Pravachansar (Hindi). Gatha: 29.

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भूतरूपिद्रव्याणि च परस्परप्रवेशमन्तरेणापि ज्ञेयाकारग्रहणसमर्पणप्रवणान्येवमात्माऽर्थाश्चा-
न्योन्यवृत्तिमन्तरेणापि विश्वज्ञेयाकारग्रहणसमर्पणप्रवणाः
।।२८।।
अथार्थेष्ववृत्तस्यापि ज्ञानिनस्तद्वृत्तिसाधकं शक्तिवैचित्र्यमुद्योतयति
ण पविट्ठो णाविट्ठो णाणी णेयेसु रूवमिव चक्खू
जाणदि पस्सदि णियदं अक्खातीदो जगमसेसं ।।२९।।
तथाहि ---यथा रूपिद्रव्याणि चक्षुषा सह परस्परं संबन्धाभावेऽपि स्वाकारसमर्पणे समर्थानि, चक्षूंषि च
तदाकारग्रहणे समर्थानि भवन्ति, तथा त्रैलोक्योदरविवरवर्तिपदार्थाः कालत्रयपर्यायपरिणता ज्ञानेन सह

परस्परप्रदेशसंसर्गाभावेऽपि स्वकीयाकारसमर्पणे समर्था भवन्ति, अखण्डैकप्रतिभासमयं केवलज्ञानं तु

तदाकारग्रहणे समर्थमिति भावार्थः
।।२८।। अथ ज्ञानी ज्ञेयपदार्थेषु निश्चयनयेनाप्रविष्टोऽपि व्यवहारेण
प्रविष्ट इव प्रतिभातीति शक्तिवैचित्र्यं दर्शयति ---ण पविट्ठो निश्चयनयेन न प्रविष्टः, णाविट्ठो व्यवहारेण
च नाप्रविष्टः किंतु प्रविष्ट एव स कः कर्ता णाणी ज्ञानी । केषु मध्ये णेयेसु ज्ञेयपदार्थेषु किमिव
रूवमिव चक्खू रूपविषये चक्षुरिव एवंभूतस्सन् किं करोति जाणदि पस्सदि जानाति पश्यति च णियदं
निश्चितं संशयरहितं किंविशिष्टः सन् अक्खातीदो अक्षातीतः किं जानाति पश्यति जगमसेसं
४८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
और रूपी पदार्थोंकी भाँति उपचारसे कहा जा सकता है) जैसे नैत्र और उनके विषयभूत
रूपी पदार्थ परस्पर प्रवेश किये बिना ही ज्ञेयाकारों को ग्रहण और समर्पण करनेके
स्वभाववाले हैं, उसी प्रकार आत्मा और पदार्थ एक दूसरेमें प्रविष्ट हुए बिना ही समस्त
ज्ञेयाकारोंके ग्रहण और समर्पण करनेके स्वभाववाले हैं
(जिस प्रकार आँख रूपी पदार्थोंमें
प्रवेश नहीं करती और रूपी पदार्थ आँखमें प्रवेश नहीं करते तो भी आँख रूपी पदार्थोंके
ज्ञेयाकारोंके ग्रहण करने
जाननेकेस्वभाववाली है और रूपी पदार्थ स्वयंके ज्ञेयाकारोंको
समर्पित होनेजनानेकेस्वभाववाले हैं, उसीप्रकार आत्मा पदार्थोंमें प्रवेश नहीं करता और
पदार्थ आत्मामें प्रवेश नहीं करते तथापि आत्मा पदार्थोंके समस्त ज्ञेयाकारोंको ग्रहण कर
लेने
जानलेनेके स्वभाववाला है और पदार्थ स्वयंके समस्त ज्ञेयाकारोंको समर्पित हो
जानेज्ञात हो जानेके स्वभाववाले हैं ) ।।२८।।
अब, आत्मा पदार्थोंमें प्रवृत्त नहीं होता तथापि जिससे (जिस शक्तिवैचित्र्यसे ) उसका
पदार्थोंमें प्रवृत्त होना सिद्ध होता है उस शक्तिवैचित्र्यको उद्योत करते हैं :
ज्ञेये प्रविष्ट न, अणप्रविष्ट न, जाणतो जग सर्वने
नित्ये अतीन्द्रिय आतमा, ज्यम नेत्र जाणे रूपने
.२९.