Pravachansar (Hindi). Gatha: 156.

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आत्मनो हि परद्रव्यसंयोगकारणमुपयोगविशेषः उपयोगो हि तावदात्मनः स्वभाव-
श्चैतन्यानुविधायिपरिणामत्वात स तु ज्ञानं दर्शनं च, साकारनिराकारत्वेनोभयरूपत्वा-
च्चैतन्यस्य अथायमुपयोगो द्वेधा विशिष्यते शुद्धाशुद्धत्वेन तत्र शुद्धो निरुपरागः, अशुद्धः
सोपरागः स तु विशुद्धिसंक्लेशरूपत्वेन द्वैविध्यादुपरागस्य द्विविधः शुभोऽशुभश्च ।।१५५।।
अथात्र क उपयोगः परद्रव्यसंयोगकारणमित्यावेदयति
उवओगो जदि हि सुहो पुण्णं जीवस्स संचयं जादि
असुहो वा तध पावं तेसिमभावे ण चयमत्थि ।।१५६।।
द्वेषमोहरूपश्चाशुभः वा वा शब्देन शुभाशुभानुरागरहितत्वेन शुद्धः उवओगो अप्पणो हवदि इत्थं-
भूतस्त्रिलक्षण उपयोग आत्मनः संबन्धी भवतीत्यर्थः ।।१५५।। अथोपयोगस्तावन्नरनारकादिपर्याय-
कारणभूतस्य कर्मरूपस्य परद्रव्यस्य संयोगकारणं भवति तावदिदानीं कस्य कर्मणः क उपयोगः कारणं
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
३०३
टीका :वास्तवमें आत्माको परद्रव्यके संयोगका कारण उपयोगविशेष है प्रथम
तो उपयोग वास्तवमें आत्माका स्वभाव है क्योंकि वह चैतन्यअनुविधायी (उपयोग चैतन्यका
अनुसरण करके होनेवाला) परिणाम है और वह उपयोग ज्ञान तथा दर्शन है, क्योंकि चैतन्य
साकार और निराकार ऐसा उभयरूप है अब इस उपयोगके शुद्ध और अशुद्ध ऐसे दो भेद
किये गये हैं उसमें, शुद्ध उपयोग निरुपराग (-निर्विकार) है; और अशुद्ध उपयोग सोपराग
(-सविकार) है और वह अशुद्ध उपयोग शुभ और अशुभ ऐसे दो प्रकारका है, क्योंकि
उपराग विशुद्धिरूप और संक्लेशरूप ऐसा दो प्रकारका है (अर्थात् विकार मन्दकषायरूप और
तीव्रकषायरूप ऐसा दो प्रकारका है )
भावार्थ :आत्मा उपयोगस्वरूप है प्रथम तो उपयोगके दो भेद हैंशुद्ध और
अशुद्ध और फि र अशुद्ध उपयोगके दो भेद हैं, शुभ तथा अशुभ ।।१५५।।
अब कहते हैं कि इनमें कौनसा उपयोग परद्रव्यके संयोगका कारण है :
१. उपयोगविशेष = उपयोगका भेद, प्रकार या अमुक प्रकारका उपयोग (अशुद्धोपयोग परद्रव्यके संयोगका
कारण है; यह १५६ वीं गाथामें कहेंगे )
२. साकार = आकारवाला या भेदवाला; सविकल्प; विशेष
३. निराकार = आकार रहित; भेदरहित; निर्विकल्प; सामान्य
उपयोग जो शुभ होय, संचय थाय पुण्य तणो तहीं,
ने पापसंचय अशुभथी; ज्यां उभय नहि संचय नहीं. १५६
.