Pravachansar (Hindi). Gatha: 166.

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अथ परमाणूनां पिण्डत्वस्य यथोदितहेतुत्वमवधारयति
णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्धेण बंधमणुभवदि
लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुत्तो ।।१६६।।
स्निग्धत्वेन द्विगुणश्चतुर्गुणस्निग्धेन बन्धमनुभवति
रूक्षेण वा त्रिगुणितोऽणुर्बध्यते पञ्चगुणयुक्तः ।।१६६।।
यथोदितहेतुकमेव परमाणूनां पिण्डत्वमवधार्यं, द्विचतुर्गुणयोस्त्रिपंचगुणयोश्च द्वयोः
स्निग्धयोः द्वयो रूक्षयोर्द्वयोः स्निग्धरूक्षयोर्वा परमाण्वोर्बन्धस्य प्रसिद्धेः उक्तं च‘‘णिद्धा
णिद्धेण बज्झंति लुक्खा लुकखा य पोग्गला णिद्धलुक्खा य बज्झंति रूवारूवी य पोग्गला ।।’’
त्रिशक्तियुक्तरूक्षस्य पञ्चगुणरूक्षेण स्निग्धेन वा विषमसंज्ञेन द्विगुणाधिकत्वे सति बन्धो भवतीति
ज्ञातव्यम्
अयं तु विशेषःपरमानन्दैकलक्षणस्वसंवेदनज्ञानबलेन हीयमानरागद्वेषत्वे सति पूर्वोक्त-
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
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अब ऐसा निश्चित करते हैं कि परमाणुओंके पिण्डपनेमें यथोक्त (उपरोक्त) हेतु है :
अन्वयार्थ :[स्निग्धत्वेन द्विगुणः ] स्निग्धरूपसे दो अंशवाला परमाणु
[चतुर्गुणस्निग्धेन ] चार अंशवाले स्निग्ध (अथवा रूक्ष) परमाणुके साथ [बंधं अनुभवति ]
बंधका अनुभव करता है
[वा ] अथवा [रूक्षेण त्रिगुणितः अणुः ] रूक्षरूपसे तीन अंशवाला
परमाणु [पंचगुणयुक्तः ] पाँच अंशवालेके साथ युक्त होता हुआ [बध्यते ] बंधता है ।।१६६।।
टीका :यथोक्त हेतुसे ही परमाणुओंके पिण्डपना होता है ऐसा निश्चित करना
चाहिये; क्योंकि दो और चार गुणवाले तथा तीन और पाँच गुणवाले दो स्निग्ध परमाणुओंके
अथवा दो रूक्ष परमाणुओंके अथवा दो स्निग्ध
रूक्ष परमाणुओंके (एक स्निग्ध और एक
रूक्ष परमाणुके) बंधकी प्रसिद्धि है कहा भी है कि :
‘‘णिद्धा णिद्धेण बज्झंति लुक्खा लुक्खा य पोग्गला
णिद्धलुक्खा य बज्झंति रूवारूवी य पोग्गला ।।’’
‘‘णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण
णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमें समे वा ।।’’
चतुरंश को स्निग्धाणु सह द्वयअंशमय स्निग्धाणुनो;
पंचांशी अणु सह बंध थाय त्रयांशमय रूक्षाणुनो. १६६.