अथ शुद्धोपयोगजन्यस्य शुद्धात्मस्वभावलाभस्य कारकान्तरनिरपेक्षतयाऽत्यन्त-
मात्मायत्तत्वं द्योतयति —
तह सो लद्धसहावो सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदो ।
भूदो सयमेवादा हवदि सयंभु त्ति णिद्दिट्ठो ।।१६।।
तथा स लब्धस्वभावः सर्वज्ञः सर्वलोकपतिमहितः ।
भूतः स्वयमेवात्मा भवति स्वयम्भूरिति निर्दिष्टः ।।१६।।
अयं खल्वात्मा शुद्धोपयोगभावनानुभावप्रत्यस्तमितसमस्तघातिकर्मतया समुपलब्ध-
शुद्धानन्तशक्तिचित्स्वभावः, शुद्धानन्तशक्तिज्ञायकस्वभावेन स्वतन्त्रत्वाद्गृहीतकर्तृत्वाधिकारः,
प्रकाशयति — तह सो लद्धसहावो यथा निश्चयरत्नत्रयलक्षणशुद्धोपयोगप्रसादात्सर्वं जानाति तथैव सः
पूर्वोक्तलब्धशुद्धात्मस्वभावः सन् आदा अयमात्मा हवदि सयंभु त्ति णिद्दिट्ठो स्वयम्भूर्भवतीति निर्दिष्टः
कथितः । किंविशिष्टो भूतः । सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदो भूदो सर्वज्ञः सर्वलोकपतिमहितश्च भूतः संजातः ।
१. सर्वलोकके अधिपति = तीनों लोकके स्वामी — सुरेन्द्र, असुरेन्द्र और चक्रवर्ती ।
सर्वज्ञ, लब्ध स्वभाव ने त्रिजगेन्द्रपूजित ए रीते
स्वयमेव जीव थयो थको तेने स्वयंभू जिन कहे .१६.
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञानतत्त्व -प्रज्ञापन
२५
प्र. ४
इसप्रकार मोहका क्षय करके निर्विकार चेतनावान होकर, बारहवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें
ज्ञानावरण; दर्शनावरण और अन्तरायका युगपद् क्षय करके समस्त ज्ञेयोंको जाननेवाले
केवलज्ञानको प्राप्त करता है । इसप्रकार शुद्धोपयोगसे ही शुद्धात्मस्वभावका लाभ होता
है ।।१५।।
अब, शुद्धोपयोगसे होनेवाली शुद्धात्मस्वभावकी प्राप्ति अन्य कारकोंसे निरपेक्ष
( – स्वतंत्र) होनेसे अत्यन्त आत्माधीन है ( – लेशमात्र पराधीन नहीं है) यह प्रगट करते हैं : —
अन्वयार्थ : — [तथा ] इसप्रकार [सः आत्मा ] वह आत्मा [लब्धस्वभावः ]
स्वभावको प्राप्त [सर्वज्ञः ] सर्वज्ञ [सर्वलोकपतिमहितः ] और १सर्व (तीन) लोकके
अधिपतियोंसे पूजित [स्वयमेव भूतः ] स्वयमेव हुआ होने से [स्वयंभूः भवति ] ‘स्वयंभू’ है
[इति निर्दिष्टः ] ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है ।।१६।।
टीका : — शुद्ध उपयोगकी भावनाके प्रभावसे समस्त घातिकर्मोंके नष्ट होनेसे जिसने
शुद्ध अनन्तशक्तिवान चैतन्य स्वभावको प्राप्त किया है, ऐसा यह (पूर्वोक्त) आत्मा, (१) शुद्ध