Pravachansar (Hindi).

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[ २३ ]
विषय
गाथा
विषय
गाथा
शब्दब्रह्ममें अर्थोंकी व्यवस्था किस प्रकार है
शुभपरिणाम अधिकार
उसका विचार..... ....................... ८७
इन्द्रियसुखसम्बन्धी विचारको लेकर,

मोहक्षयके उपायभूत जिनोपदेशकी प्राप्ति होने

उसके साधनका स्वरूप................... ६९
पर भी पुरुषार्थ अर्थक्रियाकारी है..... ... ८८
इन्द्रियसुखको शुभोपयोगके साध्यके

स्वपरके विवेककी सिद्धिसे ही मोहका क्षय

रूपमें कहते हैं....... .................... ७०
होता है अतः स्वपरके विभागकी
इन्द्रियसुखको दुःखपनेमें डालते हैं....... ....... ७१
पुण्योत्पादक शुभोपयोगकी पापोत्पादक

सिद्धिके लिये प्रयत्न...... ............... ८९ सब प्रकारके स्वपरके विवेककी सिद्धि

अशुभोपयोगसे अविशेषता...... .......... ७२
आगमसे कर्तव्य हैइस प्रकार
पुण्य दुःखके बीजके कारण हैंयह बताते हैं ... ७४
उपसंहार करते हैं...... .................. ९०
पुण्यजन्य इन्द्रियसुख बहुधा दुःखरूप हैं..... .... ७६
पुण्य और पापकी अविशेषताका निश्चय

जिनोदित अर्थोंके श्रद्धान बिना धर्मलाभ

नहीं होता..... .......................... ९१
करते हुए (इस विषयका) उपसंहार
करते हैं..... ............................ ७७
आचार्यभगवान साम्यका धर्मत्व सिद्ध करके ‘मैं
स्वयं साक्षात् धर्म ही हूँ’ ऐसे भावमें
निश्चल स्थित होते हैं...... .............. ९२
शुभअशुभ उपयोगकी अविशेषता निश्चित करके,
रागद्वेषके द्वैतको दूर करते हुए,
अशेषदुःखक्षयका दृढ निश्चय करके
शुद्धोपयोगमें निवास...... ................ ७८
✾ ✾ ✾
(२) ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन
मोहादिके उन्मूलन प्रति सर्व उद्यमसे कटिबद्ध ... ७९
मोहकी सेना जीतनेका उपाय...... ............ ८०
चिन्तामणि प्राप्त किया होने पर भी, प्रमाद चोर
द्रव्यसामान्य अधिकार

पदार्थका सम्यक् द्रव्यगुणपर्यायस्वरूप...... ...... ९३ स्वसमयपरसमयकी व्यवस्था निश्चित

विद्यमान है अतः जागृत रहता है ........ ८१ यही एक, भगवन्तोंने स्वयं अनुभव करके प्रगट

करके उपसंहार..... ...................... ९४
किया हुआ मोक्षका पारमार्थिकपन्थ है ... ८२
द्रव्यका लक्षण .................................. ९५
स्वरूप
अस्तित्वका कथन ....................... ९६

शुद्धात्मलाभके परिपंथीमोहका स्वभाव और

उसके प्रकार.... ......................... ८३
सादृश्यअस्तित्वका कथन ...................... ९७

तीन प्रकारके मोहको अनिष्ट कार्यका कारण

कहकर उसके क्षयका उपदेश............. ८४
द्रव्योंसे द्रव्यान्तरकी उत्पत्ति होनेका और द्रव्यसे

मोहरागद्वेषको इन चिह्नोंके द्वारा पहिचान कर उत्पन्न

सत्ताका अर्थान्तरत्व होनेका खंडन...... .. ९८
होते ही नष्ट कर देना चाहिये ........... ८५
उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक होनेपर भी द्रव्य

मोहक्षय करनेका उपायान्तर..... ............... ८६

‘सत्’ है..... ............................ ९९