दर्पणवदनेकम् २५ । नियतिनयेन नियतिनियमितौष्ण्यवह्निवन्नियतस्वभावभासि २६ ।
अनियतिनयेन नियत्यनियमितौष्ण्यपानीयवदनियतस्वभावभासि २७ । स्वभावनयेनानिशित-
तीक्ष्णकण्टकवत्संस्कारानर्थक्यकारि २८ । अस्वभावनयेनायस्कारनिशिततीक्ष्णविशिखवत्संस्कार-
सार्थक्य -कारि २९ । कालनयेन निदाघदिवसानुसारिपच्यमानसहकारफलवत्समयायत्तसिद्धिः
३० । अकालनयेन कृत्रिमोष्मपाच्यमानसहकारफलवत्समयानायत्तसिद्धिः ३१ । पुरुषकारनयेन
निर्विकल्पसमाधिप्रस्तावे निर्विकारस्वसंवेदनज्ञानेनापि जानातीति ।। पुनरप्याह शिष्यः — ज्ञातमेवात्म-
द्रव्यं हे भगवन्निदानीं तस्य प्रा प्त्युपायः कथ्यताम् । भगवानाह — सकलविमलकेवलज्ञान-
४९८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
आत्मद्रव्य नियतिनयसे नियतस्वभावरूप भासित होता है, जिसकी उष्णता नियमित
(-नियत) होती है ऐसी अग्निकी भाँति । [आत्मा नियतिनयसे नियतस्वभाववाला भासित
होता है जैसे अग्निके उष्णताका नियम होनेसे अग्नि नियतस्वभाववाली भासित होती है । ] २६.
आत्मद्रव्य अनियतनयसे अनियतस्वभावरूप भासित होता है, जिसके उष्णता नियति
(-नियम) से नियमित नहीं है ऐसे पानीके भाँति । [आत्मा अनियतिनयसे अनियतस्वभाववाला
भासित होता है, जैसे पानीके (अग्निके निमित्तसे होनेवाली) उष्णता अनियत – होनेसे पानी
अनियतस्वभाववाला भासित होता है ।] २७.
आत्मद्रव्य स्वभावनयसे संस्कारको निरर्थक करनेवाला है (अर्थात् आत्माको
स्वभावनयसे संस्कार निरुपयोगी है), जिसकी किसीके नोक नहीं निकाली जाती (किन्तु जो
स्वभावसे ही नुकीला है) ऐसे पैने काँटेकी भाँति । २८.
आत्मद्रव्य अस्वभावनयसे संस्कारको सार्थक करनेवाला (अर्थात् आत्माको
अस्वभावनयसे संस्कार उपयोगी है), जिसकी (स्वभावसे नोक नहीं होती, किन्तु संस्कार करके
लुहारके द्वारा नोक निकाली गई हो ऐसे पैने बाणकी भाँति ।) २९.
आत्मद्रव्य कालनयसे जिसकी सिद्धि समयपर आधार रखती है ऐसा है, गर्मीके दिनोंके
अनुसार पकनेवाले आम्रफलकी भाँति । [कालनयसे आत्मद्रव्यकी सिद्धि समय पर आधार
रखती है, गर्मीके दिनोंके अनुसार पकनेवाले आमकी भाँति । ] ३०.
आत्मद्रव्य अकालनयसे जिसकी सिद्धि समयपर आधार नहीं रखती ऐसा है, कृत्रिम
गर्मीसे पकाये गये आम्रफलकी भाँति । ३१.
आत्मद्रव्य पुरुषकारनयसे जिसकी सिद्धि यत्नसाध्य है ऐसा है, जिसे पुरुषकारसे १नीबूका
वृक्ष प्राप्त होता है ( – उगता है) ऐसे पुरुषकारवादीकी भाँति । [पुरुषार्थनयसे आत्माकी सिद्धि
१. संस्कृत टीकामें ‘मधुकुक्कटी’ शब्द है, जिसका अर्थ यहाँ ‘नीबूका वृक्ष’ किया है; किन्तु हिन्दी टीकामें
श्री पांडे हेमराजजीने ‘मधुछत्ता’ अर्थ किया है ।