Pravachansar (Hindi).

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[ २६ ]
विषय
गाथा
विषय
गाथा
(३) चरणानुयोगसूचक
जीवकी स्वद्रव्यमें प्रवृत्ति और परद्रव्यसे
निवृत्तिकी सिद्धिके लिये स्वपरका
चूलिका

विभाग............................... १८२ स्वद्रव्यमें प्रवृत्तिका और परद्रव्यमें प्रवृत्तिका

आचरणप्रज्ञापन
निमित्त स्वपरके विभागका ज्ञान
। ..............................
अज्ञान है
१८३
दुःखमुक्तिके लिये श्रामण्यमें जुड़ जानेकी
प्रेरणा..... ............................ २०१
आत्माका कर्म क्या हैइसका निरूपण ..... १८४
‘पुद्गलपरिणाम आत्माका कर्म क्यों नहीं है’

श्रामण्यइच्छुक पहले क्या

क्या
इस सन्देहका निराकरण..... ......... १८५
करता है .............................. २०२
आत्मा किस प्रकार पुद्गलकर्मोंके द्वारा

यथाजातरूपधरत्वक बहिरंगअन्तरंग दो

ग्रहण किया जाता है और छोड़ा
जाता है ?..... ...................... १८६

लिंग..... ............................. २०५ श्रामण्यकी ‘भवति’ क्रियामें, इतनेसे

पुद्गलकर्मोंकी विचित्रताको कौन कहता है ? . १८७
अकेला ही आत्मा बन्ध है..... ............ १८८
निश्चय और व्यवहारका अविरोध ............ १८९
अशुद्धनयसे अशुद्ध आत्माकी ही प्राप्ति..... १९०
शुद्धनयसे शुद्धात्माकी ही प्राप्ति.... ......... १९१
ध्रुवत्वके कारण शुद्धात्मा ही उपलब्ध

श्रामण्यकी प्राप्ति.... .................. २०७ सामायिकमें आरूढ़ श्रमण कदाचित्

छेदोपस्थापनाके योग्य.... ............. २०८ आचार्यके भेद..... .......................... २१० छिन्न संयमके प्रतिसंधानकी विधि..... ....... २११ श्रामण्यके छेदके आयतन होनेसे परद्रव्य

करने योग्य... ....................... १९२
प्रतिबन्धोंका निषेध.................... २१३
शुद्धात्माकी उपलब्धिसे क्या होता है...... . १९४
मोहग्रंथि टूटनेसे क्या होता है.... .......... १९५
एकाग्रसंचेतनलक्षणध्यान अशुद्धता

श्रामण्यकी परिपूर्णताका आयतन होनेसे

स्वद्रव्यमें ही प्रतिबन्ध कर्तव्य है...... . २१४ मुनिजनको निकटका सूक्ष्मपरद्रव्यप्रतिबन्ध

नहीं लाता..... ...................... १९६
भी निषेध्य..... ...................... २१५
सकलज्ञानी क्या ध्याते हैं ?.... ............ १९७
उपरोक्त प्रश्नका उत्तर...... ............... १९८
शुद्धात्मोपलब्धिलक्षण मोक्षमार्गको निश्चित

छेद क्या हैइसका उपदेश..... ........... २१६

छेदके अन्तरंगबहिरंग

ऐसे दो प्रकार.... ... २१७

सर्वथा अन्तरंग छेद निषेध्य है..... .......... २१८ उपधि अन्तरंग छेदकी भाँति त्याज्य है.... ... २१९ उपधिका निषेध वह अन्तरंग छेदका ही

करते हैं..... ........................ १९९ प्रतिज्ञाका निर्वहण करते हुए (आचार्यदेव)

स्वयं मोक्षमार्गभूत शुद्धात्मप्रवृत्ति
करते हैं..... ........................ २००
निषेध है..... ........................ २२०