अथ शुद्धोपयोगजन्यस्य शुद्धात्मस्वभावलाभस्य कारकान्तरनिरपेक्षतयाऽत्यन्त- मात्मायत्तत्वं द्योतयति —
अयं खल्वात्मा शुद्धोपयोगभावनानुभावप्रत्यस्तमितसमस्तघातिकर्मतया समुपलब्ध- शुद्धानन्तशक्तिचित्स्वभावः, शुद्धानन्तशक्तिज्ञायकस्वभावेन स्वतन्त्रत्वाद्गृहीतकर्तृत्वाधिकारः, प्रकाशयति — तह सो लद्धसहावो यथा निश्चयरत्नत्रयलक्षणशुद्धोपयोगप्रसादात्सर्वं जानाति तथैव सः पूर्वोक्तलब्धशुद्धात्मस्वभावः सन् आदा अयमात्मा हवदि सयंभु त्ति णिद्दिट्ठो स्वयम्भूर्भवतीति निर्दिष्टः कथितः । किंविशिष्टो भूतः । सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदो भूदो सर्वज्ञः सर्वलोकपतिमहितश्च भूतः संजातः । इसप्रकार मोहका क्षय करके निर्विकार चेतनावान होकर, बारहवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें ज्ञानावरण; दर्शनावरण और अन्तरायका युगपद् क्षय करके समस्त ज्ञेयोंको जाननेवाले केवलज्ञानको प्राप्त करता है । इसप्रकार शुद्धोपयोगसे ही शुद्धात्मस्वभावका लाभ होता है ।।१५।।
अब, शुद्धोपयोगसे होनेवाली शुद्धात्मस्वभावकी प्राप्ति अन्य कारकोंसे निरपेक्ष ( – स्वतंत्र) होनेसे अत्यन्त आत्माधीन है ( – लेशमात्र पराधीन नहीं है) यह प्रगट करते हैं : —
अन्वयार्थ : — [तथा ] इसप्रकार [सः आत्मा ] वह आत्मा [लब्धस्वभावः ] स्वभावको प्राप्त [सर्वज्ञः ] सर्वज्ञ [सर्वलोकपतिमहितः ] और १सर्व (तीन) लोकके अधिपतियोंसे पूजित [स्वयमेव भूतः ] स्वयमेव हुआ होने से [स्वयंभूः भवति ] ‘स्वयंभू’ है [इति निर्दिष्टः ] ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है ।।१६।।
टीका : — शुद्ध उपयोगकी भावनाके प्रभावसे समस्त घातिकर्मोंके नष्ट होनेसे जिसने शुद्ध अनन्तशक्तिवान चैतन्य स्वभावको प्राप्त किया है, ऐसा यह (पूर्वोक्त) आत्मा, (१) शुद्ध १. सर्वलोकके अधिपति = तीनों लोकके स्वामी — सुरेन्द्र, असुरेन्द्र और चक्रवर्ती ।
स्वयमेव जीव थयो थको तेने स्वयंभू जिन कहे .१६.