वधारितविशेषलक्षणा एकक्षण एवावबोधसौधस्थितिमवतरन्ति । न खल्वेतदयुक्तम् — दृष्टा-
संविद्भित्तावपि । — किं च सर्वज्ञेयाकाराणां तादात्विक त्वाविरोधात्; यथा हि
पर्यायाणां ज्ञेयाकारा वर्तमाना एव भवन्ति ।।३७।।
तात्कालिक (वर्तमानकालीन) पर्यायोंकी भाँति, अत्यन्त १मिश्रित होनेपर भी सब पर्यायोंके
क्योंकि —
(१) उसका दृष्टान्तके साथ (जगतमें जो दिखाई देता है — अनुभवमें आता है उसके साथ ) अविरोध है । (जगतमें ) दिखाई देता है कि छद्मस्थके भी, जैसे वर्तमान वस्तुका चिंतवन करते हुए ज्ञान उसके आकारका अवलम्बन करता है उसीप्रकार भूत और भविष्यत वस्तुका चिंतवन करते हुए (भी) ज्ञान उसके आकारका अवलम्बन करता है ।
(२) और ज्ञान चित्रपटके समान है । जैसे चित्रपटमें अतीत, अनागत और वर्तमान वस्तुओंके २आलेख्याकार साक्षात् एक क्षणमें ही भासित होते हैं; उसीप्रकार ज्ञानरूपी भित्तिमें (-ज्ञानभूमिकामें, ज्ञानपटमें ) भी अतीत, अनागत और वर्तमान पर्यायोंके ज्ञेयाकार साक्षात् एक क्षणमें ही भासित होते हैं ।
(३) और सर्व ज्ञेयाकारोंकी तात्कालिकता (वर्तमानता, साम्प्रतिकता) अविरुद्ध है । जैसे नष्ट और अनुत्पन्न वस्तुओंके आलेख्याकार वर्तमान ही हैं, उसीप्रकार अतीत और अनागत पर्यायोंके ज्ञेयाकार वर्तमान ही हैं । १. ज्ञानमें समस्त द्रव्योंकी तीनोंकालकी पर्यायें एक ही साथ ज्ञात होने पर भी प्रत्येक पर्यायका विशिष्ट
स्वरूप -प्रदेश, काल, आकार इत्यादि विशेषतायें – स्पष्ट ज्ञात होता है; संकर – व्यतिकर नहीं होते । २. आलेख्य = आलेखन योग्य; चित्रित करने योग्य ।