Pravachansar (Hindi). Gatha: 16.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञानतत्त्व -प्रज्ञापन
२५

अथ शुद्धोपयोगजन्यस्य शुद्धात्मस्वभावलाभस्य कारकान्तरनिरपेक्षतयाऽत्यन्त- मात्मायत्तत्वं द्योतयति

तह सो लद्धसहावो सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदो
भूदो सयमेवादा हवदि सयंभु त्ति णिद्दिट्ठो ।।१६।।
तथा स लब्धस्वभावः सर्वज्ञः सर्वलोकपतिमहितः
भूतः स्वयमेवात्मा भवति स्वयम्भूरिति निर्दिष्टः ।।१६।।

अयं खल्वात्मा शुद्धोपयोगभावनानुभावप्रत्यस्तमितसमस्तघातिकर्मतया समुपलब्ध- शुद्धानन्तशक्तिचित्स्वभावः, शुद्धानन्तशक्तिज्ञायकस्वभावेन स्वतन्त्रत्वाद्गृहीतकर्तृत्वाधिकारः, प्रकाशयतितह सो लद्धसहावो यथा निश्चयरत्नत्रयलक्षणशुद्धोपयोगप्रसादात्सर्वं जानाति तथैव सः पूर्वोक्तलब्धशुद्धात्मस्वभावः सन् आदा अयमात्मा हवदि सयंभु त्ति णिद्दिट्ठो स्वयम्भूर्भवतीति निर्दिष्टः कथितः किंविशिष्टो भूतः सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदो भूदो सर्वज्ञः सर्वलोकपतिमहितश्च भूतः संजातः इसप्रकार मोहका क्षय करके निर्विकार चेतनावान होकर, बारहवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें ज्ञानावरण; दर्शनावरण और अन्तरायका युगपद् क्षय करके समस्त ज्ञेयोंको जाननेवाले केवलज्ञानको प्राप्त करता है इसप्रकार शुद्धोपयोगसे ही शुद्धात्मस्वभावका लाभ होता है ।।१५।।

अब, शुद्धोपयोगसे होनेवाली शुद्धात्मस्वभावकी प्राप्ति अन्य कारकोंसे निरपेक्ष (स्वतंत्र) होनेसे अत्यन्त आत्माधीन है (लेशमात्र पराधीन नहीं है) यह प्रगट करते हैं :

अन्वयार्थ :[तथा ] इसप्रकार [सः आत्मा ] वह आत्मा [लब्धस्वभावः ] स्वभावको प्राप्त [सर्वज्ञः ] सर्वज्ञ [सर्वलोकपतिमहितः ] और सर्व (तीन) लोकके अधिपतियोंसे पूजित [स्वयमेव भूतः ] स्वयमेव हुआ होने से [स्वयंभूः भवति ] ‘स्वयंभू’ है [इति निर्दिष्टः ] ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है ।।१६।।

टीका :शुद्ध उपयोगकी भावनाके प्रभावसे समस्त घातिकर्मोंके नष्ट होनेसे जिसने शुद्ध अनन्तशक्तिवान चैतन्य स्वभावको प्राप्त किया है, ऐसा यह (पूर्वोक्त) आत्मा, (१) शुद्ध १. सर्वलोकके अधिपति = तीनों लोकके स्वामीसुरेन्द्र, असुरेन्द्र और चक्रवर्ती

सर्वज्ञ, लब्ध स्वभाव ने त्रिजगेन्द्रपूजित ए रीते
स्वयमेव जीव थयो थको तेने स्वयंभू जिन कहे
.१६.
प्र. ४