Pravachansar (Hindi). AnukramaNikA.

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[ २१ ]
परमागम श्री प्रवचनसारकी
वि ष या नु क्र म णि का
(१) ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन
विषय
गाथा
विषय
गाथा
मंगलाचरणपूर्वक भगवान शास्त्रकारकी प्रतिज्ञा ....१
वीतरागचरित्र उपादेय और सरागचारित्र हेय है ....६
चारित्रका स्वरूप .................................७
आत्मा ही चारित्र है .............................८
जीवका शुभ, अशुभ और शुद्धत्व................९
परिणाम वस्तुका स्वभाव है....... ............. १०
शुद्ध और शुभ -अशुभ परिणामका फल ... ११ -१२
आत्माका ज्ञानप्रमाणपना और ज्ञानका

सर्वगतपना.... ........................... २३ आत्माको ज्ञानप्रमाण न माननेमें दोष..... ..... २४ ज्ञानकी भाँति आत्माका भी सर्वगतत्त्व...... ... २६ आत्मा और ज्ञानके एकत्वअन्यत्व..... ....... २७ ज्ञान और ज्ञेयके परस्पर गमनका निषेध..... .. २८ आत्मा पदार्थोंमें प्रवृत्त नहीं होता तथापि

जिससे उनमें प्रवृत्त होना सिद्ध
होता है वह शक्तिवैचित्र्य...... .......... २९

शुद्धोपयोग अधिकार शुद्धोपयोगके फलकी प्रशंसा .................... १३ शुद्धोपयोगपरिणत आत्माका स्वरूप .............. १४ शुद्धोपयोगसे होनेवाली शुद्धात्मस्वभावप्राप्ति ...... १५ शुद्धात्मस्वभावप्राप्ति कारकान्तरसे निरपेक्ष...... .. १६ ‘स्वयंभू’के शुद्धात्मस्वभावप्राप्तिका अत्यन्त

ज्ञान पदार्थोंमें प्रवृत्त होता है

उसके दृष्टान्त...... ...................... ३० पदार्थ ज्ञानमें वर्तते हैंयह व्यक्त करते हैं .... ३१ आत्माकी पदार्थोंके साथ एक दूसरेमें प्रवृत्ति

होनेपर भी, वह परका ग्रहणत्याग किये
बिना तथा पररूप परिणमित हुए बिना
सबको देखता
जानता होनेसे उसे
अविनाशीपना और कथंचित्
उत्पाद
व्यय
ध्रौव्ययुक्तता ................ १७
स्वयंभूआत्माके इन्द्रियोंके बिना ज्ञान
अत्यन्त भिन्नता है..... .................. ३२
आनन्द कैसे ? ........................... १९
केवलज्ञानी और श्रुतज्ञानीको अविशेषरूप

अतीन्द्रियताके कारण शुद्धात्माको

दिखाकर विशेष आकांक्षाके क्षोभका
क्षय करते हैं............................. ३३
शारीरिक सुखदुःखका अभाव..... ...... २०
ज्ञान अधिकार
ज्ञान अधिकार
ज्ञानके श्रुतउपाधिकृत भेदको दूर करते हैं .... ३४
आत्मा और ज्ञानका कर्तृत्वकरणत्वकृत
अतीन्द्रिय ज्ञानपरिणत केवलीको सब
भेद दूर करते हैं....... .................. ३५
प्रत्यक्ष है...... .......................... २१