Pravachansar (Hindi).

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[ २२ ]
विषय
गाथा
विषय
गाथा
ज्ञान क्या है और ज्ञेय क्या है यह
सुख अधिकार
व्यक्त करते हैं....... .................... ३६
ज्ञानसे अभिन्न सुखका स्वरूप वर्णन करते

द्रव्योंकी भूतभावि पर्यायें भी तात्कालिक

हुए ज्ञान और सुखकी हेयोपादेयताका
विचार ................................... ५३
पर्यायोंकी भाँति पृथक्रूपसे ज्ञानमें
वर्तती हैं ................................. ३७
अतीन्द्रिय सुखका साधनभूत अतीन्द्रिय

अविद्यमान पर्यायोंकी कथंचित् विद्यमानता ...... ३८ अविद्यमान पर्यायोंकी ज्ञानप्रत्यक्षता

ज्ञान उपादेय है इसप्रकार उसकी
प्रशंसा...... ............................. ५४
दृढ करते हैं...... ....................... ३९
इन्द्रियसुखका साधनभूत इन्द्रियज्ञान हेय है

इन्द्रियज्ञानके लिये नष्ट और अनुत्पन्नका जानना

इसप्रकार उसकी निन्दा...... ............ ५५
अशक्य है ऐसा निश्चित करते हैं ...... ४०
इन्द्रियज्ञान प्रत्यक्ष नहीं है ऐसा निश्चय

अतीन्द्रिय ज्ञानके लिये जो जो कहा जाता है वह

। ....................................
करते हैं
५७
(सब) सम्भव है..... .................... ४१
परोक्ष और प्रत्यक्षके लक्षण..................... ५८
प्रत्यक्षज्ञानको पारमार्थिक सुखरूप बतलाते हैं ... ५९
केवलज्ञानको भी परिणामके द्वारा खेदका

ज्ञेयार्थपरिणमनक्रिया ज्ञानमेंसे उत्पन्न नहीं होती

४२

ज्ञेयार्थपरिणमनस्वरूप क्रिया और तत्फल कहाँसे

उत्पन्न होता हैइसका विवेचन..... .... ४३
सम्भव होनेसे वह ऐकान्तिक सुख नहीं
है
इसका खंडन.... ................... ६०
केवलीके क्रिया भी क्रियाफल उत्पन्न
।.................................
नहीं करती
४४
‘केवलज्ञान सुखस्वरूप है’ ऐसे निरूपण द्वारा
। .

तीर्थंकरोंके पुण्यका विपाक अकिंचित्कर ही है

४५
उपसंहार....... .......................... ६१
केवलीकी भाँति सब जीवोंको स्वभावविघातका

केवलियोंको ही पारमार्थिक सुख होता है

अभाव होनेका निषेध करते हैं..... ...... ४६
ऐसी श्रद्धा कराते हैं..... ................ ६२
अतीन्द्रिय ज्ञानको सर्वज्ञरूपसे अभिनन्दन ....... ४७
सबको न जाननेवाला एकको भी नहीं जानता

परोक्षज्ञानवालोंके अपारमार्थिक इन्द्रियसुखका

विचार....... ............................ ६३
४८

इन्द्रियाँ है वहाँ तक स्वभावसे ही दुःख है...... ६४ मुक्तात्माके सुखकी प्रसिद्धिके लिये, शरीर

एकको न जाननेवाला सबको नहीं जानता
। ....
४९
क्रमशः प्रवर्तमान ज्ञानकी सर्वगतता सिद्ध
सुखका साधन होनेकी बातका खंडन.... ६५
नहीं होती..... .......................... ५०
आत्मा स्वयमेव सुखपरिणामकी शक्तिवाला

युगपत् प्रवृत्तिके द्वारा ही ज्ञानका सर्वगतत्व ..... ५१ केवलीके ज्ञप्तिक्रियाका सद्भाव होने पर भी

होनेसे विषयोंकी अकिंचित्करता...... .... ६७ आत्माके सुखस्वभावत्वको दृष्टान्त द्वारा दृढ

क्रियाफलरूप बन्धका निषेध करते हुए
उपसंहार करते हैं...... .................. ५२
करके आनन्दअधिकारकी पूर्णता...... .. ६८