जानाति चेत्यत्रापि पर्यनुयोगस्यानिवार्यत्वात् । न चैतदत्यन्तदुर्घटत्वाद्दार्ष्टान्तिकीकृ तं, किं तु
दृष्टान्तद्वारेणाबालगोपालप्रक टितम् । तथा हि — यथा बालकस्य गोपालकस्य वा पृथगवस्थितं
मृद्बलीवर्दं बलीवर्दं वा पश्यतो जानतश्च न बलीवर्देन सहास्ति संबन्धः, विषय-
भावावस्थितबलीवर्दनिमित्तोपयोगाधिरूढबलीवर्दाकारदर्शनज्ञानसंबन्धो बलीवर्दसंबन्धव्यवहार-
साधकस्त्वस्त्येव, तथा किलात्मनो नीरूपत्वेन स्पर्शशून्यत्वान्न कर्मपुद्गलैः सहास्ति संबन्धः,
एकावगाहभावावस्थितकर्मपुद्गलनिमित्तोपयोगाधिरूढरागद्वेषादिभावसंबन्धः कर्मपुद्गलबन्ध-
व्यवहारसाधकस्त्वस्त्येव ।।१७४।।
जीवो विशेषभेदज्ञानरहितः सन् काष्ठपाषाणाद्यचेतनजिनप्रतिमां दृष्टवा मदीयाराध्योऽयमिति मन्यते ।
यद्यपि तत्र सत्तावलोकदर्शनेन सह प्रतिमायास्तादात्म्यसंबन्धो नास्ति तथापि परिच्छेद्यपरिच्छेदक-
लक्षणसंबन्धोऽस्ति । यथा वा समवसरणे प्रत्यक्षजिनेश्वरं दृष्टवा विशेषभेदज्ञानी मन्यते
मदीयाराध्योऽयमिति । तत्रापि यद्यप्यवलोक नज्ञानस्य जिनेश्वरेण सह तादात्म्यसंबन्धो नास्ति तथाप्या-
राध्याराधकसंबन्धोऽस्ति । तह बंधो तेण जाणीहि तथा बन्धं तेनैव दृष्टान्तेन जानीहि । अयमत्रार्थः —
यद्यप्ययमात्मा निश्चयेनामूर्तस्तथाप्यनादिकर्मबन्धवशाद्व्यवहारेण मूर्तः सन् द्रव्यबन्धनिमित्तभूतं रागादि-
विकल्परूपं भावबन्धोपयोगं करोति । तस्मिन्सति मूर्तद्रव्यकर्मणा सह यद्यपि तादात्म्यसंबन्धो नास्ति
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
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है कि अमूर्त मूर्तको कैसे देखता – जानता है ?
और ऐसा भी नहीं है कि यह (अरूपीका रूपोके साथ बंध होनेकी) बात अत्यन्त
दुर्घट है इसलिये उसे दार्ष्टान्तरूप बनाया है, परन्तु दृष्टांत द्वारा आबालगोपाल सभीको प्रगट
(ज्ञात) हो जाय इसलिये दृष्टान्त द्वारा समझाया गया है । यथा : — बालगोपालका पृथक्
रहनेवाले मिट्टीके बैलको अथवा (सच्चे) बैलको देखने और जानने पर बैलके साथ संबंध
नहीं है तथापि विषयरूपसे रहनेवाला बैल जिनका निमित्त है ऐसे उपयोगारूढ़ वृषभाकार
दर्शन – ज्ञानके साथका संबंध बैलके साथके संबंधरूप व्यवहारका साधक अवश्य है;
इसीप्रकार आत्मा अरूपीपनेके कारण स्पर्शशून्य है, इसलिये उसका कर्मपुद्गलोंके साथ
संबंध नहीं है, तथापि एकावगाहरूपसे रहनेवाले कर्मपुद्गल जिनके निमित्त हैं ऐसे
उपयोगारूढ़ रागद्वेषादिकभावोंके साथका संबंध कर्मपुद्गलोंके साथके बंधरूप व्यवहारका
साधक अवश्य है ।
भावार्थ : — ‘आत्मा अमूर्तिक होने पर भी वह मूर्तिककर्मपुद्गलोंके साथ कैसे
बँधता है ?’ इस प्रश्नका उत्तर देते हुए आचार्यदेवने कहा है कि — आत्माके अमूर्तिक होने
पर भी वह मूर्तिक पदार्थोंको कैसे जानता है ? जैसे वह मूर्तिक पदार्थोंको जानता है
उसीप्रकार मूर्तिक कर्मपुद्गलोंके साथ बँधता है ।