यथोदितस्निग्धरूक्षत्वस्पर्शविशेषासंभावनया चैकांगविकलत्वात् ।।१७३।।
अथैवममूर्तस्याप्यात्मनो बन्धो भवतीति सिद्धान्तयति —
रूवादिएहिं रहिदो पेच्छदि जाणादि रूवमादीणि ।
दव्वाणि गुणे य जधा तह बंधो तेण जाणीहि ।।१७४।।
रूपादिकै रहितः पश्यति जानाति रूपादीनि ।
द्रव्याणि गुणांश्च यथा तथा बन्धस्तेन जानीहि ।।१७४।।
येन प्रकारेण रूपादिरहितो रूपीणि द्रव्याणि तद्गुणांश्च पश्यति जानाति च, तेनैव
प्रकारेण रूपादिरहितो रूपिभिः कर्मपुद्गलैः किल बध्यते; अन्यथा कथममूर्तो मूर्तं पश्यति
पौद्गलं कर्म कथं बध्नाति, न कथमपीति पूर्वपक्षः ।।१७३।। अथैवममूर्तस्याप्यात्मनो नयविभागेन
बन्धो भवतीति प्रत्युत्तरं ददाति ---रूवादिएहिं रहिदो अमूर्तपरमचिज्ज्योतिःपरिणतत्वेन तावदयमात्मा
रूपादिरहितः । तथाविधः सन् किं करोति । पेच्छदि जाणादि मुक्तावस्थायां युगपत्परिच्छित्तिरूप-
सामान्यविशेषग्राहककेवलदर्शनज्ञानोपयोगेन यद्यपि तादात्म्यसंबन्धो नास्ति तथापि ग्राह्यग्राहकलक्षण-
संबन्धेन पश्यति जानाति । कानि कर्मतापन्नानि । रूवमादीणि दव्वाणि रूपरसगन्धस्पर्शसहितानि
मूर्तद्रव्याणि । न केवलं द्रव्याणि गुणे य जधा तद्गुणांश्च यथा । अथवा यथा कश्चित्संसारी
३३०प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अंगोंमेंसे एक अंग अयोग्य है — स्पर्शगुणरहित होनेसे बंधकी योग्यतावाला नहीं है ।) ।।१७३।।
अब ऐसा सिद्धान्त निश्चित करते हैं कि आत्मा अमूर्त होने पर भी उसको इसप्रकार
बंध होता है : —
अन्वयार्थ : — [यथा ] जैसे [रूपादिकैः रहितः ] रूपादिरहित (जीव) [रूपादीनि ]
रूपादिको – [द्रव्याणि गुणान् च ] द्रव्योंको तथा गुणोंको (रूपी द्रव्योंको और उनके
गुणोंको) — [पश्यति जानाति ] देखता है और जानता है [तथा ] उसीप्रकार [तेन ] उसके साथ
(-अरूपीका रूपीके साथ) [बंधः जानीहि ] बंध जानो ।।१७४।।
टीका : — जैसे रूपादिरहित (जीव) रूपी द्रव्योंको तथा उनके गुणोंको देखता
है तथा जानता है उसीप्रकार रूपादिरहित (जीव) रूपी कर्मपुद्गलोंके साथ बँधता है;
क्योंकि यदि ऐसा न हो तो यहाँ भी (देखने – जाननेके संबंधमें भी) वह प्रश्न अनिवार्य
जे रीत दर्शन – ज्ञान थाय रूपादिनुं — गुण -द्रव्यनुं,
ते रीत बंधन जाण मूर्तिरहितने पण मूर्तनुं. १७४.