Pravachansar (Hindi).

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६४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
सद्भूतासद्भूततामायान्तो ये यावन्तः पर्यायास्ते तावन्तस्तात्कालिका इवात्यन्तसंकरेणाप्य-
वधारितविशेषलक्षणा एकक्षण एवावबोधसौधस्थितिमवतरन्ति
न खल्वेतदयुक्तम्दृष्टा-
विरोधात्; द्रश्यते हि छद्मस्थस्यापि वर्तमानमिव व्यतीतमनागतं वा वस्तु चिन्तयतः
संविदालम्बितस्तदाकारः किंच चित्रपटीस्थानीयत्वात् संविदः; यथा हि चित्रपटयामति-
वाहितानामनुपस्थितानां वर्तमानानां च वस्तूनामालेख्याकाराः साक्षादेकक्षण एवावभासन्ते, तथा
संविद्भित्तावपि
किं च सर्वज्ञेयाकाराणां तादात्विक त्वाविरोधात्; यथा हि
प्रध्वस्तानामनुदितानां च वस्तूनामालेख्याकारा वर्तमाना एव, तथातीतानामनागतानां च
पर्यायाणां ज्ञेयाकारा वर्तमाना एव भवन्ति
।।३७।।
पूर्वोक्ताः पर्याया वर्तन्ते प्रतिभासन्ते प्रतिस्फु रन्ति क्क णाणे केवलज्ञाने कथंभूता इव तक्कालिगेव
तात्कालिका इव वर्तमाना इव कासां सम्बन्धिनः तासिं दव्वजादीणं तासां प्रसिद्धानां
दूसरी प्रगट होनेवाली), विद्यमानता और अविद्यमानताको प्राप्त जो जितनी पर्यायें हैं, वे सब
तात्कालिक (वर्तमानकालीन) पर्यायोंकी भाँति, अत्यन्त
मिश्रित होनेपर भी सब पर्यायोंके
विशिष्ट लक्षण स्पष्ट ज्ञात हों इसप्रकार, एक क्षणमें ही, ज्ञानमंदिरमें स्थितिको प्राप्त होती हैं
यह (तीनों कालकी पर्यायोंका वर्तमान पर्यायोंकी भाँति ज्ञानमें ज्ञात होना) अयुक्त नहीं है;
क्योंकि

(१) उसका दृष्टान्तके साथ (जगतमें जो दिखाई देता हैअनुभवमें आता है उसके साथ ) अविरोध है (जगतमें ) दिखाई देता है कि छद्मस्थके भी, जैसे वर्तमान वस्तुका चिंतवन करते हुए ज्ञान उसके आकारका अवलम्बन करता है उसीप्रकार भूत और भविष्यत वस्तुका चिंतवन करते हुए (भी) ज्ञान उसके आकारका अवलम्बन करता है

(२) और ज्ञान चित्रपटके समान है जैसे चित्रपटमें अतीत, अनागत और वर्तमान वस्तुओंके आलेख्याकार साक्षात् एक क्षणमें ही भासित होते हैं; उसीप्रकार ज्ञानरूपी भित्तिमें (-ज्ञानभूमिकामें, ज्ञानपटमें ) भी अतीत, अनागत और वर्तमान पर्यायोंके ज्ञेयाकार साक्षात् एक क्षणमें ही भासित होते हैं

(३) और सर्व ज्ञेयाकारोंकी तात्कालिकता (वर्तमानता, साम्प्रतिकता) अविरुद्ध है जैसे नष्ट और अनुत्पन्न वस्तुओंके आलेख्याकार वर्तमान ही हैं, उसीप्रकार अतीत और अनागत पर्यायोंके ज्ञेयाकार वर्तमान ही हैं १. ज्ञानमें समस्त द्रव्योंकी तीनोंकालकी पर्यायें एक ही साथ ज्ञात होने पर भी प्रत्येक पर्यायका विशिष्ट

स्वरूप -प्रदेश, काल, आकार इत्यादि विशेषतायेंस्पष्ट ज्ञात होता है; संकरव्यतिकर नहीं होते २. आलेख्य = आलेखन योग्य; चित्रित करने योग्य