Pravachansar (Hindi).

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गम्यमानत्वात गुणत्वे वा, न तावदमूर्तद्रव्यगुणः शब्दः, गुणगुणिनोरविभक्तप्रदेशत्वेनैकवेदन-
वेद्यत्वादमूर्तद्रव्यस्यापि श्रवणेन्द्रियविषयत्वापत्तेः पर्यायलक्षणेनोत्खातगुणलक्षणत्वान्मूर्तद्रव्य-
गुणोऽपि न भवति पर्यायलक्षणं हि कादाचित्कत्वं, गुणलक्षणं तु नित्यत्वम् ततः
कादाचित्कत्वोत्खातनित्यत्वस्य न शब्दस्यास्ति गुणत्वम् यत्तु तत्र नित्यत्वं तत्तदारम्भक-
पुद्गलानां तद्गुणानां च स्पर्शादीनामेव, न शब्दपर्यायस्येति दृढतरं ग्राह्यम् न च पुद्गल-
गाथाकथितक्रमेण परमाणुलक्षणसूक्ष्मस्वरूपादेः पृथ्वीस्कन्धलक्षणस्थूलस्वरूपपर्यन्तस्य च तथाहि
यथानन्तज्ञानादिचतुष्टयं विशेषलक्षणभूतं यथासंभवं सर्वजीवेषु साधारणं तथा वर्णादिचतुष्टयं विशेष-
लक्षणभूतं यथासंभवं सर्वपुद्गलेषु साधारणम्
यथैव चानन्तज्ञानादिचतुष्टयं मुक्तजीवेऽतीन्द्रियज्ञान-
विषयमनुमानगम्यमागमगम्यं च, तथा शुद्धपरमाणुद्रव्ये वर्णादिचतुष्टयमप्यतीन्द्रियज्ञानविषयमनुमान-
गम्यमागमगम्यं च
यथा वानन्तचतुष्टयस्य संसारिजीवे रागादिस्नेहनिमित्तेन कर्मबन्धवशादशुद्धत्वं
भवति तथा वर्णादिचतुष्टयस्यापि स्निग्धरूक्षगुणनिमित्तेन द्वि -अणुकादिबन्धावस्थायामशुद्धत्वम् यथा
वानन्तज्ञानादिचतुष्टयस्य रागादिस्नेहरहितशुद्धात्मध्यानेन शुद्धत्वं भवति तथा वर्णादिचतुष्टयस्यापि
स्निग्धगुणाभावे बन्धनेऽसति परमाणुपुद्गलावस्थायां शुद्धत्वमिति
सद्दो सो पोग्गलो यस्तु शब्दः स
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
२६१
यदि शब्दको (पर्याय न मानकर) गुण माना जाय तो वह क्यों योग्य नहीं है उसका
समाधान :
प्रथम तो, शब्द अमूर्त द्रव्यका गुण नहीं है क्योंकि गुण -गुणीमें अभिन्न प्रदेशपना होनेसे
वे (गुण -गुणी) एक वेदनसे वेद्य होनेसे अमूर्त द्रव्यको भी श्रवणेन्द्रियका विषयभूतपना आ
जायगा
(दूसरे, शब्दमें) पर्यायके लक्षणद्वारा गुणका लक्षण उत्थापित होनेसे शब्द मूर्त द्रव्यका
गुण भी नहीं है पर्यायका लक्षण कादाचित्कपना (अनित्यपना) है, और गुणका लक्षण
नित्यपना है; इसलिये (शब्दमें) अनित्यपनेसे नित्यपनेके उत्थापित होनेसे (अर्थात् शब्द कभी-
कभी ही होता है, और नित्य नहीं है, इसलिये) शब्द वह गुण नहीं है
जो वहाँ नित्यपना
है वह उसे (शब्दको) उत्पन्न करनेवाले पुद्गलोंका और उनके स्पर्शादिक गुणोंका ही है,
शब्दपर्यायका नहीं
इसप्रकार अति दृढ़तापूर्वक ग्रहण करना चाहिये
१. एक वेदनसे वेद्य = एक ज्ञानसे ज्ञात होने योग्य (नैयायिक शब्दको आकाशका गुण मानते हैं किन्तु यह
मान्यता अप्रमाण है गुण -गुणीके प्रदेश अभिन्न होते हैं, इसलिये जिस इन्द्रियसे गुण ज्ञात होता है उसीसे
गुणी -भी ज्ञात होना चाहिए शब्द कर्णेन्द्रियसे जाना जाता है, इसलिये आकाश भी कर्णेन्द्रियसे ज्ञात होना
चाहिये किन्तु वह तो किसी भी इन्द्रियसे ज्ञात होता नहीं है इसलिये शब्द आकाशादि अमूर्तिक द्रव्योंका
गुण नहीं है )