Pravachansar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 309 of 513
PDF/HTML Page 342 of 546

 

background image
शरीरं च वाचं च मनश्च परद्रव्यत्वेनाहं प्रपद्ये, ततो न तेषु कश्चिदपि मम
पक्षपातोऽस्ति, सर्वत्राप्यहमत्यन्तं मध्यस्थोऽस्मि तथा हिन खल्वहं शरीरवाङ्मसां
स्वरूपाधारभूतमचेतनद्रव्यमस्मि; तानि खलु मां स्वरूपाधारमन्तरेणाप्यात्मनः स्वरूपं धारयन्ति
ततोऽहं शरीरवाङ्मनःपक्षपातमपास्यात्यन्तं मध्यस्थोऽस्मि न च मे शरीरवाङ्मनःकारणा-
चेतनद्रव्यत्वमस्ति; तानि खलु मां कारणमन्तरेणापि कारणवन्ति भवन्ति ततोऽहं
तत्कारणत्वपक्षपातमपास्यास्म्ययमत्यन्तं मध्यस्थः न च मे स्वतन्त्रशरीरवाङ्मनःकारकाचेतन-
द्रव्यत्वमस्ति; तानि खलु मां कर्तारमन्तरेणापि क्रियमाणानि ततोऽहं तत्कर्तृत्व-
पक्षपातमपास्यास्म्ययमत्यन्तं मध्यस्थः न च मे स्वतन्त्रशरीरवाङ्मनःकारकाचेतनद्रव्य-
प्रयोजकत्वमस्ति; तानि खलु मां कारकप्रयोजकमन्तरेणापि क्रियमाणानि ततोऽहं तत्कारक-
प्रयोजकत्वपक्षपातमपास्यास्म्ययमत्यन्तं मध्यस्थः न च मे स्वतन्त्रशरीरवाङ्मनःकारका-
स्वशुद्धात्मभावनाविषये यत्कृतकारितानुमतस्वरूपं तद्विलक्षणं यन्मनोवचनकायविषये कृतकारितानु-
मतस्वरूपं तन्नाहं भवामि
ततः कारणात्तत्पक्षपातं मुक्त्वात्यन्तमध्यस्थोऽस्मीति तात्पर्यम् ।।१६०।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
३०९
टीका :मैं शरीर, वाणी और मनको परद्रव्यके रूपमें समझता हूँ, इसलिये मुझे उनके
प्रति कुछ भी पक्षपात नहीं है मैं उन सबके प्रति अत्यन्त मध्यस्थ हूँ वह इसप्रकार :
वास्तवमें शरीर, वाणी और मनके स्वरूपका आधारभूत ऐसा अचेतन द्रव्य नहीं हूँ,
मैं स्वरूपाधार (हुए) विना भी वे वास्तवमें अपने स्वरूपको धारण करते हैं इसलिये मैं शरीर,
वाणी और मनका पक्षपात छोड़कर अत्यन्त मध्यस्थ हूँ
और मैं शरीर, वाणी तथा मनका कारण ऐसा अचेतन द्रव्य नहीं हूँ मैं कारण (हुए)
विना भी वे वास्तवमें कारणवान् हैं इसलिये उनके कारणपनेका पक्षपात छोड़कर यह मैं
अत्यन्त मध्यस्थ हूँ
और मैं स्वतंत्ररूपसे शरीर, वाणी तथा मनका कर्ता ऐसा अचेतन द्रव्य नहीं हूँ; मैं कर्ता
(हुए) विना भी वे वास्तवमें किये जाते हैं इसलिये उनके कर्तृत्वका पक्षपात छोड़कर यह
मैं अत्यन्त मध्यस्थ हूँ
और मैं, स्वतन्त्ररूपसे शरीर, वाणी तथा मनका कारक (कर्ता) ऐसा जो अचेतन द्रव्य
है उसका प्रयोजक नहीं हूँ; मैं कर्ताप्रयोजक विना भी (अर्थात् मैं उनके कर्ताका प्रयोजक
उनका करानेवालाहुए विना भी ) वे वास्तवमें किये जाते हैं इसलिये यह मैं उनके कर्ताके
प्रयोजकपनेका पक्षपात छोड़कर अत्यन्त मध्यस्थ हूँ
और मैं स्वतन्त्ररूपसे शरीर, वाणी तथा मनका कारक जो अचेतन द्रव्य है, उसका