Pravachansar (Hindi). Gatha: 186.

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गृह्नाति नैव न मुञ्चति करोति न हि पुद्गलानि कर्माणि
जीवः पुद्गलमध्ये वर्तमानोऽपि सर्वकालेषु ।।१८५।।
न खल्वात्मनः पुद्गलपरिणामः कर्म, परद्रव्योपादानहानशून्यत्वात् यो हि यस्य
परिणमयिता दृष्टः स न तदुपादानहानशून्यो दृष्टः, यथाग्निरयःपिण्डस्य आत्मा तु
तुल्यक्षेत्रवर्तित्वेऽपि परद्रव्योपादानहानशून्य एव ततो न स पुद्गलानां कर्मभावेन परिणमयिता
स्यात।।१८५।।
अथात्मनः कुतस्तर्हि पुद्गलकर्मभिरुपादानं हानं चेति निरूपयति
स इदाणिं कत्ता सं सगपरिणामस्स दव्वजादस्स
आदीयदे कदाइं विमुच्चदे कम्मधूलीहिं ।।१८६।।
रागादिपरिणामरूपं निश्चयेन भावकर्म भण्यते कस्मात् तत्पायःपिण्डवत्तेनात्मना प्राप्यत्वाद्व्या-
प्यत्वादिति पोग्गलदव्वमयाणं ण दु कत्ता सव्वभावाणं चिद्रूपात्मनो विलक्षणानां पुद्गलद्रव्यमयानां न तु कर्ता
सर्वभावानां ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मपर्यायाणामिति ततो ज्ञायते जीवस्य रागादिस्वपरिणाम एव कर्म,
तस्यैव स कर्तेति ।।१८४।। अथात्मनः कथं द्रव्यकर्मरूपपरिणामः कर्म न स्यादिति प्रश्ने समाधानं
ददातिगेण्हदि णेव ण मुंचदि क रेदि ण हि पोग्गलाणि कम्माणि जीवो यथा निर्विकल्पसमाधिरतः परममुनिः
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञेयतत्त्व -प्रज्ञापन
३४५
प्र. ४४
अन्वयार्थ :[जीवः ] जीव [सर्वकालेषु ] सभी कालोंमें [पुद्गलमध्ये वर्तमानः
अपि ] पुद्गलके मध्यमें रहता हुआ भी [पुद्गलानि कर्माणि ] पौद्गलिक कर्मोंको [हि ]
वास्तवमें [गृह्णाति न एव ] न तो ग्रहण करता है, [न मुचंति ] न छोड़ता है, और [न करोति ]
न करता है
।।१८६।।
टीका :वास्तवमें पुद्गलपरिणाम आत्माका कर्म नहीं है, क्योंकि वह परद्रव्यके
ग्रहणत्यागसे रहित है; जो जिसका परिणमानेवाला देखा जाता है वह उसके ग्रहणत्यागसे रहित
नहीं देखा जाता; जैसेअग्नि लोहेके गोलेमें ग्रहणत्याग रहित होती है आत्मा तो तुल्य
क्षेत्रमें वर्तता हुआ भी (-परद्रव्यके साथ एकक्षेत्रावगाही होनेपर भी) परद्रव्यके ग्रहणत्यागसे
रहित ही है इसलिये वह पुद्गलोंको कर्मभावसे परिणमानेवाला नहीं है ।।१८५।।
तब (यदि आत्मा पुद्गलोंको कर्मरूप परिणमित नहीं करता तो फि र) आत्मा
किसप्रकार पुद्गल कर्मोंके द्वारा ग्रहण किया जाता है और छोड़ा जाता है ? इसका अब
निरूपण करते हैं :
ते हाल द्रव्यजनित निज परिणामनो कर्ता बने,
तेथी ग्रहाय अने कदापि मुकाय छे कर्मो वडे. १८६
.