Pravachansar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 501 of 513
PDF/HTML Page 534 of 546

 

background image
घटशराव -विशिष्टमृण्मात्रवत्सोपाधिस्वभावम् ४६ शुद्धनयेन केवलमृण्मात्रवन्निरुपाधिस्वभावम्
४७ तदुक्तम्‘‘जावदिया वयणवहा तावदिया चेव होंति णयवादा जावदिया णयवादा
तावदिया चेव होंति परसमया ।।’’ ‘‘परसमयाणं वयणं मिच्छं खलु होदि सव्वहा वयणा
जइणाणं पुण वयणं सम्मं खु कहंचि वयणादो ।।’’ एवमनया दिशा प्रत्येकमनन्त-
धर्मव्यापकानन्तनयैर्निरूप्यमाणमुदन्वदन्तरालमिलद्धवलनीलगांगयामुनोदकभारवदनन्तधर्माणां
परस्परमतद्भावमात्रेणाशक्यविवेचनत्वादमेचकस्वभावैकधर्मव्यापकैकधर्मित्वाद्यथोदितैकान्तात्मा-
रूपेन्द्रियपटुत्वनिर्व्याध्यायुष्यवरबुद्धिसद्धर्मश्रवणग्रहणधारणश्रद्धानसंयमविषयसुखनिवर्तनक्रोधादिकषायव्या-
वर्तनादिपरंपरादुर्लभान्यपि कथंचित्काकतालीयन्यायेनावाप्य सकलविमलकेवलज्ञानदर्शनस्वभावनिज-
कहानजैनशास्त्रमाला ]
परिशिष्ट
५०१
सोपाधिस्वभाववाला है ४६.
आत्मद्रव्य शुद्धनयसे, केवल मिट्टी मात्रकी भाँति, निरुपाधिस्वभाववाला है ४७.
इसलिये कहा है :
जावदिया वयणवहा तावदिया चेव होंति णयवादा
जावदिया णयवादा तावदिया चेव होंति परसमया ।।
परसमयाणं वयणं मिच्छं खलु होदि सव्वहा वयणा
जइणाणं पुण वयणं सम्मं खु कहंचि वयणादो ।।
[अर्थ :जितने वचनपंथ हैं उतने वास्तवमें नयवाद हैं; और जितने नयवाद हैं उतने
ही परसमय (पर मत) हैं
परसमयों (मिथ्यामतियों) का वचन सर्वथा (अर्थात् अपेक्षा बिना) कहा जानेके कारण
वास्तवमें मिथ्या है; और जैनोंका वचन कथंचित् (अर्थात् अपेक्षा सहित) कहा जाता है इसलिये
वास्तवमें सम्यक् है
]
इसप्रकार इस (उपरोक्त) सूचनानुसार (अर्थात् ४७ नयोंमें समझाया है उस विधिसे)
एकएक धर्ममें एकएक नय (व्यापे), इसप्रकार अनन्त धर्मोंमें व्यापक अनन्त नयोंसे
निरूपण किया जाय तो, समुद्रके भीतर मिलनेवाले श्वेतनील गंगायमुनाके जलसमूहकी
भाँति, अनन्तधर्मोंको परस्पर अतद्भावमात्रसे पृथक् करनेमें अशक्य होनेसे, आत्मद्रव्य
अमेचक स्वभाववाला, एक धर्ममें व्याप्त होनेवाला, एक धर्मी होनेसे यथोक्त एकान्तात्मक
(एकधर्मस्वरूप) है परन्तु युगपत् अनन्तधर्मोंमें व्यापक ऐसे अनन्त नयोंमें व्याप्त होनेवाला
१. वचनपंथ = वचनके प्रकार [जितने वचनके प्रकार हैं उतने नय हैं अपेक्षा सहित नय वे सम्यक् नय
है और अपेक्षा रहित नय वे मिथ्यानय हैं; इसलिये जितने सम्यक् नय हैं उतने ही मिथ्यानय हैं ]
२. गंगाका पानी श्वेत होता है और यमुनाका पानी नील होता है
३. अमेचक = अभेद; विविधता रहित; एक