हों । इससे निश्चित होता है कि केवल यह एक ही मोक्षका मार्ग है, दूसरा नहीं । — अधिक
विस्तारसे बस हो ! उस शुद्धात्मतत्त्वमें प्रवर्ते हुए सिद्धोंको तथा उस शुद्धात्मतत्त्वप्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गको, जिसमेंसे १भाव्य और भावकका विभाग अस्त हो गया है ऐसा
नोआगमभावनमस्कार हो ! मोक्षमार्ग अवधारित किया है, कृत्यकिया जा रहा है, (अर्थात्
मोक्षमार्ग निश्चित किया है और उसमें) प्रवर्तन कर रहे हैं ।।१९९।।
अब, ‘साम्यको प्राप्त करता हूँ’ ऐसी (पाँचवीं गाथामें की गई) पूर्वप्रतिज्ञाका निर्वहणकरते हुए (आचार्यदेव) स्वयं भी मोक्षमार्गभूत शुद्धात्मप्रवृत्ति करते हैं : —
अन्वयार्थ : — [तस्मात् ] ऐसा होनेसे (अर्थात् शुद्धात्मामें प्रवृत्तिके द्वारा ही मोक्षहोता होनेसे) [तथा ] इसप्रकार [आत्मानं ] आत्माको [स्वभावेन ज्ञायकं ] स्वभावसे ज्ञायक [ज्ञात्वा ] जानकर [निर्ममत्वे उपस्थितः ] मैं निर्ममत्वमें स्थित रहता हुआ [ममतां परिवर्जयामि ] ममताका परित्याग करता हूँ ।।२००।।१. भाव्य = घ्येय; भावक = ध्याता; भाव्य -भावकके अर्थके लिये देखो पृ० ६ में फु टनोट ।
ए रीत तेथी आत्मने ज्ञायक स्वभावी जाणीने, निर्ममपणे रही स्थित आ परिवर्जुं छुं हुं ममत्वने. २००.