संख्येयाः कालाणवः समयस्यानंशत्वादसंख्येयांशत्वं न साधयन्ति ।।१३९।।
श्रद्धेयं, स्वसंवेदनज्ञानरूपेण ज्ञातव्यमाहारभयमैथुनपरिग्रहसंज्ञास्वरूपप्रभृतिसमस्तरागादिविभावत्यागेन
ध्येयमिति तात्पर्यम् ।।१३९।। एवं कालव्याख्यानमुख्यत्वेन षष्ठस्थले गाथाद्वयं गतम् । अथ पूर्वं
क्योंकि ‘समय’ निरंश है ।
भावार्थ : — परमाणुको एक आकाशप्रदेशसे दूसरे अनंतर (अन्तररहित) आकाशप्रदेश पर मन्द गतिसे जानेमें जितना काल लगता है उसे ‘समय’ कहते हैं । वह समय कालद्रव्यकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म पर्याय है । कालद्रव्य नित्य है; ‘समय’ उत्पन्न होता है और नष्ट होता है । जैसे आकाशप्रदेश आकाश द्रव्यका छोटेसे छोटा अंश है, उसके भाग नहीं होते, उसीप्रकार ‘समय’ कालद्रव्यकी छोटीसे छोटी निरंश पर्याय है, उसके भाग नहीं होते । यदि ‘समय’ के भाग हों तो परमाणुके द्वारा एक ‘समय’ में उल्लंघन किये जानेवाले आकाशप्रदेशके भी उतने ही भाग होने चाहिये; किन्तु आकाशप्रदेश तो निरंश है; इसलिये ‘समय’ भी निरंश ही है ।
यहाँ प्रश्न होता है कि ‘‘जब पुद्गल -परमाणु शीघ्र गतिके द्वारा एक ‘समय’ में लोकके एक छोरसे दूसरे छोर तक पहुँच जाता है तब वह चौदह राजू तक आकाशप्रदेशोंमें श्रेणिबद्ध जितने कालाणु हैं उन सबको स्पर्श करता है; इसलिये असंख्य कालाणुओंको स्पर्श करनेसे ‘समय’के असंख्य अंश होना चाहिये’’ इसका समाधान यह है : —
जैसे अनन्त परमाणुओंका कोई स्कंध आकाशके एक प्रदेशमें समाकर परिमाणमें (कदमें) एक परमाणु जितना ही होता है, सो वह परमाणुओंके विशेष (खास) प्रकारके अवगाहपरिणामके कारण ही है; (परमाणुओंमें ऐसी ही कोई विशिष्ट प्रकारकी १अवगाहपरिणामकी शक्ति है, जिसके कारण ऐसा होता है,) इससे कहीं परमाणुके अनन्त अंश नहीं होते; इसीप्रकार कोई परमाणु एक समयमें असंख्य कालाणुओंको उल्लंघन करके लोकके एक छोरसे दूसरे छोर तक पहुँच जाता है, सो वह परमाणुके विशेष प्रकारके गतिपरिणामके कारण ही है; (परमाणुमें ऐसी ही कोई विशिष्ट प्रकारकी गतिपरिणामकी शक्ति है, जिसके कारण ऐसा होता है;) इससे कहीं ‘समय’के असंख्य अंश नहीं होते ।।१३९।। १. आकाशमें अवगाहहेतुत्वके कारण ऐसी शक्ति है कि उसका एक प्रदेश भी अनन्त परमाणुओंको अवकाश