ॐ
नमः श्रीप्रवचनसारपरमागमाय।
प्रकाशकीय निवेदन
[छठवाँ संस्करण]
प्रवर्तमानतीर्थप्रणेता वीतराग सर्वज्ञ भगवान श्री महावीरस्वामीकी ॐकार दिव्यध्वनिसे
प्रवाहित और गणधरदेव श्री गौतमस्वामी आदि गुरुपरम्परा द्वारा प्राप्त हुए शुद्धात्मानुभूतिप्रधान
अध्यात्मप्रवाहको झेलकर, तथा विदेहक्षेत्रस्थ जीवन्तस्वामी श्री सीमन्धरजिनवरकी प्रत्यक्ष
वन्दना एवं देशनाश्रवणसे पुष्ट कर, श्रीमद् भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवने उसे समयसारादि
परमागमरूप भाजनोंमें संगृहीत करके अध्यात्मतत्त्वपिपासु जगत पर सातिशय महान उपकार
किया है
।
स्वानुभवप्रधान – अध्यात्मश्रुतलब्धिधर भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव द्वारा प्रणीत प्राभृतरूप
प्रभूत श्रुतरचनाओंमें श्री समयसार, श्री प्रवचनसार, श्री पंचास्तिकायसंग्रह, श्री नियमसार और
श्री अष्टप्राभृत — यह पाँच परमागम मुख्य हैं । ये पाँचों परमागम श्री कुन्दकुन्दअध्यात्म-
भारतीके अनन्य परमोपासक, अध्यात्मयुगप्रवर्तक, परमोपकारी पूज्य सद्गुरुदेव श्री
कानजीस्वामीके सत्प्रभावनोदयसे श्री दि० जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट (सोनगढ़) एवं अन्य
ट्रस्ट द्वारा गुजराती एवं हिन्दी भाषामें अनेक बार प्रकाशित हो चुके हैं । उनके ही सत्प्रतापसे
ये पाँचों ही परमागम, अध्यात्म – अतिशयक्षेत्र श्री सुवर्णपुरी (सोनगढ़)में भगवान महावीरके
पचीसवें शताब्दी – समारोहके अवसर पर (वि. सं. २०३०में), विश्वमें अद्वितीय एवं दर्शनीय
ऐसे ‘श्री महावीर – कुन्दकुन्द – दिगम्बर – जैन – परमागममंदिर’की भव्य दिवारों पर लगे
संगेमर्मरके धवल शिलापट पर (आद्य चार परमागम टीका सहित और अष्टप्राभृतकी मूल
गाथा) उत्कीर्ण कराकर चिरंजीवी किये गये हैं । अधुना, परमागम श्री प्रवचनसार एवं श्रीमद्
अमृतचन्द्राचार्यदेवकी ‘तत्त्वप्रदीपिका’ टीकाके गुजराती अनुवादके हिन्दी रूपान्तरका यह
छठवाँ संस्करण अध्यात्मतत्त्वप्रेमियोंके हाथमें प्रस्तुत करते हुए श्रुतप्रभावनाका विशेष आनन्द
अनुभूत होता है ।
जिनके पुनीत प्रभावनोदयसे श्री कुन्दकुन्द – अध्यात्मभारतीका इस युगमें पुनरभ्युदय
हुआ है ऐसे हमारे परमोपकारी पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीकी उपकारमहिमा क्या कही
जाये ? उनहीने भगवान श्री महावीरस्वामी द्वारा प्ररूपित एवं तदाम्नायानुवर्ती
भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव द्वारा समयसार, प्रवचनसार आदि परमागमोंमें सुसंचित स्वानुभव
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