उपदेश..... ........................... २२२
अकिंचित्कर.... ....................... २३९
‘उत्सर्ग ही वस्तुधर्म है, अपवाद नहीं’ ....... २२४
अपवादके विशेष...... ...................... २२५
अनिषिद्ध शरीरमात्र – उपधिके पालनकी
उक्त तीनोंकी युगपत्ताके साथ आत्मज्ञानकी
युगपत्ताको साधते हैं...... ............ २४० उक्त तीनोंकी युगपत्ता तथा आत्मज्ञानकी
लक्षण..... ........................... २४१
युक्ताहारविहारी साक्षात् अनाहारविहारी
श्रमणको युक्ताहारीपनेकी सिद्धि..... ........ २२८ युक्ताहारका विस्तृत स्वरूप..... ............. २२९ उत्सर्ग – अपवादकी मैत्री द्वारा आचरणका
होता.................................. २४३ एकाग्रता वह मोक्षमार्ग है ऐसा निश्चय करते
उत्सर्ग – अपवादके विरोधसे आचरणका
बतलाते हैं...... ...................... २४५ शुभोपयोगी श्रमणका लक्षण.... ............. २४६ शुभोपयोगी श्रमणोंकी प्रवृत्ति..... ........... २४७ शुभोपयोगियोंके ही ऐसी प्रवृत्तियाँ
व्यापार...... .......................... २३२ आगमहीनको मोक्षाख्य कर्मक्षय नहीं होता.... २३३ मोक्षमार्गियोंको आगम ही एक चक्षु..... .... २३४ आगमचक्षुसे सब कुछ दिखाई देता ही है.....२३५ आगमज्ञान, तत्पूर्वक तत्त्वार्थश्रद्धान और
होती हैं............................... २४८ सभी प्रवृत्तियाँ शुभोपयोगियोंके ही
होती हैं............................... २४९ प्रवृत्ति संयमकी विरोधी होनेका निषेध....... २५० प्रवृत्तिके विषयके दो विभाग................. २५१ प्रवृत्तिके कालका विभाग...... .............. २५२ लोकसंभाषणप्रवृत्ति उसके निमित्तके विभाग
तदुभयपूर्वक संयतत्वकी युगपत्ताको मोक्षमार्गपना होनेका नियम..... ...... २३६ उक्त तीनोंकी अयुगपत्ताको मोक्षमार्गत्व