रहितपरमानन्दैकलक्षणसुखामृतरसास्वादानुभवमलभमानः सन् पूर्णमासीदिवसे जलकल्लोलक्षुभितसमुद्र
आत्मद्रव्य दैवनयसे जिसकी सिद्धि अयत्नसाध्य है ( – यत्न बिना होता है) ऐसा है; पुरुषकारवादी द्वारा प्रदत्त नीबूके वृक्षके भीतरसे जिसे (बिना यत्नके, दैवसे) माणिक प्राप्त हो जाता है ऐसे दैववादीकी भाँति । ३३.
आत्मद्रव्य ईश्वरनयसे परतंत्रता भोगनेवाला है, धायकी दुकान पर दूध पिलाये जानेवाले राहगीरके बालककी भाँति । ३४.
आत्मद्रव्य अनीश्वरनयसे स्वतंत्रता भोगनेवाला है, हिरनको स्वच्छन्दता (स्वतन्त्रता, स्वेच्छा) पूर्वक फाड़कर खा जानेवाले सिंहकी भाँति । ३५.
आत्मद्रव्य गुणीनयसे गुणग्राही है, शिक्षकके द्वारा जिसे शिक्षा दी जाती है ऐसे कुमारकी भाँति । ३६.
आत्मद्रव्य अगुणीनयसे केवल साक्षी ही है ( – गुणग्राही नहीं है), जिसे शिक्षकके द्वारा शिक्षा दी जा रही है ऐसे कुमारको देखनेवाले पुरुष ( – प्रेक्षक) की भाँति । ३७.
आत्मद्रव्य कर्तृनयसे, रंगरेजकी भाँति, रागादि परिणामका कर्ता है (अर्थात् आत्मा कर्तानयसे रागादिपरिणामोंका कर्ता है, जैसे रंगरेज रंगनेके कार्यका कर्ता है ।) ३८.
आत्मद्रव्य अकर्तृनयसे केवल साक्षी ही है ( – कर्ता नहीं), अपने कार्यमें प्रवृत्त रंगरेजको देखनेवाले पुरुष (-प्रेक्षक) की भाँति । ३९.
आत्मद्रव्य भोक्तृनयसे सुखदुःखादिका भोक्ता है, हितकारी – अहितकारी अन्नको खानेवाले रोगीकी भाँति । [आत्मा भोक्तानयसे सुखदुःखादिको भोगता है, जैसे हितकारक या अहितकारक अन्नको खानेवाला रोगी सुख या दुःखको भोगता है । ] ४०.