आत्मद्रव्य नियतिनयसे नियतस्वभावरूप भासित होता है, जिसकी उष्णता नियमित (-नियत) होती है ऐसी अग्निकी भाँति । [आत्मा नियतिनयसे नियतस्वभाववाला भासित होता है जैसे अग्निके उष्णताका नियम होनेसे अग्नि नियतस्वभाववाली भासित होती है । ] २६.
आत्मद्रव्य अनियतनयसे अनियतस्वभावरूप भासित होता है, जिसके उष्णता नियति (-नियम) से नियमित नहीं है ऐसे पानीके भाँति । [आत्मा अनियतिनयसे अनियतस्वभाववाला भासित होता है, जैसे पानीके (अग्निके निमित्तसे होनेवाली) उष्णता अनियत – होनेसे पानी अनियतस्वभाववाला भासित होता है ।] २७.
आत्मद्रव्य स्वभावनयसे संस्कारको निरर्थक करनेवाला है (अर्थात् आत्माको स्वभावनयसे संस्कार निरुपयोगी है), जिसकी किसीके नोक नहीं निकाली जाती (किन्तु जो स्वभावसे ही नुकीला है) ऐसे पैने काँटेकी भाँति । २८.
आत्मद्रव्य अस्वभावनयसे संस्कारको सार्थक करनेवाला (अर्थात् आत्माको अस्वभावनयसे संस्कार उपयोगी है), जिसकी (स्वभावसे नोक नहीं होती, किन्तु संस्कार करके लुहारके द्वारा नोक निकाली गई हो ऐसे पैने बाणकी भाँति ।) २९.
आत्मद्रव्य कालनयसे जिसकी सिद्धि समयपर आधार रखती है ऐसा है, गर्मीके दिनोंके अनुसार पकनेवाले आम्रफलकी भाँति । [कालनयसे आत्मद्रव्यकी सिद्धि समय पर आधार रखती है, गर्मीके दिनोंके अनुसार पकनेवाले आमकी भाँति । ] ३०.
आत्मद्रव्य अकालनयसे जिसकी सिद्धि समयपर आधार नहीं रखती ऐसा है, कृत्रिम गर्मीसे पकाये गये आम्रफलकी भाँति । ३१.
आत्मद्रव्य पुरुषकारनयसे जिसकी सिद्धि यत्नसाध्य है ऐसा है, जिसे पुरुषकारसे १नीबूका वृक्ष प्राप्त होता है ( – उगता है) ऐसे पुरुषकारवादीकी भाँति । [पुरुषार्थनयसे आत्माकी सिद्धि १. संस्कृत टीकामें ‘मधुकुक्कटी’ शब्द है, जिसका अर्थ यहाँ ‘नीबूका वृक्ष’ किया है; किन्तु हिन्दी टीकामें