‘‘णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण । णिद्धस्स लुक्खेण हवेज्ज बंधो
जहण्णवज्जे विसमे समे वा ।।’’ ।।१६६।।
जलवालुकादृष्टान्तेन यथा जीवानां बन्धो न भवति तथा जघन्यस्निग्धरूक्षत्वगुणे सति परमाणूनां चेति ।
तथा चोक्तम् — ‘‘णिद्धस्स णिद्धेण दुराधिगेण लुक्खस्स लुक्खेण दुराधिगेण । णिद्धस्स लुक्खेण
हवेदि बंधो जघण्णवज्जे विसमे समे वा’’ ।।१६६।। एवं पूर्वोक्तप्रकारेण स्निग्धरूक्षपरिणत-
३१८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
[अर्थ : — पुद्गल १‘रूपी’ और ‘अरूपी’ होते हैं । उनमेंसे स्निग्ध पुद्गल स्निग्धके
साथ बंधते हैं, रूक्ष पुद्गल रूक्षके साथ बंधते हैं, स्निग्ध और रूक्ष भी बंधते हैं ।
जघन्यके अतिरिक्त सम अंशवाला हो या विषम अंशवाला हो, स्निग्धका दो अधिक
अंशवाले स्निग्ध परमाणुके साथ, रूक्षका दो अधिक अंशवाले रूक्ष परमाणुके साथ और
स्निग्धका (दो अधिक अंशवाले) रूक्ष परमाणुके साथ बंध होता है । ]
भावार्थ : — दो अंशोंसे लेकर अनन्त अंश स्निग्धता या रूक्षतावाला परमाणु उससे
दो अधिक अंश स्निग्धता या रूक्षतावाले परमाणुके साथ बँधकर स्कंध बनता है । जैसे : —
२ अंश स्निग्धतावाला परमाणु ४ अंश स्निग्धतावाले परमाणुके साथ बंधता है; ९१ अंश
स्निग्धतावाला परमाणु ९३ अंश रूक्षतावाले परमाणुके साथ बंधता है; ५३३ अंश रूक्षतावाला
परमाणु ५३५ अंश रूक्षतावाले परमाणुके साथ बंधता है; ७००६ अंश रूक्षतावाला परमाणु
७००८ अंश स्निग्धतावाले परमाणुके साथ बंधता है — इन उदाहरणोंके अनुसार दो से लेकर
अनन्त अंशों (अविभागी प्रतिच्छेदों) तक समझ लेना चाहिये ।
मात्र एक अंशवाले परमाणुमें जघन्यभावके कारण बंधकी योग्यता नहीं है, इसलिये
एक अंशवाला स्निग्ध या रूक्ष परमाणु तीन अंशवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणुके साथ भी नहीं
बंधता ।
इसप्रकार, (एक अंशवालेके अतिरिक्त) दो परमाणुओंके बीच यदि दो अंशोंका अन्तर
हो तब ही वे बँधते हैं; दो से अधिक या कम अंशोंका अन्तर हो तो बंध नहीं होता ।
जैसे : – पाँच अंश स्निग्धता या रूक्षतावाला परमाणु सात अंशोंवाले परमाणुके साथ बंधता है;
परन्तु पाँच अंशोंवाला परमाणु आठ या छह अंशोंवाले (अथवा पाँच अंशोंवाले) परमाणुके
साथ नहीं बंधता ।।१६६।।
१. किसी एक परमाणुकी अपेक्षासे विसदृशजातिका समान अंशोंवाला दूसरा परमाणु ‘रूपी’ कहलाता है और
शेष सब परमाणु उसकी अपेक्षासे ‘अरूपी’ कहलाते हैं । जैसे — पाँच अंश स्निग्धतावाले परमाणुको पाँच
अंश रूक्षतावाला दूसरा परमाणु ‘रूपी’ है और शेष सब परमाणु उसके लिये ‘अरूपी’ हैं । इसका अर्थ
यह हुआ कि — विसदृशजातिके समान अंशवाले परमाणु परस्पर ‘रूपी’ हैं; और सदृशजातिके अथवा
असमान अंशवाले परमाणु परस्पर ‘अरूपी’ है ।