Pravachansar (Hindi). Gatha: 37.

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अथातिवाहितानागतानामपि द्रव्यपर्यायाणां तादात्विकवत् पृथक्त्वेन ज्ञाने वृत्तिमुद्योतयति
तक्कालिगेव सव्वे सदसब्भूदा हि पज्जया तासिं
वट्टंते ते णाणे विसेसदो दव्वजादीणं ।।३७।।
तात्कालिका इव सर्वे सदसद्भूता हि पर्यायास्तासाम्
वर्तन्ते ते ज्ञाने विशेषतो द्रव्यजातीनाम् ।।३७।।
सर्वासामेव हि द्रव्यजातीनां त्रिसमयावच्छिन्नात्मलाभभूमिकत्वेन क्रमप्रतपत्स्वरूपसंपदः
घटादिवत् परिहारमाह --प्रदीपेन व्यभिचारः, प्रदीपस्तावत्प्रमेयः परिच्छेद्यो ज्ञेयो भवति न च
प्रदीपान्तरेण प्रकाश्यते, तथा ज्ञानमपि स्वयमेवात्मानं प्रकाशयति न च ज्ञानान्तरेण प्रकाश्यते यदि
पुनर्ज्ञानान्तरेण प्रकाश्यते तर्हि गगनावलम्बिनी महती दुर्निवारानवस्था प्राप्नोतीति सूत्रार्थः ।।३६।। एवं
निश्चयश्रुतकेवलिव्यवहारश्रुतकेवलिकथनमुख्यत्वेन भिन्नज्ञाननिराकरणेन ज्ञानज्ञेयस्वरूपकथनेन च
चतुर्थस्थले गाथाचतुष्टयं गतम्
अथातीतानागतपर्याया वर्तमानज्ञाने सांप्रता इव दृश्यन्त इति
निरूपयतिसव्वे सदसब्भूदा हि पज्जया सर्वे सद्भूता असद्भूता अपि पर्यायाः ये हि स्फु टं वट्टंते ते तेतेतेतेते
कहानजैनशास्त्रमाला ]
ज्ञानतत्त्व -प्रज्ञापन
६३
(आत्मा और द्रव्य समय -समय पर परिणमन किया करते हैं, वे कूटस्थ नहीं हैं; इसलिये आत्मा
ज्ञान स्वभावसे और द्रव्य ज्ञेय स्वभावसे परिणमन करता है, इसप्रकार ज्ञान स्वभावमें परिणमित
आत्मा ज्ञानके आलम्बनभूत द्रव्योंको जानता है और ज्ञेय -स्वभावसे परिणमित द्रव्य ज्ञेयके
आलम्बनभूत ज्ञानमें
आत्मामेंज्ञात होते हैं ) ।।३६।।
अब, ऐसा उद्योत करते हैं कि द्रव्योंकी अतीत और अनागत पर्यायें भी तात्कालिक
पर्यायोंकी भाँति पृथक्रूपसे ज्ञानमें वर्तती हैं :
अन्वयार्थ :[तासाम् द्रव्यजातीनाम् ] उन (जीवादि) द्रव्यजातियोंकी [ते सर्वे ]
समस्त [सदसद्भूताः हि ] विद्यमान और अविद्यमान [पर्यायाः ] पर्यायें [तात्कालिकाः इव ]
तात्कालिक (वर्तमान) पर्यायोंकी भाँति
, [विशेषतः ] विशिष्टतापूर्वक (अपने -अपने भिन्न-
भिन्न स्वरूपमें ) [ज्ञाने वर्तन्ते ] ज्ञानमें वर्तती हैं ।।३७।।
टीका :(जीवादिक) समस्त द्रव्यजातियोंकी पर्यायोंकी उत्पत्तिकी मर्यादा
तीनोंकालकी मर्यादा जितनी होनेसे (वे तीनोंकालमें उत्पन्न हुआ करती हैं इसलिये), उनकी
(उन समस्त द्रव्य -जातियोंकी), क्रमपूर्वक तपती हुई स्वरूप -सम्पदा वाली (-एकके बाद
ते द्रव्यना सद्भूतअसद्भूत पर्ययो सौ वर्तता,
तत्कालना पर्याय जेम, विशेषपूर्वक ज्ञानमां. ३७.