सम्बन्ध होता है कि जिससे वह (संसार) मनुष्यादि – पर्यायात्मक होता है
—
इसका
उत्पादादिका क्षणभेद निरस्त करके वे
समाधान...... ......................... १२१
द्रव्य हैं यह समझाते हैं...... .......... १०२
–
परमार्थसे आत्माको द्रव्यकर्मका अकर्तृत्व.... .. १२२ वह कौनसा स्वरूप है जिसरूप आत्मा
द्रव्यके उत्पाद – व्यय
ध्रौव्यको अनेकद्रव्यपर्याय तथा
एकद्रव्यपर्याय द्वारा विचारते हैं.......... १०३
परिणमित होता है ? ................... १२३
सत्ता और द्रव्य अर्थान्तर नहीं होनेके
विषयमें युक्ति..... .................... १०५
ज्ञान, कर्म और कर्मफलका स्वरूप.... ....... १२४ उन (तीनों)को आत्मारूपसे निश्चित
पृथक्त्वका और अत्यत्वका लक्षण...... ...... १०६ अतद्भावको उदाहरण द्वारा स्पष्टतया
। ..................................
करते हैं
१२५
बतलाते हैं...... ....................... १०७
शुद्धात्मोपलब्धिका अभिनन्दन करते हुए, द्रव्य –
सामान्यके वर्णनका उपसंहार....... १२६
सर्वथा अभाव वह अतद्भावका
लक्षण नहीं है ......................... १०८
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द्रव्यविशेष अधिकार
सत्ता और द्रव्यका गुण – गुणीपना सिद्ध
द्रव्यके जीव – अजीवपनेरूप विशेष..... ....... १२७
करते हैं...... ......................... १०९
द्रव्यके लोकालोकत्वरूप विशेष.... ........... १२८ द्रव्यके ‘क्रिया’ और ‘भाव’ रूप विशेष ..... १२९ गुणविशेषसे द्रव्यविशेष होता है...... ........ १३० मूर्त और अमूर्त गुणोंके लक्षण
गुण और गुणीके अनेकत्वका खण्डन..... .... ११० द्रव्यके सत् – उत्पाद और असत्
–
उत्पाद होनेमें
अविरोध सिद्ध करते हैं...... .......... १११
–
सत् – उत्पादको अनन्यत्वके द्वारा और असत्
तथा सम्बन्ध.... ...................... १३१
उत्पादको अन्यत्वके द्वारा निश्चित करते हैं.... .................... ११२ – ११३