आकाशके प्रदेशका लक्षण..... --------------- १४०
तिर्यक्प्रचय तथा ऊर्ध्वप्रचय...... ------------- १४१
कालपदार्थका ऊर्ध्वप्रचय निरन्वय है – इस
परद्रव्यके संयोगका जो कारण उसके
विनाशका अभ्यास..... .............. १५९ शरीरादि परद्रव्य प्रति मध्यस्थता प्रगटकरते हैं..१६० शरीर, वाणी और मनका परद्रव्यपना..... .. १६१ आत्माको परद्रव्यत्वका और उसके कर्तृत्वका
बातका खण्डन....---------------------- १४२ सर्व वृत्त्यंशोंमें कालपदार्थ
कालपदार्थका प्रदेशमात्रपना सिद्ध
आत्माको शरीरपनेका अभाव..... .......... १७१
जीवका असाधारण स्वलक्षण................ १७२
अमूर्त आत्माको स्निग्ध – रुक्षत्वका अभाव
ज्ञानज्ञेयविभाग अधिकार आत्माको विभक्त करनेके लिये व्यवहारजीवत्वके
हेतुका विचार..... ................... १४५ प्राण कौन – कौनसे है, सो बतलाते हैं..... . १४६
है ? – ऐसा पूर्वपक्ष..... ............... १७३
भावबन्धका स्वरूप.... ..................... १७५
भावबन्धकी युक्ति और द्रव्यबन्धका स्वरूप . १७६
पुद्गलबन्ध, जीवबन्ध और
पौद्गलिक प्राणोंकी सन्ततिकी प्रवृत्तिका
अन्तरंग हेतु.......................... १५० पौद्गलिक प्राणसन्ततिकी निवृत्तिका
द्रव्यबन्धका हेतु भावबन्ध.... ............... १७८ भावबन्ध ही निश्चयबन्ध है.... ............. १७९ परिणामका द्रव्यबन्धके साधकतम रागसे
पर्यायके भेद ............................... १५३ अर्थनिश्चायक अस्तित्वको स्व – परके
उपचार करके कार्यरूपसे बतलाते हैं....१८१