुणसमुदितं विशेष्यं विधीयमानं वृत्तिमत्स्वरूपं च द्रव्यं
भवति; यत्तु किलानाश्रित्य वर्ति गुणवदनेकगुणसमुदितं विशेष्यं विधीयमानं वृत्तिमत्स्वरूपं च
द्रव्यं भवति, न खलु साश्रित्य वर्तिनी निर्गुणैकगुणसमुदिता विशेषणं विधायिका वृत्तिस्वरूपा
च सत्ता भवतीति तयोस्तद्भावस्याभावः । अत एव च सत्ताद्रव्ययोः कथंचिदनर्थान्तरत्वेऽपि
न खलु तदनाश्रित्य वर्ति गुणवदनेकगुणसमुदितं विशेष्यं विधीयमानं वृत्तिमत्स्वरूपं च द्रव्यं
भवति; यत्तु किलानाश्रित्य वर्ति गुणवदनेकगुणसमुदितं विशेष्यं विधीयमानं वृत्तिमत्स्वरूपं च
द्रव्यं भवति, न खलु साश्रित्य वर्तिनी निर्गुणैकगुणसमुदिता विशेषणं विधायिका वृत्तिस्वरूपा
च सत्ता भवतीति तयोस्तद्भावस्याभावः । अत एव च सत्ताद्रव्ययोः कथंचिदनर्थान्तरत्वेऽपि
संज्ञादिरूपेण तन्मयं न भवति । कधमेगं तन्मयत्वं हि किलैकत्वलक्षणं । संज्ञादिरूपेण तन्मयत्वाभावे
कथमेकत्वं, किंतु नानात्वमेव । यथेदं मुक्तात्मद्रव्ये प्रदेशाभेदेऽपि संज्ञादिरूपेण नानात्वं कथितं तथैव
१निर्गुण, एक गुणकी बनी हुई, २विशेषण ३विधायक और ४वृत्तिस्वरूप जो सत्ता है वह
किसीके आश्रयके बिना रहनेवाला, गुणवाला, अनेक गुणोंसे निर्मित, ५विशेष्य, ६विधीयमान
और ७वृत्तिमानस्वरूप ऐसा द्रव्य नहीं है, तथा जो किसीके आश्रयके बिना रहनेवाला,
गुणवाला, अनेक गुणोंसे निर्मित, विशेष्य, विधीयमान और वृत्तिमानस्वरूप ऐसा द्रव्य है वह
किसीके आश्रित रहनेवाली, निर्गुण, एक गुणसे निर्मित, विशेषण, विधायक और वृत्तिस्वरूप
ऐसी सत्ता नहीं है, इसलिये उनके तद्भावका अभाव है । ऐसा होनेसे ही, यद्यपि, सत्ता और
किसीके आश्रित रहनेवाली, निर्गुण, एक गुणसे निर्मित, विशेषण, विधायक और वृत्तिस्वरूप
ऐसी सत्ता नहीं है, इसलिये उनके तद्भावका अभाव है । ऐसा होनेसे ही, यद्यपि, सत्ता और
द्रव्यके कथंचित् अनर्थान्तरत्व (-अभिन्नपदार्थत्व, अनन्यपदार्थत्व) है तथापि उनके सर्वथा
१. निर्गुण = गुणरहित [सत्ता निर्गुण है, द्रव्य गुणवाला है । जैसे आम वर्ण, गंध स्पर्शादि गुणयुक्त है, किन्तु
वर्णगुण कहीं गंध, स्पर्श या अन्य किसी गुणवाला नहीं है, क्योंकि न तो वर्ण सूंघा जाता है और न
स्पर्श किया जाता है । और जैसे आत्मा ज्ञानगुणवाला, वीर्यगुणवाला इत्यादि है, परन्तु ज्ञानगुण कहीं
स्पर्श किया जाता है । और जैसे आत्मा ज्ञानगुणवाला, वीर्यगुणवाला इत्यादि है, परन्तु ज्ञानगुण कहीं
वीर्यगुणवाला या अन्य किसी गुणवाला नहीं है; इसीप्रकार द्रव्य अनन्त गुणोंवाला है, परन्तु सत्ता गुणवाली
नहीं है । (यहाँ, जैसे दण्डी दण्डवाला है उसीप्रकार द्रव्यको गुणवाला नहीं समझना चाहिये; क्योंकि दण्डी
नहीं है । (यहाँ, जैसे दण्डी दण्डवाला है उसीप्रकार द्रव्यको गुणवाला नहीं समझना चाहिये; क्योंकि दण्डी
और दण्डमें प्रदेशभेद है, किन्तु द्रव्य और गुण अभिन्नप्रदेशी हैं । ] २. विशेषण = विशेषता; लक्षण; भेदक धर्म ।३. विधायक = विधान करनेवाला; रचयिता । ४. वृत्ति = होना, अस्तित्व, उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य । ५. विशेष्य = विशेषताको धारण करनेवाला पदार्थ; लक्ष्य; भेद्य पदार्थ — धर्मी । [जैसे मिठास, सफे दी,
सचिक्कणता आदि मिश्रीके विशेष गुण हैं, और मिश्री इन विशेष गुणोंसे विशेषित होती हुई अर्थात् उन
विशेषताओंसे ज्ञात होती हुई, उन भेदोंसे भेदित होती हुई एक पदार्थ है; और जैसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र,
वीर्य इत्यादि आत्माके विशेषण है और आत्मा उन विशेषणोंसे विशेषित होता हुआ (लक्षित, भेदित,
पहचाना जाता हुआ) पदार्थ है, उसीप्रकार सत्ता विशेषण है और द्रव्य विशेष्य है । (यहाँ यह नहीं भूलना
विशेषताओंसे ज्ञात होती हुई, उन भेदोंसे भेदित होती हुई एक पदार्थ है; और जैसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र,
वीर्य इत्यादि आत्माके विशेषण है और आत्मा उन विशेषणोंसे विशेषित होता हुआ (लक्षित, भेदित,
पहचाना जाता हुआ) पदार्थ है, उसीप्रकार सत्ता विशेषण है और द्रव्य विशेष्य है । (यहाँ यह नहीं भूलना
चाहिये कि विशेष्य और विशेषणोंके प्रदेशभेद नहीं हैं ।) ६. विधीयमान = रचित होनेवाला । (सत्ता इत्यादि गुण द्रव्यके रचयिता है और द्रव्य उनके द्वारा रचा जानेवाला
पदार्थ है ।) ७. वृत्तिमान = वृत्तिवाला, अस्तित्ववाला, स्थिर रहनेवाला । (सत्ता वृत्तिस्वरूप अर्थात् अस्तिस्वरूप है और
द्रव्य अस्तित्व रहनेस्वरूप है ।)